अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा किए गए शोध अध्ययन से उभरे निष्कर्ष
बैंगलुरु, 10 फ़रवरी 2021: कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूलों के लगातार बन्द होने से बच्चों के सीखने के स्तर पर गम्भीर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सीखने के स्तर में हुए इस नुक़सान को दो तरह से देखा जाना होगा। एक तो कक्षा के नियमित पाठ्यक्रम को सीखने में हुआ नुक़सान, जो अगर स्कूल खुले होते तो नहीं होता। दूसरा नुक़सान यह कि बच्चे पिछली कक्षा में सीखे हुए कौशल भी ‘भूलने’ लगे हैं। अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय ने ‘कोरोना महामारी के दौरान बच्चों के सीखने के स्तरों में हुए नुकसान’ विषय पर अपने ज़मीनी शोध अध्ययन रिपोर्ट को आज बैंगलूरु में जारी किया।
जनवरी 2021 में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा पाँच राज्यों के 44 ज़िलों में 1137 सरकारी स्कूलों की प्राइमरी कक्षाओं के 16067 बच्चों के साथ किए गए अध्ययन में पिछली कक्षाओं में सीखे गए कौशल भूलने और कक्षा के अपेक्षित स्तर से पिछड़ने के स्वरूप और इसकी व्यापकता का खुलासा होता है।
जमीनी अध्ययन से सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आया कि भाषा और गणित में प्राथमिक कक्षाओं में क्रमशः 92% और 82% बच्चे पिछली कक्षा में सीखे कम-से-कम एक विशेष बुनियादी कौशल को भूल चुके हैं। बच्चे भाषा और गणित के बुनियादी कौशल प्राथमिक कक्षाओं में हासिल करते हैं जो दूसरे सभी विषयों को पढ़ने का आधार बनते हैं। उदाहरण के लिए पाठ के किसी अंश को समझते हुए पढ़ना, पढ़ी हुई सामग्री का सार अपने शब्दों में बताना और संख्याओं का जोड़-घटाना करना आदि इन बुनियादी कौशलों में शामिल हैं।
दो हज़ार से भी अधिक शिक्षकों और अज़ीम प्रेमजी फ़ाउण्डेशन के 400 से अधिक सदस्यों ने इस अध्ययन में हिस्सा लिया और इसमें मार्च 2020 में जब स्कूल बन्द किए गए उस समय की कक्षा के हिसाब से बच्चों को जो बुनियादी कौशल हासिल थे, उनकी तुलना में जनवरी 2021 में बच्चों में विद्यमान कौशलों का मूल्यांकन किया।
अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के कुलपति अनुराग बेहार का कहना है कि, ‘कोविड-19 ने भारत समेत पूरी दुनिया को हिला दिया है। एक समूचे शैक्षणिक वर्ष की बर्बादी और साथ में बच्चों के अकादमिक रूप से पिछड़ने की परिघटना इसका ही एक गम्भीर प्रभाव है। इस गंभीर व व्यापक नुक़सान का सामना करना होगा। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि जब स्कूल खोले जाएँ तब शिक्षकों को इस नुक़सान की भरपाई करने का समय दिया जाना होगा और इसमें उन्हें पर्याप्त आवश्यक सहयोग प्रदान किया जाना होगा| इसके लिए समस्त राज्यों को बेहद सावधानी से और सोच-समझकर कुछ कदम उठाने होंगे, जिनमें “छुट्टियाँ ख़त्म करना, 2021 में अकादमिक वर्ष को लम्बा कर उसे आगे तक ले जाना (जो इस पर निर्भर करता है कि स्कूल कब खुलते हैं,) पाठ्यक्रम को पुनर्नियोजित करना, कॉलेज के सत्रों को पुनर्समायोजित करना आदि शामिल हैं।’
इस रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि सीखने के स्तरों में हुए नुक़सान की व्यापकता और उसका स्वरूप ऐसा है कि इसकी भरपाई के लिए हर स्तर पर कार्यवाही की ज़रूरत है। बच्चे जब स्कूलों में लौटे तो उनको ब्रिज कोर्स, पढ़ाई के घंटों में बढ़ोतरी, समुदाय का सहयोग लेने तथा उपयुक्त पाठ्यक्रम तथा पठन सामग्री के रूप में अतिरिक्त सहयोग की आवश्यकता होगी ताकि बच्चे कक्षावार बुनियादी कौशल फिर से हासिल कर सकें। इस असामान्य परिस्थिति में बच्चों में सीखने को सुनिश्चित करने के लिए शिक्षकों की क्षमता को केन्द्र में रखना होगा, विशेषतः एक ही कक्षा में सीखने के अलग-अलग स्तरों पर स्थित बच्चों के लिए आकलन और कक्षा शिक्षण के लिए किस तरह की प्रक्रियाएँ हो इसका ध्यान रखना होगा| शिक्षकों को सीखने के कौशलों को लेकर ऊपर उल्लेखित दोनों तरह के नुक़सानों की भरपाई करने का उचित समय देना होगा। साथ ही बच्चों को उत्तीर्ण घोषित करके अगली कक्षा में ले जाने की हड़बड़ी से भी बचना होगा|
इस अध्ययन की विस्तृत रिपोर्ट अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की वेबसाइट https://azimpremjiuniversity.edu.in पर उपलब्ध है।
अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की स्थापना अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 के तहत गैर-व्यावसायिक निजी विश्वविद्यालय के रूप में हुई है। विश्वविद्यालय एक न्यायपूर्ण, समतामूलक, मानवीय व टिकाऊ समाज की स्थापना के स्पष्ट सामाजिक उद्देश्य से संचालित है। शिक्षा व विकास के क्षेत्र में नई प्रतिभाओं के विकास, वर्तमान में काम कर रहे लोगों के क्षमता संवर्धन और इन क्षेत्रों में ज्ञान निर्माण में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की ख़ास भूमिका है। अज़ीम प्रेमजी फ़ाउण्डेशन इस विश्वविद्यालय का प्रायोजक है। अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की जड़ें शिक्षा के क्षेत्र में फ़ाउण्डेशन के दो दशकों की सीखों व अनुभवों में मौजूद हैं। यह विश्वविद्यालय शिक्षा व विकास के क्षेत्र में भारत के समक्ष मौजूद चुनौतियों के संदर्भ में फ़ाउण्डेशन की एक प्रमुख पहल है।