भोपाल में ‘गांधी का लोकतंत्र’ विषय पर व्याख्यान
भोपाल, 22 अप्रैल। “लोकतंत्र को केवल चुनाव और बहुमत तक सीमित कर देना, उसे आत्मा-विहीन बना देना है। यह जीवन की ऐसी शैली है, जो सत्य, सह-अस्तित्व, संवाद और असहमति को सम्मान देने पर टिकी है। पर आज का दौर हमें इस शैली से दूर ले जा रहा है — जीवन शैली अब राजशैली बनती जा रही है।”
ये विचार गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष व वरिष्ठ गांधी विचारक कुमार प्रशांत ने गांधी भवन, भोपाल में एवं अनौपचारिक समूह हम सब द्वारा आयोजित व्याख्यान में व्यक्त किए। वे ‘गांधी का लोकतंत्र’ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे।
सच का साहस और लोकतंत्र की आत्मा

कुमार प्रशांत ने लोकतंत्र की मौलिकता की ओर लौटने का आह्वान करते हुए कहा कि “सत्य, केवल एक नैतिक संकल्प नहीं, लोकतंत्र की आधारशिला है। गांधी का लोकतंत्र संख्या का नहीं, भाव का खेल है — यह गिनने से नहीं, जुड़ने से चलता है।”
प्रशांत ने लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए सत्य के पक्ष में खड़े होने को सबसे बड़ी ज़रूरत बताया। उन्होंने गांधी के विचारों के आधार पर लोकतांत्रिक नागरिकों के लिए चार नैतिक सूत्र प्रस्तुत किए: हर परिस्थिति में सच बोलो। यदि नहीं बोल सकते, तो सच बोलने वालों का साथ दो। यदि साथ भी नहीं दे सकते, तो कम से कम समर्थन करो। यदि इन तीनों में से कोई भी नहीं कर सकते, तो ईमानदारी से लोकतंत्र की ओर पीठ करके खड़े हो जाओ।
उन्होंने कहा, “सच बोलना आज एटम बम से भी ज़्यादा खतरनाक काम हो गया है। फिर भी, अगर लोकतंत्र को आत्मा सहित ज़िंदा रखना चाहते है, तो यह साहस हमें दिखाना होगा।”
आज का समय: संवादहीनता और सत्ता का एकालाप
कुमार प्रशांत ने वर्तमान समय की विडंबनाओं की ओर संकेत करते हुए कहा, “यह ऐसा दौर है जहां अपराध बहुत हो रहे हैं, लेकिन कोई गवाह नहीं मिलता। लोग संवाद से बच रहे हैं, असहमति से डर रहे हैं। लोकतंत्र का खेल चल रहा है, पर अब अंपायर खुद खिलाड़ी बन गया है।” ऐसे में आम नागरिक की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
संसदीय लोकतंत्र और गांधी की दृष्टि
उन्होंने जोर देकर कहा कि संसदीय लोकतंत्र और लोकतंत्र एक ही चीज़ नहीं हैं। “हमें इस फर्क को समझने की ज़रूरत है। गांधी संसदीय लोकतंत्र को लेकर बेहद सतर्क थे।
हिंद स्वराज में उन्होंने कहा था कि “यह ऐसी व्यवस्था है जिसमें बिना दबाव के कोई काम नहीं होता, जिसमें बहुमत के नाम पर निष्क्रियता और यंत्रवत निर्णय होते हैं।” उनके अनुसार, गांधी ने संसदीय लोकतंत्र को “बांझ और वेश्या” कहकर उसकी निष्क्रियता और अवसरवादिता को रेखांकित किया। “यह वही लोग हैं, जो पहले दरबारों में बैठते थे और अब संसद में — इनकी सारी चतुराई केवल वोट बचाने तक सीमित है, लोक मंगल की पहल इनसे नहीं होती।”
वोटर लिस्ट और लोक सेवक संघ की कल्पना
उन्होंने गांधी के उस विचार को भी रेखांकित किया, जिसमें उन्होंने स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस को राजनीतिक संगठन के रूप में समाप्त कर, ‘लोक सेवक संघ’ बनाने की बात कही थी। इस संघ के 12 कार्यों में एक महत्वपूर्ण कार्य था — वोटर लिस्ट तैयार करना। “आज यह जिम्मेदारी सरकार ने अपने हाथ में ले ली है, जबकि गांधी कहते थे कि यह काम जनता का है — उसकी सूची ही चुनाव आयोग को दी जानी चाहिए।” आज जब मतदाता सूची तक को राजनीतिक हितों के लिए बदला जा रहा है, ऐसे में यह विचार और भी प्रासंगिक हो जाता है।
गांधी: शब्द नहीं, जीवन की साधना

उन्होंने गांधीजी के लेखन को एक जीवित धरोहर बताया। “गांधी ने भले ही अधिक पुस्तकें नहीं लिखीं — पर उनका संपूर्ण वांग्मय, जिसमें पत्र, लेख, वक्तव्य और संवाद शामिल हैं, 125 खंडों में संकलित है। अब इसका गुजराती रूपांतरण ‘गांधीजी नो अक्षर देह’ के नाम से तैयार किया जा रहा है।” यही कारण है कि आज भी गांधी का विचार विमर्श में उतनी ही प्रासंगिकता के साथ लौटता है।”
उन्होंने कहा कि गांधी किसी घटना से पैदा नहीं हुए, वे एक समाज-धारा से उपजे विचारक थे। “उनकी ताकत शब्दों की नहीं, जीवन की साधना की थी।”
धर्म परिवर्तन नहीं, धर्म में परिवर्तन
उन्होंने गांधी की धार्मिक दृष्टि पर बोलते हुए कहा कि गांधी धर्मों की आलोचना नहीं, उनके भीतर के सुधार की बात करते थे। “धर्म परिवर्तन करने की जरूरत नहीं, धर्म में परिवर्तन करना ज़रूरी है।”
कार्यक्रम की शुरुआत में गांधी भवन के सचिव दयाराम नामदेव, राकेश दीवान, अरुण दनायक और राजेश बादल ने सूतमाला, खादी का जेकेट, खादी टोपी पहनाकर वक्ता कुमार प्रशांत का अभिनंदन किया।
हम सब समूह की ओर से राकेश दीवान ने कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए कहा, “आज के विचारशून्य होते समाज में सार्थक संवाद की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। बीते साढ़े तीन वर्षों में ‘हिंसक समाज में गांधी’, ‘आजादी के मायने’ जैसे श्रृंखला में सारगर्भित विषयों पर संवाद की परंपरा कायम रखने का प्रयास किया है।” वक्ता का परिचय अंकित मिश्रा ने दिया।
कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन रघुराज सिंह ने किया। इस मौके पर बड़ी संख्या में सामाजिक कार्यकर्ता, महिलाएं, युवा और बुद्धिजीवी वर्ग उपस्थित था।
