विनोबा भावे की 125वीं जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति में सुश्री ज्योति बहन
सभी के उदय का जिस शब्द में समावेश है वह सर्वोदय है। किसी भी समाज के विकास में वैचारिक स्वातंत्र्य की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। दबाव और प्रभाव में किसी विचार को कुछ समय तक मनवाया जा सकता है, परंतु वह टिकाऊ नहीं होता। विवादों के शमन के लिए सर्वसम्मति के विचार को अपनाने की जरूरत है।
यह बात ब्रह्मविद्या मंदिर पवनार की अंतेवासी सुश्री ज्योति बहन ने विनोबा जी की 125वीं जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में कही। सुश्री ज्योति बहन ने ब्रह्मविद्या मंदिर की जानकारी देते हुए बताया कि विनोबा जी ने इसे सामूहिक साधना की दृष्टि से स्थापित किया। विनोबा जी की पदयात्रा में शामिल प्रारंभिक आठ-दस बहनों से यह आश्रम प्रारंभ हुआ और विनोबा जी ने पत्रों के माध्यम से आश्रम संचालन का मार्गर्शन दिया। आश्रम स्थापना के दस साल बाद विनोबा जी ने ब्रह्मविद्या मंदिर में प्रवेश किया। इसका गठन बिलकुल अनूठे ढंग से हुआ। उन्होंने बताया कि आश्रम में सभी निर्णय सर्वसम्मति अथवा सर्वानुमति से लिए जाते हैं। जिन प्रश्नों पर निर्णय की स्थिति नहीं बनती उन्हें शीतागार में डाल दिया जाता है। आश्रम के श्रमनिष्ठ जीवन में सभी के काम को समान महत्व दिया जाता है। विनोबा की दृष्टि में ब्रह्मविद्या केवल ध्यान-साधना नहीं थी, बल्कि अखंड नामसंकीर्तन, सतत कर्मयोग, व्रतनिष्ठा, सभी की नम्रतापूर्वक वंदना से ब्रह्मविद्या बनती है। सुश्री ज्योति बहन ने कहा कि राजनीति शास्त्र का अगला कदम स्वराजशास्त्र है। समाज संचालन के लिए प्रचलित अनेक पद्धतियों में गुण-दोष दोनों हैं। सबसे कम दोषपूर्ण पद्धति को स्वीकार करना जमाने की मांग है। आज के कल्याणकारी राज्य में अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख की बात कही जाती है, लेकिन सर्वोदय में सभी के सुख की योजना है। समान श्रममूल्य पर आधारित समाज निर्माण की दिशा में हमें अग्रसर होना चाहिए। आज हमें अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने की जरूरत है। महात्मा गांधी के अनुसार प्रजातंत्र का आशय यही है जिसमें गरीब से गरीब व्यक्ति भी यह महसूस करे कि यह उसका देश है। जब हम समस्याओं को अहिंसक दृष्टि से हल करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे तो गरीबों तक पहुंच पाएंगे। यदि सर्वोच्च कोटि की स्वतंतत्रा चाहिए तो सर्वोच्च कोटि के अनुशासन का पालन करने के लिए हमें सदैव तैयार रहना चाहिए।
सुश्री ज्योति बहन ने विनोबा के भाइयों के बारे में बताया कि बालकोबा और शिवाजी भावे उच्च कोटि के साधक थे। उन्होंने भी आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया। विनोबा जी के बचपन के अनेक मित्र उनके साथ जीवनभर रहे। सत्र के द्वितीय वक्ता विनोबा मिशन की सुभाष-विमल पाटिल ने करजत में उनके द्वारा दिव्यांग और मूक-बधिर बच्चों के लिए चलाए जा रहे स्कूल की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बच्चे के शिक्षण के पूर्व वे माता को प्रशिक्षित करते हैं। माता के सत्संग से बच्चे में संस्कार आते हैं। एक माता सौ शिक्षकों के बराबर होती है। उन्होंने अध्ययन के लिए सत्साहित्य का पुस्तकालय भी बनाया है, जिससे बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास हो। विनोबा जी के योग, उद्योग और सहयोग के विचार को शिक्षा में शामिल किया है। इससे बच्चे आनंदपूर्वक शिक्षा ग्रहण करते हैं। व्याख्यान के पूर्व वरिष्ठ सर्वोदय कार्यकर्ता श्री फूलचंद भाई के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
जीवन में से शिक्षण मिलना चाहिए: आबिदा बहन
आज के शिक्षण में प्रमाण पत्र तो मिल रहे हैं। उसका उपयोग पैकेज हासिल करने में किया जा रहा है। लेकिन सच्चे ज्ञान से अछूते हैं। जीवन और शिक्षण की भिन्न अवधारणा होने से यह संकट उपस्थित हुआ है। जीवन में से ही शिक्षण निकलेगा तब हमारी शिक्षा सार्थक होगी।
यह बात कर्नाटक की सर्वोदय कार्यकर्ता सुश्री आबिदा बहन ने विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति में व्यक्त किए। सुश्री आबिदा बहन ने कहा कि विनोबा जी ने अपनी औपचारिक शिक्षा के सारे प्रमाण पत्र जला दिए थे। उन्हें न तो व्यवसाय करना था और नहीं कोई नौकरी करना थी। उन्हें बालपन में अध्ययन की ऐसी धुन सवार थी कि बड़ौदा के पुस्तकालय की लगभग सारी पुस्तकें उन्होंने पढ़ डालीं। विनोबा के दो ही शौक थे – घूमना और पढ़ना। उन्होंने बताया कि परिवार का वातवरण बालकों के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विनोबा जी के जीवन पर उनकी माता रुक्मिणी और पिता नरहरि भावे का सर्वाधिक प्रभाव रहा। पदयात्रा के दौरान कर्नाटक स्थित महाबलेश्वर मंदिर में सभी वर्ग के लोगों के साथ प्रवेश उस जमाने की बड़ी घटना मानी जाती है। सुश्री आबिदा बहन ने कहा कि समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार के भेदभाव को मिटाने में विनोबा के विचार सहायता करते हैं। द्वितीय वक्ता सुश्री सांची बहन ने अपनी जीवन यात्रा के अनुभव सुनाए। उन्होंने कहा कि परिवार से मिलने वाला प्रेम अद्वितीय होता है। आज उसकी जड़ें कमजोर हो रही हैं। उसे मजबूती प्रदान करने के प्रयास करना चाहिए। स्वयं से प्रतिस्पर्धा शांति की ओर ले जाती है। विनोबा विचार प्रवाह का संचालन श्री संजय राय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना।