सप्रेस ब्‍यूरो

वैश्विक स्‍तर पर महात्मा गांधी के संदेशों को पूरी दुनिया में फैलाने के लिए दिल्ली के राजघाट से दो अक्टूबर को ‘जय जगत यात्रा’ पर निकले गांधीवादी, एकता परिषद के संस्थापक एवं जय जगत यात्रा के संचालक श्री पी वी राजगोपाल एवं जिल कार हैरिस की तरफ़ से होवानेस होवहासियान, इंडो-आर्मीनिया फ्रेंडशिप ग्रुप के संस्थापक को महात्मा गाँधी की प्रतिमा भेंट की गई।  इस प्रतिमा का निर्माण गाँधी आश्रम, सेवाग्राम में जालंदर नाथ ने किया था, जो इस यात्रा के एक पदयात्री हैं। यह प्रतिमा आर्मीनिया और विश्व स्तर पर यात्रा का समर्थन करने वाले सांसदों और सरकारी प्रतिनिधियों का सम्मान करने के लिए भेंट किया गया।

जब जय जगत यात्रा १२ फ़रवरी को आर्मीनिया की राजधानी येरेवान पहुँची, आर्मीनिया के सांसदों ने यात्रा को संसद में आमंत्रित किया और स्वागत किया। यात्रा के ईरान सीमा के आगाराक ग्राम से निकलने के २० दिन बाद फिर माननीय होवानेस जी यात्रियों से येघेगनाज़ोर में जुड़े और एक दिन साथ में यात्रा की। यात्रा का एक अहम प्रसंग था खोर विराप मोनास्टरी (चर्च ) में, जो आर्मीनिया के विशेष स्थलों में है , क्योंकि ईसाई धर्म चौथी शताब्दी में आर्मीनिया में यहीं स्थापित हुआ था। यहाँ पर राजगोपालजी ने डव पंछी को शांति चिन्ह के रूप में आसमान में छोड़ा, और आर्मीनिया के नरसंहार की स्वीकृति की घोषणा की। राजगोपाल जी ने आर्मीनिया सरकार को ये आश्वासन भी दिया कि हम भारत वापसी पर भारत सरकार से विनती करेंगे कि आर्मीनिया में हुए भयानक नरसंहार को माना जाए और इसे “विश्व की हर नरसंहार की समाप्ति” के चिन्ह के रूप में माना जाये।

राजगोपाल जी ने प्रतिमा के भेंट के उपलक्ष्य पर सेवाग्राम में गाँधीजी की छोटी सी कुटिया के सामने बैठ प्रतिमा के निर्माण की कहानी सुनाई, और गाँधीजी की सादगी को दर्शाया। राजगोपाल जी ने कहा “गाँधीजी ने लोगों से साधारण रूप से जीने की विनती की, ताकि साधारण लोग भी जी सकें”, और होवानेस जी ने समर्थन में कहा कि आर्मीनिया में गाँधी जी के इस ही सन्देश की आज आवश्यकता है। आर्सेन ख़ारातयान, जो आलिक मीडिया के संपादक और जय जगत के आर्मीनियाई प्रबंधक हैं, आर्मीनिया और हिंदुस्तान में दोस्ती की बढ़ती गहराईयों की चर्चा की, जो जय जगत के प्रभाव से हुआ है। जिल कार-हैरिस ने आर्मीनिया की तरफ़ से जय जगत को मिली मदद के बारे में चर्चा की और रीस्टार्ट ग्रुप की मदद को सराहा। खासतौर में डाविट पेत्रोस्यान और आगाबेग सिमोनियान के बारे में।

उल्‍लेखनीय है कि आर्मीनिया, जो कभी सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था, आज एक आज़ाद बहुत छोटा-सा देश है।  आर्मीनिया की कुल आबादी महज़ तीस लाख है, जो हमारे किसी एक महानगर के हिस्से की आबादी से भी कम है।जब आर्मीनिया में वेल्वेट क्रांति हुई थी, तब ये देश ख़ूब सुर्ख़ियों में था। यहां  जनता ने शांतिपूर्ण विरोध से लंबे वक़्त से राज कर रहे प्रधानमंत्री सर्ज सर्गस्यान को पद छोड़ने पर मजबूर किया था। उनकी जगह निकोल पशिन्यान आर्मीनिया के पीएम बने। पहले पत्रकार रहे निकोल ने सविनय अवज्ञा के ज़रिए शांतिपूर्ण तरीक़े मगर बेहद मज़बूती से सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया और कामयाबी हासिल की थी।

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