साल-सवा साल के कोविड-19 के दौर ने हमें इतना तो बता ही दिया है कि किसी आपदा से निपट पाने में हम बेहद फिसड्डी हैं। लॉकडाउन, दवाओं, अस्पतालों, ऑक्सीजन आदि जीवन रक्षक जरूरतों की बदइंतजामी ने हजारों लोगों के जीवन पर संकट खडा कर दिया है। सवाल है कि क्या हम कभी अपनी इन गलतियों से कुछ सीख भी पाएंगे?
कोरोना की दूसरी लहर ने देश में कोहराम मचा दिया है। कोरोना मरीजों की विश्व तालिका में अपने दो लाख केस प्रतिदिन के आंकडे के साथ भारत, अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। कहा जा रहा है कि यह अब और ऊपर जायेगा। पौने दो लाख से अधिक लोग देश में इस बीमारी से मर चुके हैं। पिछले चार हफ्तों में पॉजिटिव मामलों की दर में साढ़े तीन गुना इजाफा हुआ है।
कोरोना की पहली लहर के समय भी हमें तैयारी का पूरा अवसर मिला था, लेकिन हम उसका फायदा उठाने में विफल रहे। तब भी हालात नियंत्रण के बाहर होने लगे थे, पर जल्द ही नैसर्गिक रूप से बीमारी कम होने लगी। अमेरिका, इंग्लेंड जैसे देशों की तुलना में भारत व एशिया के अन्य देशों में वायरस का प्रभाव कम घातक था। बड़े-बडे़ विशेषज्ञ भी इसका अनुमान ही लगा पा रहे थे कि वायरस ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है, लेकिन हमने अपनी पीठ थपथपाना शुरु कर दिया कि जो बड़े-बड़े देश नहीं कर पाये वह हमने कर दिखाया।
हमारे विशेषज्ञ हमें चेता रहे थे कि दूसरी लहर भी आयेगी जो पहली लहर से भी ऊंची (बड़ी) होगी और वायरस में परिवर्तन के कारण ज्यादा घातक भी हो सकती है। दोनों लहरों के बीच का जो समय हमें मिला, उसमें हम दूसरी लहर से मुकाबले की तैयारी कर सकते थे। हमने पुनः यह अवसर गंवा दिया। वैक्सीन की खोज ने हमें आत्ममुग्ध बना दिया और हम देख रहे हैं कि सब कुछ कम पड़ रहा है – मरीजों के लिए बिस्तर, दवाइयां, ऑक्सीजन, वेन्टीलेटर आदि। ट्रेसिंग, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट पर्याप्त नहीं हैं। वैक्सीन भी कम पड़ रही है।
मजदूरों ने वापस लौटना शुरु कर दिया है। यह लगभग पहली लहर के समय की पुनरावृत्ति है। यानी हमने कोई सबक नहीं सीखा। गुजरात हाइकोर्ट ने टिप्पणी की है कि लोग सोच रहे हैं कि उन्हें भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया है। ‘एम्स-भोपाल’ में सामान्य मरीजों का ‘ऑउटडोर पेशेंट डिपार्टमेंट’ (ओपीडी) व आपरेशन बंद हैं, वहां अब सिर्फ कोरोना मरीज ही भर्ती किये जा रहे हैं। सोचिये, ऐसे में दूसरी अनेक बीमारियों के गंभीर रोगी कहां जायेंगे? ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक टेडोस एथेनाम ग्रेबियेसस ने बिल्कुल ठीक कहा है कि जन-स्वास्थ्य उपायों में निरंतरता का न होना, आत्मसंतुष्टि और भ्रम के कारण ही कोविड-19 संक्रमण बढ रहा है और मौतें हो रही हैं।
सबसे ज्यादा निराशाजनक और गैर-जिम्मेदार व्यवहार हमारे राजनैतिक नेतृत्व का रहा। उन्होंने दूसरी लहर की तैयारी में गंभीरता नहीं दिखाई। वे लोगों से मास्क व सोशल-डिस्टेंसिंग की बात करते रहे, लेकिन चुनाव में जिस तरह से ‘कोविड एप्रोप्रिएट बिहेवियर’ की धज्जियां उड़ाते रहे वह शर्मनाक था। जिस तरह बड़ी संख्या में लोग पीड़ित हो रहे हैं, गंभीर रोगियों की संख्या बढ रही है और मौतें हो रही है उसके लिए हमारा शीर्ष राजनैतिक नेतृत्व जिम्मेदार है। समय रहते वह चेता नहीं। यह एक गंभीर अपराध है। चिंताजनक बात यह है कि बीमारी अब छोटे शहरों व गांवों में भी पहुंच रही है। सभी उम्र के लोग प्रभावित हो रहे हैं।
क्या हमारा नेतृत्व इस बार का कुंभ मेला रद्द नहीं कर सकता था? दिये और थाली जैसी बातें फिर शुरू हो गई हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि कुंभ में मां गंगा की कृपा से कोरोना नहीं फैलेगा। कुंभ और मरकज की तुलना ना करें। हरिद्वार में कोरोना मामलों में 100 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई है। मघ्यप्रदेश की पर्यटन और संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने इंदौर एअरपोर्ट पर बिना मास्क के पूजा की। अमरनाथ यात्रा के रजिस्ट्रेशन की बात हो रही है। होना तो यह था कि राजनैतिक नेतृत्व यह कहता कि हम चुनाव में भीड़ नहीं जुटायेंगे। डिजिटल माध्यम व व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से प्रचार करेंगे। बचा पैसा कोरोना के लिए देंगे। चुनाव वाले राज्यों में भी कोरोना तेजी से फैल रहा है।
