16 अगस्त को ‘जनता पार्लियामेंट’ वेबिनार में स्वास्थ्य के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा
जन स्वास्थ्य अभियान राष्ट्रीय सचिवालय और जन सरोकार के तत्वावधान में 16 अगस्त को ‘जनता पार्लियामेंट’ (जनता संसद) वेबिनार के दौरान स्वास्थ्य के विभिन्न गंभीर मुद्दों और लॉकडाउन के दौरान आई चुनौतियों पर प्रस्तुति एवं चर्चा की गई। बेबिनार में शामिल व्यक्तियों ने स्वास्थ्य सेवा को अधिकार के रूप में स्थापित करने संबंधी प्रस्ताव पारित किये। इस मौके पर स्वास्थ्य सुविधा और विस्तार से जुडी अन्य मांगों के समर्थन में भी प्रस्ताव रखे गए।
जन स्वास्थ्य अभियान, जन सरोकार और विभिन्न जन संगठनों, संस्थाओं, सार्वजानिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, संसद सदस्य, विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि और देशभर के स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं ने जनता संसद में संबोधित किया। आज के इस सत्र में COVID -19 के दौर में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करते हुए, स्वास्थ्य अधिकार स्थापित करने की ज़रूरत, निजी स्वास्थ्य सेवाओं का नियंत्रण, और उनका जनहित में उपयोग, COVID -19 के दौरान और उसके बाद स्वास्थ्य और संबद्ध कर्मियों के अधिकार, COVID -19 के दौरान और उसके बाद स्वास्थ्य और संबद्ध कर्मियों के अधिकार, स्वास्थ्य व्यवस्था में जनवादी बदलाव अदि विषयों पर गंभीर चर्चा हुई।
कोविड के साये में बीते 5- 6 महीनों के अनुभवों को विभिन्न साथियों ने साझा किये, जिसमें इस महामारी से निपटने के लिए अनियोजित और जल्दबाजी में लागू नीतिगत फैसले, जो कि सरकार की महामारी से लड़ने की सरकारी खामियों को उजागर करते हैं। इसमें एक और कमजोर सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली और दूसरी और निजी स्वास्थ्य क्षेत्र द्वारा गरीब मजबूरों का आर्थिक शोषण सामने आया । परिणामस्वरूप सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में लोगों को इलाज नहीं मिला पाया और निजी संस्थानों में सरकारी दिशा-निर्देशों का घोर उल्लंघन हुआ। इन अनुभवों ने एक बार फिर से सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने की जरूरत को प्रमुखता से उभारा, जो सामुदायिक सहभागिता की जरूरत को रेखांकित करता है।
केरल सरकार की स्वास्थ्य और समाज कल्याण मंत्री के. के. शैलजा ने सत्र का उद्घाटन करते हुए उन्होंने सभी के लिए स्वास्थ्य देखभाल को प्रभावी रूप प्रदान करने के लिए सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत बनाने और सार्वजानिक क्षेत्र में निवेश करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने केरल में सरकार द्वारा जन-स्वास्थ्य उन्मुखीकरण के साथ सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए किए गए प्रयासों पर विस्तार से बात की ।
संसद सदस्य, श्रीमती वंदना चव्हाण ने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार पर बहुत गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि “घरेलू हिंसा महामारी” को आपात स्थिति के साथ संबोधित करने की आवश्यकता है।
सांसद श्री रवि प्रकाश वर्मा ने कहा कि महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की कमजोरियों को सामने लाया है और स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत और लोकतांत्रिक बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि महामारी के समय जीवन रक्षक दवाओं को पेटेंट संरक्षण में लाया जाना चाहिए और लोगों के दुख से लाभ अर्जित करने के किसी भी प्रयास का दृढ़ता से मुकाबला करना चाहिए।
पूर्व सांसद श्री राजीव गौड़ा ने जन स्वास्थ्य अभियान की मांग का समर्थन किया और कहा कि स्वास्थ्य पर सार्वजनिक निवेश को तत्काल जीडीपी के 3% बढ़ाया जाना चाहिए। सत्र की अध्यक्षता डॉ. अभय शुक्ला और रेनू खन्ना ने की। आज के सत्रों में अन्य प्रमुख वक्ता थे – इंद्रनील मुखोपाध्याय, डॉ. टी.सुंदर रमन, थेलमा नारायण, डॉ. बी इक़बाल, अमूल्य निधि, वाय. के संध्या, मरीजों के समूह (एचआईवी, हेप सी), छाया पचौली, गौरंगा महापात्रा, शकुंतला भालेराव, डॉ. फौद हलीम, इनायत कक्कड़, अमीर खान, सुरेखा, रविंद्रनाथ, हरजीत भट्टी, संतोष / मानसिंह, सूर्य प्रकाश, ओबलेश संध्या पीडब्ल्यूडी (शम्पा), हसीना, चंदन कुमार, डॉ. शकील, बिलाल खान, एस.आर. आजाद आदि ।
जन स्वास्थ्य अभियान, जन सरोकार से जुडे श्री अभय शुक्ला, ऋचा चिंतन, अमूल्य निधि, संध्या वाई ने बताया कि स्वास्थ्य सत्र के दौरान विभिन्न वक्ताओं ने अपने अनुभवों और समझ को रखते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार में आवश्यक सुधार हेतु कुछ प्रस्ताव रखे गए, जिन्हें आम नागरिकों ने सर्वानुमति से पारित किये। चर्चा के दौरान पारित प्रमुख प्रस्ताव निम्नांकित है :
- केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर स्वास्थ्य सेवा के अधिकार को कानूनी अधिकार के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता हैं। इस प्रकार के कानूनों के माध्यम से पूरी आबादी के लिए गुणवत्तापूर्ण और व्यापक स्वास्थ्य सभी की पहुंच में सुनिश्चित करनी चाहिए। कानून में लोगों के स्वास्थ्य निर्धारकों की पहुंच और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों से सुरक्षा सुनिश्चित की जाना चाहिए । यह कानून भारतीय संविधान के अनुसार स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवा को मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित करने वाला होना चाहिए।
