संपूर्ण क्रांति विद्यालय, सर्वोदय आंदोलन और परमाणु-विकिरण विरोधी अभियानों की एक निर्भीक आवाज अब खामोश हो गई है

सूरत, 29 अप्रैल। सर्वोदय आंदोलन की वरिष्ठ नेत्री, चिकित्सक, गांधीवादी कार्यकर्ता और परमाणु ऊर्जा नीति की आलोचक डॉ. संघमित्रा गाडेकर Dr. Sanghamitra Gadekar का 28 अप्रैल की देर रात निधन हो गया। वे 78 वर्ष की थीं। हृदय रोग से पीड़ित डॉ. गाडेकर की सूरत के एक अस्पताल में ओपन हार्ट सर्जरी के दौरान मृत्यु हो गई। अंतिम समय में उनकी बेटी, पुरातत्वविद् डॉ. चारुस्मिता गाडेकर, उनके साथ थीं।

वेडछी स्थित संपूर्ण क्रांति विद्यालय की प्रमुख रहीं डॉ. गाडेकर को देशभर में ‘उमा दीदी’ या ‘पुषु दीदी’ के नाम से जाना जाता था। वे गांधी-विनोबा-जेपी की विचारधारा की संवाहिका थीं, जिन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय और पर्यावरण के क्षेत्र में मौन लेकिन प्रभावशाली भूमिका निभाई।

परमाणु ऊर्जा के खिलाफ एक वैज्ञानिक और नैतिक आवाज

डॉ. संघमित्रा गाडेकर Dr. Sanghamitra Gadekar और उनके जीवनसाथी डॉ. सुरेन्द्र गाडेकर भारत में परमाणु ऊर्जा नीति के दो सबसे प्रमुख वैज्ञानिक आलोचक माने जाते हैं। जब सरकारें विकास के नाम पर परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही थीं, तब इस युगल ने इन परियोजनाओं से जुड़े विकिरण जनित स्वास्थ्य जोखिमों और पर्यावरणीय खतरों पर ध्यान आकर्षित किया।

उन्होंने सन् 1980 और 90 के दशक में देश के विभिन्न परमाणु संयंत्रों— विशेषकर तारापुर, काकरापार, कुडनकुलम और राजस्थान एटॉमिक पावर स्टेशन के आस-पास स्थित गांवों में जाकर मेडिको-एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वेक्षण किए। उनके अध्ययन यह दिखाते थे कि इन क्षेत्रों में जन्मजात विकृतियाँ, बांझपन, त्वचा रोग और कैंसर की घटनाएं औसत से अधिक थीं।

डॉ. गाडेकर दंपती ने गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासी क्षेत्रों में सादगीपूर्वक रहकर विकिरण प्रभावों पर स्थानीय समुदायों के बीच जागरूकता अभियान चलाया। वे मानते थे कि “परमाणु ऊर्जा एक झूठा विकास मॉडल है जो जनता के स्वास्थ्य, पर्यावरण और लोकतंत्र — तीनों के लिए खतरा है।”

उन्होंने ‘अनुमान’ और ‘लोक विज्ञान’ जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर वैज्ञानिक भाषा को आम जनता की समझ में लाने की कोशिश की, ताकि नीतियों को जनता की भागीदारी से चुनौती दी जा सके। भारत सरकार द्वारा अक्सर ‘गोपनीयता’ के नाम पर परमाणु परियोजनाओं की जानकारी छिपाने की प्रवृत्ति के खिलाफ वे आवाज उठाती रहीं।

गांधीवादी परंपरा की सच्ची उत्तराधिकारी

डॉ. गाडेकर का जन्म महादेव देसाई के परिवार में हुआ, जिन्होंने महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी थी। उनके पिता नारायण देसाई, गांधी कथा के प्रवर्तक और गांधी विचार के वैश्विक दूत थे। वे वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता देसाई एवं समाजवादी चिंतक अफलातून की बड़ी बहन थीं। उनके परिवार की जड़ें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, समाजसेवा और सत्याग्रह से गहराई से जुड़ी रहीं।

उन्होंने अपने चिकित्सकीय जीवन की शुरुआत उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य सेवा में की, जहाँ ग्रामीण महिलाओं की स्वास्थ्य स्थितियों ने उन्हें गहरे प्रभावित किया। बाद में वे बनारस के वसंत महिला महाविद्यालय से जुड़ीं और फिर संजीवनी अस्पताल, सराय मोहाना में लंबे समय तक सेवाएं दीं।

लेकिन चिकित्सा उनके लिए केवल एक पेशा नहीं, सामाजिक चेतना का माध्यम था। वे गरीबों और वंचितों की सेवा को अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानती थीं। बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के शिविरों में भी उन्होंने मेडिकल छात्रों के साथ मिलकर सेवाएँ दीं।

वैकल्पिक आजीविका, खादी और पुनर्निर्माण के प्रयास

गुजरात दंगों के बाद जब अंजार क्षेत्र के मुस्लिम रंगरेज समुदाय सामाजिक बहिष्कार के शिकार हो गए, तब डॉ. गाडेकर ने उनके साथ मिलकर जैविक रंगों से युक्त खादी उत्पादन की एक सामाजिक-आर्थिक पहल शुरू की। इसके माध्यम से उन्होंने सामाजिक पुनर्वास, सांप्रदायिक सौहार्द और स्थानीय आत्मनिर्भरता को एक साथ जोड़ा।

संपूर्ण क्रांति विद्यालय में उन्होंने युवाओं के लिए शिविर, संवाद, प्रशिक्षण और गांधी-विनोबा साहित्य का गहन अध्ययन शुरू करवाया। उनकी आत्मीयता और अनुशासन, दोनों, हर आगंतुक को प्रभावित करते थे।

विनम्र विदाई, गहरी अनुपस्थिति

डॉ. गाडेकर का जाना केवल एक गांधीवादी कार्यकर्ता की नहीं, एक वैज्ञानिक विवेक और सामाजिक न्याय की सजग प्रहरी की अनुपस्थिति है। सर्वोदय आंदोलन, वैकल्पिक विज्ञान की पैरोकारी करने वाले मंच, और भारत के शांति आंदोलन — तीनों ने एक सशक्त स्तंभ खो दिया है।

सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, पत्रकार और सर्वोदय से जुड़े संगठनों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। सर्वोदय प्रेस सर्विस परिवार की ओर से राकेश दीवान, कुमार सिद्धार्थ, डॉ. सम्‍यक ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि डॉ. गाडेकर का जीवन सादगी, संघर्ष, सेवा और संवेदना की मिसाल था। समाज उनके कार्यों को स्मरण कर प्रेरणा ग्रहण करता है। उनका जाना केवल एक कार्यकर्ता की नहीं, एक विचारधारा की संवाहिका की विदाई है। वे सर्वोदस प्रेस सर्विस की एक विशिष्‍ट लेखिका रही जिन्‍होंने परमाणु ऊर्जा के ख़तरों, अणु मुक्ति अभियान के बाबत लोक शिक्षण हेतु अनेक आलेखों को लिखा और सप्रेस से इनका प्रसारण हो पाया।