जैसा कि कहा गया था, कडकती सर्दी और तेजी से फैलता वायु-प्रदूषण कोरोना वायरस को खुलकर खेलने का मौका दे रहे हैं। अब कोरोना से पनपे कोविड-19 के संक्रमण के दूसरे दौर की चर्चाएं होने लगी हैं। जाहिर है, सर्वशक्तिमान कोरोना विषाणु के असर को बढ़ाने में व्यक्ति, समाज और सरकार की हैसियत से हमारी भूमिका भी सवालों के घेरे में है। क्या हम प्रदूषण के इस पहलू को लेकर सचेत हो सकेंगे?
कुछ समय पूर्व यह संभावना बतायी जा रही थी कि सर्दी के मौसम के आगमन तथा बढ़ते वायु प्रदूषण से कोरोना का संक्रमण भी फैलेगा। ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान’ (एम्स) के निर्देशक डा. आर. गुलेरिया ने भी चेतावनी दी थी कि सर्दी के मौसम में बढ़ते प्रदूषण से कोरोना संक्रमण के प्रकरण बढ़ेंगे। ‘सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया’ (पुणे) के अध्ययन के अनुसार कोविड -19 के मानसून ‘पीक’ की तरह सर्दी में इसके ‘पीक’ आने की भी पूरी संभावना है। सर्दी के मौसम में बढ़ते वायु प्रदूषण से कोरोना संक्रमण बढ़ने की संभावना अब हकीकत में बदल गयी है।
दिल्ली, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान व अन्य राज्यों में संक्रमण बढ़ा है। ‘क्यूआरजी हेल्थ सिटी हास्पिटल’ (फरीदाबाद) के श्वसन रोग विशेषज्ञ डा. गुरमीत छाबड़ा के अनुसार सर्दियों में श्वसनीय विषाणु ‘सीरेटरी वायरस’ लम्बे समय तक जीवित रहते हैं जिससे संक्रमण ज्यादा फैलता है। सर्दी के मौसम में बार- बार हाथ नहीं धोना, स्नान से बचना एवं सामाजिक दूरी बनाये रखने के पालन नहीं करना आदि ऐसे कारण हैं जो संक्रमण के फैलाव में मददगार होते है।
गर्म कपड़ों पर भी वायरस के चिपकनें की संभावना ज्यादा बतायी गयी है। सर्दियों में तापमान कम होने से कोरोना संक्रमित मरीज के खांसने तथा छींकने से निकली छोटी-छोटी बूंदें (ड्रापलेट्स) को सूखने में ज्यादा समय लगता है एवं संक्रमण फैलता है। नाक के अंदर की ‘श्लेष्मा-झिल्ली’ के इस मौसम में सूखने से वह संक्रमण हेतु कमजोर हो जाती है। सर्दी से बचाव हेतु बंद रखे गए खिड़की-दरवाजे वायु का प्रवाह बाधित कर देते हैं। जिससे संक्रमण ज्यादा प्रभावशाली हो जाता है। बंद खिड़की-दरवाजों से धूप की कमी होने से शरीर में विटामिन-डी की मात्रा भी घट जाती है। यूरोप सहित कई अन्य देशों में किये गये शोध दर्शाते हैं कि विटामिन-डी कोरोना वायरस से लड़ने में काफी मददगार होता है। विटामिन-डी की पर्याप्त मात्रा वाले मरीजों को वेंटीलेंटर की जरूरत भी लगभग 45 प्रतिशत घट जाती है। एक अमेरिकी शोध के अनुसार विटामिन-डी की उचित मात्रा कोरोना से मौत की संभावना को 52 प्रतिशत कम कर देती है। विटामिन-डी शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता (इम्यूनिटी) मजबूत कर संक्रमण से लड़ने वाली टी-कोशिकाओं (टी-सेल्स) की क्रियाशीलता भी बढ़ाता है।
वायु प्रदूषण से कोरोना बढ़ने के प्रकरण तो सर्दी के मौसम के पहले भी देखे गये थे। हावर्ड विश्वविद्यालय (अमेरीका) ने मार्च-अप्रैल ‘20 से ही देशव्यापी अध्ययन कर बताया था कि ज्यादा प्रदूषित स्थानों पर कोरोना संक्रमण एवं मृत्युदर अधिक थी। ‘स्विस एअर मानिटरींग’ के अध्ययन के अनुसार ज्यादा संक्रमण से दो गुना मौतें हुईं। हमारे देश में भी डाक्टरों के संगठन (डाक्टर्स फॉर क्लीन एअर) ने मार्च 2020 में ही घोषित किया था कि वायु-प्रदूषण से प्रभावित लोगों में कोरोना का संक्रमण काफी घातक होगा, क्योंकि उनके फेंफड़े कमजोर हो चुके हैं। ‘इंडियन कौसिल आफ मेडिकल रिसर्च’ (आईसीएमआर) की रिपोर्ट के अनुसार कमजोर श्वसन तंत्र या फेफड़ों के रोगों वाले लोगों के लिए कोरोना संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा