अशोक भारत

कोरोना वायरस से पैदा हुई कोविड-19 बीमारी ने दुनियाभर में कहर ढा रखा है, जबकि इससे बचने-निपटने में एक हद तक आत्मानुशासन, संयम और स्वास्थ्य-सुविधाएं कारगर साबित हो रहे हैं। क्या है, इनकी मौजूदा हालत?

भारत समेत दुनिया के कई देश इस समय नए कोरोना वायरस के तेजी से फैल रहे संक्रमण का सामना कर रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर से देश में त्राहिमाम मचा हुआ है। ‘आईआईटी – कानपुर’ के एक अध्ययन के अनुसार देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर, पहले की तुलना में करीब तीन गुना ज्यादा तीव्र है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ संक्रमण के तेजी से फ़ैलने के पीछे चार प्रमुख कारण मानते हैं। इनमें कोरोना के नए प्रकार का फैलाव, पूर्व में संक्रमित लोगों में प्रतिरोधक क्षमता का खत्म होना, भारत में वायरस के दोहरे बदलाव और कोरोना-अनुकूल व्यवहार के पालन में भारी लापरवाही शामिल है।

नए वायरस के लक्षण बेहद अलग हैं। इनमें आंखों से पानी आना, सूजन और लालपन रहना,  पेट में ऐंठन, उल्टी आना, दस्त जैसी समस्याएं शामिल हैं। बीमारी के दौरान और ठीक होने पर कई हफ्ते तक थकान महसूस होना, नींद की कमी, मनोभ्रम, कानों में झनझनाहट और सुनने में दिक्कत, लंबे समय तक बदली हुई आवाज में खांसी आना, छाती में बेचैनी के साथ सांस लेने में दिक्कत, तेजी से दिल धड़कना, सूजन तथा भोजन की महक और स्वाद महसूस न कर पाना शामिल है।

वायरस के तेज फैलाव के कारण कई राज्यों ने लॉकडाउन का ऐलान किया है। स्कूल, कॉलेज बंद हो गए हैं। अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी हो गई है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोविड मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, अस्पतालों में बेड कम पड़ रहे हैं। दवाओं की कालाबाजारी की भी सूचना मिल रही है। मध्यप्रदेश में 12 लाख आबादी वाले शहडोल जिले के मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से मरीजों के मरने की खबर आ रही है। हालांकि जिला प्रशासन एवं मेडिकल कालेज के अधिकारी ऑक्सीजन की कमी से मरने की बात से इनकार करते हैं, जबकि मृतकों के परिजनों का कहना है कि ऑक्सीजन की कमी से ही मौत हुई हैं। यह चिंताजनक है कि कोरोना का नया स्ट्रेन युवाओं और बच्चों को लक्ष्य कर रहा है। सरकार के द्वारा किए जा रहे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। इस महामारी की चपेट में लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है और करोड़ों संक्रमण के शिकार हैं। 

सवाल उठता है कि कोरोना की दूसरी लहर ने इतना विकराल रूप कैसे ले लिया? विशेषज्ञ बताते हैं कि महामारी की दूसरी या तीसरी लहर प्रायः आती ही है। यूरोप के कुछ देशों में यह पहले ही दस्तक दे चुकी है। जाहिर है, कोरोना की दूसरी लहर की संभावना थी, मगर सवाल यह है कि चूक कहां हुई, जिस वजह से आज भारी तबाही का सामना करना पड़ा रहा है? कोरोना की दूसरी लहर पहले से भी ज्यादा विकराल रूप ले चुका है। पहली लहर थमने के बाद लोग लापरवाह हो गए थे। ‘दो गज दूरी, मास्क है जरूरी’ – सिर्फ नारा बनकर रह गया था। शायद लोगों ने यह मान लिया था कि कोरोना अब चला गया है।

सरकार और प्रशासन की तरफ से जो सजगता बरतनी चाहिए थी, उसमें कोताही हुई। बड़ी-बड़ी चुनावी सभाएं, रोड-शो में राजनीतिक दलों के बड़े बड़े नेता शामिल हुए, जिनमें सत्तारूढ़ दल के प्रमुख नेता भी शामिल हैं। इन सभाओं, रैलियों में कोरोना दिशानिर्देश का पालन नहीं हुआ। जब जिम्मेदार पद पर आसीन नेताओं ने ही कोरोना के दिशानिर्देशों की धज्जियां उड़ाईं तो जनता पर इसका असर होना स्वाभाविक था। जनता ने भी इस प्रकार व्यवहार करना शुरू किया मानो कोरोना खत्म हो गया। न सामाजिक दूरी का ध्यान रखा गया और न मास्क का इस्तेमाल ही किया गया। क्रिकेट मैच, कुंभ मेले के आयोजन की अनुमति देना अब देश पर भारी पड़ रहा है। दक्षिण भारत के एक राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि स्थिति बहुत खराब है, लेकिन इसकी जानकारी को दबाया गया है। समाचार दबा देने से बीमारी नहीं मिटती। यह हमारी राज व्यवस्था के कर्ता-धर्ता का रवैया  है।

कोरोना का टीकाकरण चल रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि टीकाकरण के बाद भी कोरोना हो सकता है। टीकाकरण के बाद कई लोगों के पॉजिटिव पाए जाने की सूचना है इसलिए टीकाकरण के बाद भी मास्क के इस्तेमाल, सामाजिक दूरी बनाए रखने आदि कोरोना दिशानिर्देशों के पालन करने की आवश्यकता है। ‘हर्ड इम्यूनिटी’ के लिए साठ से अस्सी फीसदी  लोगों का टीकाकरण आवश्यक है जो भारत जैसे देशों में दूर की कौड़ी है। ‘नीति आयोग’ के डॉक्टर विजय पाल का कहना है कि 100 करोड लोगों को टीकाकरण के लिए 200 करोड़ टीकों की आवश्यकता होगी जो कि फिलहाल संभव नहीं है। इसलिए आवश्यकता अनुसार टीकाकरण किया जा रहा है।

ऐसी स्थिति में सावधानी ही बचाव का सर्वोत्तम उपाय है। इसलिए कोरोना दिशानिर्देश का कडाई से पालन आवश्यक है। साथ ही टीकाकरण कार्यक्रम में तेजी लाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। जैसा कि विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि पर्यावरण असंतुलन एवं मनुष्यों में जंगली जानवरों को मारकर खाने की बढ़ रही प्रवृत्ति के कारण भविष्य में भी इस प्रकार की महामारी आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए स्वास्थ्य का एक मजबूत  ढांचा राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक खड़ा करने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार, स्वयं सेवी संस्थाओं एवं कंपनियों को मिलकर काम करना चाहिए। सरकारी आधारभूत संरचना एवं विशेषज्ञता, स्वयंसेवकों की सेवा एवं कंपनियों के संसाधन से एक बेहतर स्वास्थ्य का ढांचा बनाना आज वक्त की मांग है, ताकि भविष्य में इस प्रकार की किसी भी चुनौती का हम पूरी क्षमता से सामना कर सकें। (सप्रेस)

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