कोरोना से होने वाली मृत्यु के बारे में भी काफी गफलत है। उदाहरणार्थ एक आंकड़े के अनुसार चार दिनों में अकेले भोपाल में 133 मौते हुईं जिनमें से अधिकतर का दाह संस्कार कोविड प्रोटोकाल से किया गया, जबकि इसी अवधि में सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूरे मध्यप्रदेश में सिर्फ 24 मौतें कोरोना से हुईं। इन दोनों आंकड़ों के बीच बड़ा फर्क यह दर्शाता है कि मौत के आंकड़े ठीक ढंग से दर्ज नहीं किये जा रहे। भविष्य में कोई अनुसंधानकर्मी कोरोना लहर के दौरान मृत्यु एवं कोरोना काल के पूर्व में मृत्यु के आंकड़ों को श्मशान घाट के रजिस्टर से एकत्रित कर यह देख सकता है कि क्या कोरोना काल में मृत्यु के आंकड़ों में कोई तुलनात्मक असाधारण वृद्धि पायी गई। यदि मृत्यु के कारण को दर्ज किया गया है तो उसे भी देखा जा सकता है। ऐसे अध्ययन में कोरोना काल में मृत्यु की दर में वृद्धि की संभावना काफी अधिक है।
पहली व दूसरी लहर के पूर्व में मिले समय को खोने के बाद अभी भी हमारे पास अवसर है। हम आशा कर सकते हैं कि वैक्सीन से हम कोरोना को समाप्त या नियंत्रित कर सकते हैं। दरअसल मास्क, सोशल-डिस्टेंसिंग, कर्फ्यू, लॉकडाउन आदि से कोरोना संक्रमण की गति को कम किया जा सकता है, समाप्त नहीं किया जा सकता। इन उपायों में ढील देते ही संक्रमण तेजी से बढता है। लंबे समय तक हम इन्हें नहीं अपना सकते।
हमारे पूर्व के अनुभव बताते हैं कि वैक्सीन से हमने चेचक, पोलियो, मम्स, मीजल्स आदि बीमारियों पर काबू पाया है। हमने कोरोना वैक्सीन देना शुरू तो किया है लेकिन यहां भी हम अपने देश के नागरिकों की जान की कीमत पर वैक्सीन डिप्लोमेसी में उलझ गये। हमने पर्याप्त तैयारी और उचित प्लानिंग नहीं की और अब हम वैक्सीन की कमी से जूझ रहे हैं। हम यह भी देख रहे हैं कि वैक्सीन के दोनों डोज लगवाने के बाद भी लोगों को गंभीर कोरोना हो रहा है। वैक्सीन से व्यक्तिगत प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता (हर्ड इम्यूनिटी) उत्पन्न हो। इसके लिए जरूरी है कि तेजी से वैक्सीनेशन किया जाये, ताकि जल्द-से-जल्द ‘हर्ड इम्यूनिटी’ प्राप्त की जा सके।
धीमा टीकाकरण बेकार हो सकता है, क्योंकि टीकाकरण से प्राप्त व्यक्तिगत प्रतिरोधक क्षमता यदि 6-7 दिन में समाप्त होती है या वायरस अपना स्वरूप बदल लेता है तो नया संक्रमण हो सकता है। यहां भी हम पिछड़ रहे हैं। कहने को हम गर्व से कह रहे हैं कि हम सबसे तेजी से टीकाकरण करने वाले देश हैं, पर जहां इंग्लेंड और अमेरिका में क्रमश: 40 और 33 प्रतिशत जनसंख्या को कम-से-कम एक डोज दे दिया गया है, वहीं भारत सिर्फ 2.6 प्रतिशत जनसंख्या का टीकाकरण कर पाया है। अमेरिका ने तय किया है कि वह सितम्बर 2021 तक अपना टीकाकरण लक्ष्य प्राप्त कर लेगा।
यदि हम इसी गति से टीकाकरण करते हैं तो हमें अपनी 75 प्रतिशत जनसंख्या (हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने हेतु आवश्यक संख्या) का टीकाकरण करने में 3 साल 6 माह लग जायेंगे। इसी बीच यदि कोई ऐसा नये स्वरूप वाला वायरस आ जाता है जिस पर यह वैक्सीन कारगर न हो, तो संक्रमण की श्रंखला तोड़ना मुश्किल हो सकता है। अतः आवश्यक है कि हम तेजी से वैक्सीनेशन करें। इसके लिए ‘टीका उत्सव’ मनाने के बजाय हम टीके की उपलब्धता सुनिश्चित करें, लोगों की उस तक आसान पहुंच बनायें, लोगों को टीके के प्रति जागरुक करें, जन सहयोग लें, सामाजिक संगठनों को जोड़ें और सरकार राजनैतिक प्रतिबद्धता दिखाये तो हम आसानी से टीकाकरण का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं एवं संक्रमण की श्रंखला को तोड़ सकते हैं।(सप्रेस)
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