- स्वास्थ्य देखभाल पर सार्वजनिक खर्च में पर्याप्त वृद्धि करने की जरूरत हैं, अल्पावधि के लिए यह वृद्धि सकल घरेलू उत्पाद का 3.5%, और मध्यम अवधि के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 5% होना चाहिए, जिसमें केंद्र की सहभागिता कम से कम 60% हिस्सा तथा 40% हिस्सा राज्यों द्वारा वहन किया जाये ।
- प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक तीनों स्तर पर गुणवत्ता के साथ स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का प्रसार और इसे मजबुत करना चाहिए और साथ ही इन सभी सार्वजनिक सुविधाओं में आवश्यक दवाओं और सम्पूर्ण डायग्नोस्टिक्स तक सभी की पहुँच सुनिश्चित होना चाहिए साथ ही यूजर फी से भी मुक्ति मिलना चाहिये।
- निजी स्वास्थ्य क्षेत्र का नियंत्रण करने के लिए, दरों के नियमन पर जोर देते हुए Clinical establishment act (CEA 2010) का तुरंत प्रभावी तरीके से लागू करना।
- रोगी अधिकार चार्टर को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाते हुए, लोगों के अनुकूल और शीघ्र उत्तरदायी एक प्रभावी रोगी शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना होना चाहिए, जो कि अस्पतालों और डॉक्टरों दोनों के साथ डील करेगा।
- निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को सार्वजनिक व्यवस्था के तहत लाया जाये, और सभी को मुफ्त स्वस्थ्य सेवाएं देने वाला प्रभावी मॉडल बनाया जाये, जो PMJAY की जगह एक बेहतर विकल्प दे सकेगी ।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण में शामिल आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता और सहायकों सहित सभी संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों को नियमित करें और सुनिश्चित करें कि उन्हें सभी श्रम कानूनों से रक्षा प्राप्त हो। तब तक उन्हें न्यूनतम मजदूरी की गारंटी देनी चाहिए । सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के सभी स्तरों के कर्मचारियों को पर्याप्त कौशल प्रशिक्षण, उचित वेतन और प्लेसमेंट के साथ ही सामाजिक सुरक्षा के सभी प्रावधानों के साथ अच्छा कामकाजी पर्यावरण उपलब्ध कराया जाना चाहिए ।
- शासकीय कॉलेजों में सभी स्वास्थ्य कर्मियों की क्षमता निर्माण सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण में सार्वजनिक निवेश बढ़ाएँ। पर्याप्त संख्या में स्थायी पदों का निर्माण कर अच्छी तरह से शासित और पर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यबल की स्थापना करें। सभी मौजूदा निजी संस्थानों, जैसे मेडिकल और नर्सिंग कॉलेजों के बेहतर विनियमन के लिए पारदर्शी तरीके से एक मजबूत तंत्र स्थापित करें और नए निजी मेडिकल कॉलेजों की स्थापना और कैपिटेशन फीस पर रोक लगायें ।
- राज्य सरकार के अधिकार और स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) और नर्सिंग काउंसिल ऑफ इंडिया में मुलभूत परिवर्तन करें । राज्यों को मेडिकल कॉलेजों में छात्रों की भर्ती करने के लिए अपने विशेष नियमों और प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए स्वायत्तता दी जानी चाहिए (जिसमें NEET परीक्षा के लिए विकल्प नहीं है), छात्रों और कर्मचारियों की भर्ती में आरक्षण लागू करना चाहिए, योग्यता और पारदर्शिता हो और कठिन क्षेत्रों में काम करने के लिए उपयुक्त उम्मीदवार को ढूंढने में मददगार प्रक्रिया हो।
- असंगठित क्षेत्र में कामकाजी आबादी के वर्गों को शामिल करने के लिए कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ESIS) का विस्तार करें;
- भेदभाव का अंत – जाति, समुदाय / धर्म आधारित भेदभाव के सभी रूपों को समाप्त करने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाएं ।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति के ढांचे के दायरे में संशोधित जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के क्रियान्वयन और एकीकरण के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य के केसेस के लिए व्यापक उपचार और देखभाल सुनिश्चित हो । मानसिक स्वास्थ्य के लिए बजट में वृद्धि करके प्राथमिक देखभाल, स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों में सस्ती गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य सहायता सेवाओं की आसानी से पहुंच सुनिश्चित करें ।
- सामुदायिक स्तर से लेकर सभी स्तरों तक स्वास्थ्य देखभाल अधिकारों के लिए नागरिकों की शिकायतों और विवादों पर कार्यवाही के लिए एक प्रभावी, त्वरित और सिर्फ शिकायत निवारण प्रणाली का संचालन किये जाने की जरूरत हैं ।
- आधिकारिक डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफार्मों के माध्यम से नागरिकों की गोपनीयता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को रोगी के डेटा को किसी भी निजी संस्थान या कॉर्पोरेट निकाय के साथ साझा नहीं करना चाहिए ।
- सरकार, सभी सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को शामिल करते हुए एक स्वास्थ्य सूचना प्रणाली (HIS) के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित करेगी। यह प्रणाली केंद्रीय और राज्य सरकारों के लिए स्वास्थ्य संकेतकों पर नज़र रखने और निगरानी और विनियमों की पूर्ति के लिए उपयोगी होगी, जबकि यह नागरिक निगरानी और वकालत को भी मजबूत करेगी।