बुनियादी बातों की अनदेखी का एक और कारनामा हाल में कोविड-19 की चपेट में आए मरीजों और उनके तीमारदारों ने भोगा है। ऑक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन और अन्य बेहद जरूरी दवाओं की कालाबाजारी के चलते ये चीजें जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाईं और कईयों ने इस वजह से अपनी जान तक गंवा दी, लेकिन इस अपराध की मार्फत चांदी कूटते लोगों को प्रभावी कानून के तहत गिरफ्तार तक नहीं किया जा सका। वजह थी – कानून की कमजोरी।
कहा जाता है कि हाथी के दांत दिखाने के अलग और खाने के अलग होते हैं। यह बात इन दिनों आक्सीजन और मेडिकल उपकरणों की कालाबाजारी पर लागू होती है, जिसमें सरकार आरोपियों को गिरफ्तार तो कर रही है, लेकिन न्यायालय से सजा दिलवाने के उपाय करती नजर नहीं आ रही है। कोरोना की दूसरी भयावह लहर में आक्सीजन सिलेण्डर से लेकर आक्सीजन कन्सन्ट्रेटर और जरूरी दवाईयों तक की बड़े पैमाने पर जमाखोरी और कालाबाजारी की घटनाएं सामने आई है। ऐसा करने वालों को गिरफ्तार कर सरकार द्वारा कहा जा रहा है कि संकटकाल में इस तरह के अमानवीय अपराध करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन वास्तव में क्या ऐसा संभव हो पाएगा? इस संदर्भ ऐसी कानूनी खामी पता चली है, जिससे अदालतों में इस तरह के अपराध को साबित करना मुश्किल होगा।
कोरोनाकाल में देश में जिन वस्तुओं की जमाखोरी, कालाबाजारी और बहुत अधिक कीमत पर बेचने की बात उजागर हुई है, उनमें आक्सीजन-सिलेण्डर, आक्सीजन-कन्सन्ट्रेटर, वेंटीलेटर, रेमडेसिविर इंजेक्शन आदि प्रमुख हैं। सवाल यह है कि आखिर किस कानून में यह लिखा है कि ये मेडिकल उपकरण कितनी संख्या से अधिक रखे नहीं जा सकते और इनकी अधिकतम कीमत क्या है? यानी जब न तो रखने की संख्या और न ही अधिकतम कीमत तय हो तो अपराध कैसे साबित किया जाएगा? ये वस्तुएं जमाखोरी और मूल्य नियंत्रण करने वाले कानून “आवश्यक वस्तु अधिनियम – 1955” में शामिल ही नहीं हैं।
इस अधिनियम में शामिल वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण पर सरकार का नियंत्रण होता है, ताकि जरूरत और अभाव के समय कोई उनकी जमाखोरी न कर सके और लोगों से मनमानी कीमत वसूल नहीं कर सके। इस कानून की परिधि में शामिल वस्तुओं की जमाखोरी, मुनाफाखोर और कालाबाजारी करने वाले को धारा 7(1) एवं (2) के अंतर्गत सात साल तक जेल हो सकती है, किन्तु यह जानकर आश्चर्य होगा कि आक्सीजन-सिलेण्डर, आक्सीजन-कन्सन्ट्रेटर, रेम्डेसिविर इंजेक्शन इस कानून की परिधि से बाहर हैं। इस दशा में पुलिस द्वारा आरोपियों के विरूद्ध ‘भारतीय दण्ड संहिता’ (आईपीसी) की धारा 420 और 188 एवं अन्य धाराओं में प्रकरण दर्ज किए जा रहे हैं, जिसे अदालत में साबित करना मुश्किल होगा।
‘आवश्यक वस्तु अधिनियम–1955’ के तहत, केंद्र राज्य सरकारों के माध्यम से कुल 8 प्रकार की वस्तुओं पर नियंत्रण रखता है, जिनमें ड्रग्स, उर्वरक, खाद्य-तेल समेत खाने की चीजें, कपास से बना धागा, पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद, जूट और जूट वस्त्र, फसलों के बीज और फेस-मास्क तथा हैंड-सैनिटाइजर शामिल हैं। फेस-मास्क और सेनेटाइजर को सरकार ने कोरोना प्रोटोकाल लागू करने के लिए मार्च 2020 में शामिल किया था।
