चिंतन सम्मेलन में देश भर से जुटे दो सौ से ज्यादा चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता
देश के आम लोगों को अब जगाने की ज्यादा जरूरत है क्योंकि सभी प्राकृतिक संसाधनों पर पूंजीपतियों का कब्जा हो रहा है। सरकारें तमाशबीन बनी हुई हैं। हक की आवाज बुलंद करने वालों को जेलों में ठूंसा जा रहा है। अदालतें भी इंसाफ नहीं दे पा रही हैं। शिक्षा का व्यापारीकरण हो रहा है। आम गरीब लोगों को अपने बच्चों को पढ़ाना लिखाना बहुत कठिन हो गया है। शिक्षा हद से ज्यादा महंगी हो गई है। महिलाओं पर अत्याचार रुक नहीं रहे। आम लोगों के हित में संघर्ष करने वाले संगठनों को एक मंच पर आकर अब बिना देरी किए देश के आम लोगों को जगाना होगा और उन्हें संगठित कर संघर्ष करना होगा।
ये बातें निचोड़ के रूप में अलवर में आयोजित भारत परिवार के तीन दिवसीय दूसरे राष्ट्रीय चिंतन सम्मेलन में देश भर से आए विभिन्न वक्ताओं के व्यक्त उद्गारों में से सामने आई। वक्ताओं ने चिंता व्यक्त की कि अंधाधुंध पेड़ों की कटाई, बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में नदियों को नष्ट किया जा रहा है जिससे आदिवासी, किसान,मछुआ, गंगा सहित देश भर की नदियों के किनारे बसने वाले या जंगलों के अंदर रहने वाले लोगों को पुलिस बल द्वारा खदेड़ कर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट थोपे जा रहे हैं। इन समस्याओं को समझते देखते हुए भारत परिवार ने राष्ट्रीय चिंतन सम्मेलन किया है, जो बहुत जरूरी है। हमें ऐसे चिंतन सम्मेलनों के आयोजन सभी राज्यों, जिलों और गांवों में भी करने का उपक्रम करना चाहिए।
भारत परिवार के अध्यक्ष वीरेंद्र क्रांतिकारी ने जानकारी देते हुए कहा कि भारत परिवार वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हुए मानवतावादी विचार को मानते हुए लोकतांत्रिक समाज की स्थापना करना चाहता है जिसमें मीरा, कबीर, रैदास, बिरसा मुंडा, पेरियार, भगत सिंह, अशफाक उल्ला खान, महात्मा फुले, सावित्रीबाई फुले, बाबासाहेब अंबेडकर और गांधी जैसे लोगों के सकारात्मक विचारों ने से एक नया विचार निकालकर क्रांति का सूत्रपात किया जाए।
उन्होंने भारत परिवार का परिचय देते हुए कहा कि भारत परिवार इन महापुरुषों के द्वारा देखे गए सपनों को साकार करने का एक जीवंत समूह है, जो देश और दुनिया में महिला हिंसा , मोब लिंचिंग, बलात्कार, अपराध, आपदा के वक्त मौके पर जाकर लड़ता बोलता आया है, चाहे वह नॉर्थ ईस्ट हो या पश्चिम बंगाल या कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक की समस्या ही क्यों ना हो। यह समूह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युद्ध नहीं चाहती मांएं के नारे की आवाज बुलंद करता आया है।
उन्होंने राष्ट्रीय चिंतन सम्मेलन में सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए कहा कि हम संविधान के मकसद को समझ कर स्त्रियों, बच्चों और नौजवानों को उनके मूल अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक कर एक सशक्त और वृहद भारत परिवार बनाएं जिसमें विश्व परिवार के सपनों की जगह हो, जो दुनिया के जीव जंतुओं, जानवरों, पशु पक्षियों और वनस्पति जगत व मानव के प्रति संवेदनशील होकर प्रेम, समता, न्याय, विश्व बंधुत्व को अपनाकर नव भाव का निर्माण करें और मजदूर एवं शोषित वर्गों के हित लिए सदा खड़े रहे।
अलवर के निर्वाण वन फाउंडेशन के परिसर में आयोजित इस राष्ट्रीय चिंतन सम्मेलन में सात अलग अलग सत्रों में निम्नलिखित विषयों पर चर्चा हुई। जिनमें जल,जंगल,जमीन और पर्यावरण, खेती किसानी पर मंडराते खतरे,राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर के युद्ध और मन जीवन पर बढ़ते खतरे,आजादी के 78 वर्ष बना हाशिए के समुदाय और ट्रांसजेंडर,शिक्षा और स्वास्थ्य का बढ़ता व्यापारीकरण और बेरोजगारी,पितृसत्तात्मक समाज बनाम महिलाएं आदि प्रमुख रहे। अंतिम सत्र में प्रसिद्ध और कुव्यवस्था के प्रतिरोधी विचारों के हिमायती कवियों ने कविता पाठ कर सभी को झकझोर दिया।
सम्मेलन के विभिन्न सत्रों को जिन संघर्षरत साथियों ने संबोधित किया उनमें गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रणेता अनिल प्रकाश, जोखिम मोल लेकर आदिवासियों के हक में निरंतर लड़ने वाले हिमांशु कुमार, राजाराम भादू, वरिष्ठ पत्रकार और गंगा मुक्ति आंदोलन के दिल्ली स्तरीय सचिव प्रसून लतांत, सर्वोदय जगत के अशोक भारत, युवा भारत और भारत परिवार के सलाहकार डॉ ए के अरुण, डा योगेंद्र, अलका, जीवन सिंग मानवी, हरिशंकर गोयल, ट्रांसजेंडर रवीना बरोहा,दलित चिंतक कैप्टन के एल सिरोही,उमेश तूरी,जगदीश बौद्ध,अधिक बंजारा,दिलीप कामरेड, प्रो हेमेंद्र चंडालिया,शांति यादव,तसनीम खान,नीरू यादव,जैनब सिद्दीकी,अलका,सर्वेश जैन,शिक्षाविद सरिता भारत , वीरेंद्र चौधरी, आशा कचरू, अंकिता माथुर आदि प्रमुख थे।
काव्य संध्या में गीतकार डॉ. संदेश त्यागी, कवि असद अली, राजू बिजारणिय, नईम एजाज, अमरीक सिंह अदब व राम चरण राग ने प्रस्तुति दी। इस तीन दिवसीय सम्मेलन में 16 राज्यों से दो सौ से ज्यादा कार्यकर्ता, विचारक, लेखक, पत्रकार, कलाकार इतिहासविद और शोधार्थी शामिल हुए। सम्मेलन के दौरान डॉ भरत लाल मीणा की घुमंतू सांसी जाति पुलिस बल और मानव अधिकार पुस्तक का लोकार्पण हुआ।