महात्मा गांधी सेवा आश्रम जौरा की स्वर्ण जयंती समारोह

जौरा, मुरैना । बुरा से बुरा आदमी भी संत बन सकता है इसका प्रयोग चम्बल घाटी हुई बागी आत्मसमर्पण की घटना है। यह बात प्रख्यात गांधीवादी और नवजवानों के प्रेरणा स्त्रोत डा. एस.एन.सुब्बराव (भाई जी ) ने महात्मा गांधी सेवा आश्रम, जौरा के स्थापना के स्वर्ण जयंती समारोह वेबिनार पर कहीं।

उन्होंने कहा कि ‘क्रूर से क्रूर और बुरा से बुरा आदमी भी संत बन सकता है’ यह संदेश चम्बल घाटी से पूरी दुनिया को गया। जिनके बारे में खूंखार, क्रूर, भयावह, डकैत शब्दों से अखबारों में सुर्खियां होती थी, उन्होंने अपने हथियार छोडकर आम आदमी की तरह संत बनना पसंद किया। कुल 654 बागियों ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में आत्मसर्मण किया बाद में जेल में रहे और छूटकर पारिवारिक जीवन प्रारंभ किया।

भाई जी ने आश्रम संस्मरणों को याद करते हुए कहा कि चम्बल घाटी के मित्रों के आग्रह पर शांति स्थापना के कार्यो को लेने के बाद गांधी जी के जन्मतारीख की हिंदी तिथि द्वाद्वषी 27 सितम्बर को आश्रम की स्थापना श्योपुर के स्व. उदयभान सिंह (पूर्व विधायक) के कर कमलों द्वारा कराया गया।

उल्‍लेखनीय है कि आश्रम की स्थापना 1970 में हुई। गाँधीवादी विचारक सुब्बरावजी महात्मा गाँधी के जन्म शताब्दी वर्ष पर चलायी गयी गांधी प्रदर्शनी ट्रेन के प्रभारी थे। इस ट्रेन के संचालन के दौरान देश भर से प्राप्‍त चंदे की राशि को सरकार ने सुब्बराव जी को समर्पित कर दिया। सुब्बराव जी चाहते थे कि यह राशि देश के निर्माण में लगे। तब चंबल घाटी देश का सबसे अशांत क्षेत्र था। यहाँ उनकी ओर से शिविर और गतिविधियाँ चलायी जा रही थीं। तब तय हुआ कि इसी क्षेत्र में गाँधी जी के नाम पर आश्रम खोला जाए। इस तरह महात्मा गाँधी सेवा आश्रम की नींव पड़ी।

आश्रम के कार्यकर्ताओं की भोजन व्यवस्था सर्वोदय पात्र पर निर्भर थी, जिसमें कई घरों में तीन मुठ्ठी अनाज परिवार के सबसे छोटे सदस्य के हाथों प्रतिदिन इकठ्ठा होता था और महीने में आश्रम के कार्यकर्ता उसको संकलित करके लाते थे। प्रारंभिक तौर पर बाहर से तीन कार्यकर्ता राजगोपाल जी (एकता परिषद के संस्थापक), कृष्णमूर्ति जी (विवेकानंद केन्द्र कन्याकुमारी के सचिव) और वैदेही बहन तथा स्थानीय कार्यकर्ताओं की मदद से प्रांरभ किया गया जिन्होंने आश्रम की संचालन की व्यवस्था की। वर्तमान में आश्रम का आय का बड़ा स्त्रोत खादी ग्रामोद्योग उत्पादन, शहद और शुद्व सरसों के तेल बिक्री है।

एकता परिषद के संस्थापक डा. राजगोपाल पी.व्ही ने कहा कि समाज में प्रत्यक्ष हिंसा को बागी आत्मसमर्पण की घटना के द्वारा खत्‍म करने के बाद समाज के ढांचागत हिंसा को समाप्त करने के लिए कार्य प्रांरभ किया गया। जिसमें गांव-गांव में युवा नेतृत्व शिविरों के माध्यम से युवाओं को अहिंसक प्रतिकार के लिए प्रशिक्षित किया गया, जिसका स्वरूप ही आज एकता परिषद के रूप में प्रलक्षित हो रहा है और देश में भूमि अधिकार आंदोलन के माध्यम से हजारों लोगों को जमीनें प्राप्त हुई हैं।

महात्मा गांधी सेवा आश्रम के सचिव और एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रनसिंह परमार ने आश्रम के संस्थापक डा. एस.एन.सुब्बराव (भाई जी) और डा. राजगोपाल पी.व्ही (राजा जी) के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्था कार्यकर्ता निर्माण पर केन्द्रित सामाजिक कार्य को आगे बढ़ा रहा है जिसमें हजारों स्वयं सेवी कार्यकर्ता देश के 10 राज्यों के हजारों गांवों में महात्मा गांधी के ग्रामस्वराज और स्वावलम्बन पर कार्य कर रहे है।

अजय पाण्डेय ने कहा कि पौराणिक कथाओं में रत्नाकर के वाल्मिकी बनने और अंगुलिमान को बुद्व के द्वारा समाज में जोड़ने की घटनाओं के समान ही चम्बल की बागी आत्मसमर्पण की घटना है जिसके मुख्य सूत्रधार डा.एस.एन.सुब्बराव (भाई जी) ने अपने प्रेम, करूणा और दया के माध्यम से सैकड़ों खूंखार बागियों को दिल परिवर्तन कर समाज की मुख्यधारा में जोड़ा।

‘चम्बल की यादें’ पुस्तक का विमोचन-1970 के दशक में चम्बल घाटी के जौरा (मध्यप्रदेश), तालाबशाही (राजस्थान) तथा बटेश्‍वर (उत्तरप्रदेश) में हुई बागी आत्मसमर्पण की घटना, पृष्ठभूमि और उसके बाद के अनुभव से जुड़े भाई जी के आलेखों, पूर्व बागी नेत्रपाल सिंह से मिले कागजातों और तत्कालीन सरकार के साथ पत्राचार पर आधारित ‘चम्बल की यादें’ नामक पुस्तक चण्डीगढ़ विश्‍वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डा. गुरूदेव सिंह सिद्वद्वू के नेतृत्व में राष्ट्रीय युवा योजना के अजय पाण्डेय और संजय राय के द्वारा लिखा गया है जिसका विमोचन आश्रम की स्वर्ण जयंती के अवसर पर किया गया। 

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

-साल 1960 में आचार्य विनोवा भावे और भाई महावीर के प्रयासों से चंबल में पहला बागी समर्पण हुआ था।

-साल 1972 में डॉ.एसएन सुब्बाराव व जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में दूसरा समर्पण हुआ।

-साल 1976 तक शांति दूतों के प्रयासों से 654 बागियों ने अपने हथियार डाले।

-शांति दूतों का राष्ट्रीय संग्रहालय

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