करीब 382 हेक्टेयर पर लगे जंगल पर है नजर महज चंद लाभ के लिए पर्यावरण से हो रही छेड़छाड़
मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के बकस्वाहा जंगल को काटे जाने की खबर पर देश भर के पर्यावरण प्रेमी गोलबंद होने लगे है। पर्यावरण के प्रति सजग देशभर के साठ से अधिक संस्थाओं ने वर्चुअल बैठक में हिस्सा लिया। करीब दो लाख 15 हजार पेड़ काटे जाने की खबर से पर्यावरणविदों, पर्यावरण प्रेमी व आमजनों में नाराजगी है। एक तरफ कोरोना काल में वर्तमान में पूरे देश में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा हुआ है वहीं दूसरी तरफ इतने बडे पैमाने पर जंगल को काटे जाने से पर्यावरण असंतुलित व जैव विविधता प्रभावित होंगी। वर्चुअल बैठक में सामूहिक प्रतिनिधि मंडल व व्यक्तिगत रूपों से छतरपुर के जिला प्रशासन, राज्य सरकार व केन्द्र सरकार से जंगल कटाई पर रोक लगाने की मांग की है। उचित कार्रवाई न होने पर कोर्ट का दरवाजा खटखटाने व आंदोलन करने की भी बात कही गई। बैठक में तय किया गया कि वैश्विक स्तर पर पर्यावरण एक बडी समस्या बन चुकी है जिसका सीधा असर मानव जाति सहित पशु पक्षी पर पड़ रहा है, ऐसे में पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें हर हाल में जंगलों को बचाना ही होगा।
बैठक का संचालन शिवमणि वेलफेयर एजुकेशनल सोसाइटी बांका बिहार के सचिव शिवपूजन सिंह ने की। इसमें पीपल नीम तुलसी के संस्थापक डा. धर्मेंद्र कुमार, उदघोष फाउंडेशन झारखंड के अध्यक्ष कमलेश सिंह , मध्यप्रदेश से करूणा रघुवंशी, भूपेन्द्र सिंह, प्रेम सिंह, विदिशा, विवेक सक्सेना, कैप्टन राज द्विवेदी, अभिषेक कुमार, आनंद पटेल, राज पटेल, उत्तरप्रदेश से पूनम खन्ना, डा. टी. एन सिंहा, डा. ओपी चौधरी, बिहार से नीतीश कुमार, मृत्युंजय मनी, संतोष झा, राकेश कुमार, संजय कुमार बबलू, रोहित कुमार, पंजाब से राजीव गोधरा, उडीसा से सुवेन्दु राउतरी, हितेन्द्र कुमार, अधिवक्ता दनेवालीय सहित कई राज्यों के पर्यावरण संरक्षण पर कार्य करने वाले पर्यावरण मित्रों ने विचार रखे एवं हरहाल में जंगल बचाने की बात कहीं। ‘पेड़ नहीं बचाओगे तो ऑक्सीजन कहां से लाओगे’ का भी नारा दिया। भोपाल के पर्यावरणविद, समाजसेवी भूपेंद्र सिंह, करुणा रघुवंशी ने इस पर रोष प्रकट किया है साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को एक ज्ञापन प्रेषित कर मांग की है कि इस परियोजना को अविलंब रोका जाए।
उल्लेखनीय है कि छतरपुर जिले के बकस्वाहा के जंगल की जमीन में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे होने का अनुमान है। अब इन्हें निकालने के लिए 382.131 हेक्टेयर का जंगल खत्म किया जाएगा। वन विभाग ने जंगल के पेड़ों की गिनती की, जो 2,15,875 है। इन सभी पेड़ों को काटा जाएगा। इनमें 40 हजार पेड़ सागौन के हैं, इसके अलावा केम, पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे औषधीय पेड़ भी हैं। इसके अलावा वन्यजीवों पर भी संकट आ जाएगा। मई 2017 में पेश की गई जियोलॉजी एंड माइनिंग मप्र और रियोटिंटो कंपनी की रिपोर्ट में तेंदुआ, बाज (वल्चर), भालू, बारहसिंगा, हिरण, मोर इस जंगल में होना पाया था लेकिन अब नई रिपोर्ट में इन वन्यजीवों के यहां होना नहीं बताया जा रहा है। दिसंबर में डीएफओ और सीएफ छतरपुर की रिपोर्ट में भी इलाके में संरक्षित वन्यप्राणी के आवास नहीं होने का दावा किया है।
बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत इस स्थान का सर्वे 20 साल पहले शुरू हुआ था। दो साल पहले प्रदेश सरकार ने इस जंगल की नीलामी की। आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे ज्यादा बोली लगाई। प्रदेश सरकार यह जमीन इस कंपनी को 50 साल के लिए लीज पर दे रही है। इस जंगल में 62.64 हेक्टेयर क्षेत्र हीरे निकालने के लिए चिह्नित किया है। यहीं पर खदान बनाई जाएगी लेकिन कंपनी ने 382.131 हेक्टेयर का जंगल मांगा है, बाकी 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खनन करने और प्रोसेस के दौरान खदानों से निकला मलबा डंप करने में किया जा सके। इस काम में कंपनी 2500 करोड़ रुपए खर्च करने जा रही है। पहले आस्ट्रेलियाई कंपनी रियोटिंटो ने खनन लीज के लिए आवेदन किया था। मई 2017 में संशोधित प्रस्ताव पर पर्यावरण मंत्रालय के अंतिम फैसले से पहले ही रियोटिंटो ने यहां काम करने से इनकार कर दिया था।
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