पिछले दिनों राजधानी दिल्ली सहित देश के कई शहरों में बड़े पैमाने पर इनकी जमाखोरी और कालाबाजारी हुई। तीस हजार रूपए के आक्सीजन-कन्सन्ट्रेटर 70 हजार रूपए में बेचे गए। आक्सीजन-सिलेण्डर भी दस गुना ज्यादा कीमत पर बेचे गए। रेमडेसिविर इंजेक्शन तो 25 से 35 हजार रूपए तक बेचे गए। पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार भी किया, लेकिन इस सबके बावजूद भारत सरकार द्वारा ये वस्तुएं ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ के अंतर्गत शामिल नहीं की गई।
उल्लेखनीय है कि भारत के संविधान में सरकार को अध्यादेश लाने का अधिकार ऐसे ही संकटग्रस्त समय के लिए है। जब संसद का सत्र आयोजित करना संभव नहीं हो तो सरकार लोगों के जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए अध्यादेश ला सकती है। आखिर भारत सरकार द्वारा अध्यादेश के जरिये इन वस्तुओं को ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ के दायरे में क्यों नहीं लाया गया? जबकि पूरा देश जानता है कि कोरोना काल में ही सरकार ने कृषि कानून सहित कई कानून संसद से पारित करवाए। किन्तु ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ में मेडिकल उपकरण और जरूरी दवाइयों को शामिल करने हेतु सरकार ने अध्यादेश तक लाने पर विचार नहीं किया।
उल्लेखनीय है कि छह मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र एवं दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि “मेडिकल ऑक्सीजन को एसेंशियल कमोडिटी (आवश्यक वस्तु) के रूप में अब तक अधिसूचित क्यों नहीं किया गया?” कुछ ही दिनों पहले दिल्ली के खान मार्केट में जमाखोरी और कालाबाजारी के आरोप में गिरफ्तार चार आरोपियों को दिल्ली की साकेत कोर्ट ने जमानत देते हुए कहा कि दिल्ली पुलिस की अब तक की जांच में ऐसा साबित नहीं हो पाया कि आरोपी कालाबाजारी और जमाखोरी कर रहे थे। कोर्ट ने कहा कि अगर जांच एजेंसी ब्लैक मार्केटिंग पर रोक लगाने की बात ही कर रही है तो उसने ब्लैक मार्केटिंग से जुड़े हुए कानून की धारा इस मामले में क्यों नहीं लगाई? अदालत ने कहा कि वह कानून बनाने से पहले लोगों को दंडित नहीं कर सकती। यदि कोई कानून नहीं है और आपको कोई कमी महसूस होती है तो आपको इसे भरने की आवश्यकता है।’ छत्तीसगढ़ सरकार ने भी कोविड संक्रमण प्रबंधन के लिए उपयोग की जा रही दवाओं को ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम – 1955’ के अंतर्गत अधिसूचित करने हेतु 28 अप्रैल को केन्द्र सरकार को पत्र लिखा था।
इस संदर्भ में यह भी समझना होगा कि जमाखोरी और कालाबाजारी में लगे ज्यादातर लोग प्रभावशाली होते हैं या उन पर प्रभावशाली लोगों का वरदहस्त होता है। ज्यादातर लोग किसी राजनैतिक दल या संगठन से भी जुड़े होते हैं। उनके पकड़े जाने पर सरकार को अपनी प्रतिबद्धता दिखाने की जरूरत होती है। इससे एक तरफ, जनता को कानूनी कार्यवाही का सुकून मिलता है और दूसरी तरफ, अपराधियों को कानून से बच निकलने का रास्ता भी मिल जाता है। गौरतलब है कि ज्यादातर मामलों में पुलिस द्वारा कालाबाजारी करने वालों पर ‘आईपीसी’ की धारा – 188 के अंतर्गत कार्यवाही की गई, जबकि लॉकडाउन में किसी जरूरी काम से बाहर निकलने वालों पर भी यही धारा लगाई जाती है। यानी क्या आक्सीजन की कालाबाजारी करना और लॉकडाउन में घर से बाहर निकलना दोनों एक जैसे अपराध हैं? सवाल उठाता है कि आखिर सरकार अध्यादेश या अधिसूचना के जरिये उपरोक्त वस्तुओं को अत्यावश्यक घोषित क्यों नहीं कर रही है? जबकि कानूनी संशोधन के जरिये ही अपराधियों को दण्डित किया जा सकता है। (सप्रेस)
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