है। ‘लंग केअर फाउंडेशन’ का मत है कि प्रदूषण कोरोना के लिए संजीवनी साबित होगा। सर्दी के मौसम में कम तापमान एवं वायु प्रवाह के कारण प्रदूषणकारी पदार्थ वायुमंडल में निचले स्तर पर एकत्र होकर मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। अधिक प्रदूषण वाले क्षेत्रों में ज्यादा कोरोना संक्रमण का ट्रेंड हमारे देश में भी देखा गया है। दिल्ली, मुम्बई, पुणे, चेन्नई, अहमदाबाद व भोपाल आदि ज्यादा प्रदूषित शहरों में देश के लगभग 40 प्रतिशत संक्रमण के मामले दर्ज किया गये हैं। इन शहरों में कोरोना से मौत की दर भी देश के औसत से अधिक आंकी गयी है।
बीसवीं सदी की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी भूल चुके शहर भोपाल में उन लोगों पर कोरोना का प्रभाव ज्यादा देखा गया जो पहले से गैस त्रासदी से प्रभावित थे। एवं आंकलन अनुसार यहां के लगभग छः लाख गैस पीड़ितों को कोरोना संक्रमण के लिए ज्यादा संवेदनशील पाया गया था। देश में अन्य स्थानों पर जहां दुर्घटनावश किसी गैस का रिसाव हुआ है, वहां यदि कोरोना प्रभाव का अध्ययन किया जावे तो भोपाल जैसी स्थिति प्राप्त होने की पूरी संभावना है। वायु प्रदूषण एवं कोरोना संक्रमण के संबंध को ध्यान में रखकर देशभर के महानगरों, नगरों, कस्बों एवं गांवों में वायु प्रदूषण रोकथाम के प्रयास प्राथमिकता के आधार पर किये जाने चाहिये एवं औद्योगिक संस्थानों में सुरक्षा के मापदंडों का सख्ती से पालन करवाया जाना चाहिये। वैसे भी देश में वायु प्रदूषण की हालत अच्छी नहीं है। जब भी वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक प्रदूषित शहरों के नाम बताये जाते हैं तो हमारे देश के शहरों की संख्या ज्यादा रहती है। देशभर में व्याप्त वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर फेफड़ों पर प्रभाव डाल रहा है।
कुछ वर्षों पूर्ण कनाड़ा के ‘मेकमास्ट विश्वविद्यालय’ के औषधीय विभाग ने चार महाद्वीपों के 17 देशों में अध्ययनकर बताया था कि भारतीयों का सांस लेने की क्षमता यूरोपीय देशों की तुलना में लगभग 30 प्रतिशत कम है। इस कमी का कारण प्रदूषण एवं धूम्रपान से फेफड़ों में आयी कमजोरी बताया गया। प्रदूषण के प्रभाव से फेफड़ों का रंग काला हो जाता है एवं लचीलापन घटने से कार्य क्षमता भी कम हो जाती है। बेल्जियम के ‘मोंटलेगिया हास्पिटल’ के चिकित्सकों का अध्ययन दर्शाता है कि कोरोना वायरस मनुष्य के दोनों फेफड़ों को संक्रमित करता है, जबकि निमोनिया का वायरस एक को ही प्रभावित करता है। ‘आयआयटी-खडगपुर’ के शोध के अनुसार महीन कण ‘पीएम 2.5’ एवं ‘नाइट्रोजन डाय-आक्साइड’ कोरोना मरीजों के लिए ज्यादा घातक है एवं इनसे मृत्युदर भी बढ़ जाती है।
‘कार्बन मोनो-आक्साइड’ प्राणवायु (आक्सीजन) की तुलना में 200 गुना तेजी से खून के हिमोग्लोबिन से मिलकर उसकी प्राणवायु धारण क्षमता को घटाती है। श्वसन के दौरान ली गयी प्राणवायु रक्त के हिमोग्लोबिन से मिलकर ही फेफड़ों तक पहुंचती है। सर्दी के मौसम में वायु प्रदूषण बढ़ने की समस्या तो प्रतिवर्ष हमारे यहां पैदा होती है, परंतु इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण इस पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। दिल्ली के आसपास के राज्यों में पराली जलाने तथा देशभर में पांच दिवसीय दीपावली पर पटाखे जलाने से प्रदूषण स्तर काफी बढ़ जाता है। इस वर्ष कई प्रयासों के बावजूद बढे प्रदूषण के कारण कई शहरों को ‘वायु गुणवता सूचकांक’ (एक्यूआय) एवं कोरोना का संक्रमण भी झेलना पडा। जाहिर है, सर्दी के मौसम एवं बढ़ते वायुप्रदूषण के इस समय में कोविड-19 की रोकथाम के निर्देश का सख्ती से पालन ही राहत दे सकता है।(सप्रेस)
[block rendering halted]