नई दिल्ली/इंदौर, 21 मार्च। सर्वोच्च न्यायालय ने देशभर में अनैतिक क्लिनिकल परीक्षणों से जुड़े मामलों की गंभीरता को स्वीकार करते हुए सरकार को निर्देश दिया है कि चार सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल किया जाए। यह निर्देश स्वास्थ्य अधिकार मंच द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया। याचिका में मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में हुए अनैतिक क्लिनिकल परीक्षणों पर कार्रवाई की मांग की गई है।
आज न्यायमूर्ति पमिदिघनतम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता संजय पारीख ने दलील दी कि भोपाल गैस पीड़ितों पर हुए अनैतिक परीक्षण, एचपीवी वैक्सीन परीक्षण तथा इंदौर और जयपुर में हुए अन्य क्लिनिकल परीक्षणों में दोषियों के खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। श्री पारीख ने यह भी उल्लेख किया कि क्लीनिकल परीक्षण में व्यक्तियों की मृत्यु और शारीरिक दुष्परिणाम के मामले सामने आए है और उनको अब मुआवजा नहीं मिला है । उन्होंने कहा कि क्लिनिकल ट्रायल्स रूल 2019 लागू होने के बावजूद, निगरानी और जवाबदेही तय करने की कोई ठोस प्रक्रिया विकसित नहीं की गई है।
स्वास्थ्य अधिकार मंच के अमूल्य निधि ने कहा कि इंदौर, जयपुर में अनैतिक क्लीनिकल ट्रायल में शामिल जांचकर्ताओं और एचपीवी वैक्सीन मामले शामिल स्पॉन्सर और इन्वेस्टिगेटर पर अभी तक कार्रवाई पूरी नहीं की गई है। ज्ञात हो कि वर्ष 2005 से 2020 तक 6500 लोगों की मौतें क्लिनिकल ट्रायल के दौरान हुई है और सरकार ने मात्र 217 मृतकों को ही मुआवजा दिया गया है, इसी प्रकार गंभीर शारीरिक दुष्परिणाम के 27890 मामले सामने आए है और इनमे से किसी को भी मुआवजे का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
इसी तरह भोपाल गैस पीड़ितों पर क्लिनिकल परीक्षण के संबंध में भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के अनुसार, 2004 से 2008 के बीच भोपाल गैस पीड़ितों पर क्लिनिकल परीक्षण किए गए, जिसमें 23 मौतें और 22 गंभीर दुष्प्रभाव (SAE) दर्ज किए गए।
वहीं इंदौर में हुए अनैतिक परीक्षणों में इंदौर के एक अस्पताल में 3,307 लोगों पर 76 क्लिनिकल ट्रायल किए गए, जिनमें 1,833 बच्चे शामिल थे। इनमें से 81 की मृत्यु हुई। आर्थिक अपराध शाखा (EOW) की जांच में पाया गया कि डॉक्टरों को करोड़ों रुपये का भुगतान किया गया और उनकी विदेश यात्राएं प्रायोजित की गईं, लेकिन पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिला और न ही दोषी डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्रवाई पूरी की गई। क्लीनिकल ट्रायल के लिए प्राप्त राशि में से महात्मा गांधी स्मृति महाविद्यालय के पत्र दिनांक 3.10.08 के अनुसार 10 फीसदी राशि चिकित्सा शिक्षा विभाग में जमा की जानी थी, जो अभी विचाराधीन है और जमा नहीं की गई है। रिपोर्ट में स्वयं के लिए धन स्वीकार करने और प्रायोजित विदेश यात्राएं करने वाले प्रमुख अन्वेषक के खिलाफ चिकित्सा आचार संहिता विनियमन, 2002 और संशोधित अधिसूचना के तहत कार्रवाई करने की भी सिफारिश की गई है।
आंध्र प्रदेश और गुजरात में ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) वैक्सीन परीक्षण में गंभीर अनियमितताएं पाई गईं। जांच में यह सामने आया कि आंध्र प्रदेश में 1,948 सहमति फॉर्म माता-पिता के अंगूठे के निशान के आधार पर भरे गए, जबकि 2,763 मामलों में छात्रावास वार्डन के हस्ताक्षर पाए गए। गुजरात में 6,217 सहमति फॉर्म में से 3,944 पर अंगूठे के निशान थे, जबकि 545 मामलों में अभिभावकों के हस्ताक्षर थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को गंभीर बताते हुए सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा है। न्यायालय ने कहा कि अनैतिक क्लिनिकल परीक्षणों की निगरानी और जवाबदेही तय करना आवश्यक है। इस मामले की अगली सुनवाई 25 अप्रैल 2025 को होगी।
उक्त जानकारी स्वास्थ्य अधिकार मंच, जन स्वास्थ्य अभियान, इंडिया, भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन, भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति से जुडे अमूल्य निधि, एस आर आज़ाद, एन डी जयप्रकाश ने एक प्रेस विज्ञप्ति में दी है।