कोविड-19 संकट ने गरीब घरों की आय को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, और गरीब परिवारों के लिए एलपीजी मूल्य समर्थन महत्वपूर्ण है और इसे तत्काल लागू किए जाने की जरूरत है, लेकिन मौजूदा नीतियों को ज़रूरतमंद लोगों का समर्थन करने के लिए नया स्वरूप देने की जरूरत है।
केंद्र सरकार ने मई 2020 में कम तेल की कीमतों के कारण एलपीजी सब्सिडी पर रोक लगा दी और इसके परिणामस्वरूप घरेलू एलपीजी सिलेंडर की दरों में कमी आई है। पर हाल ही में, एलपीजी सिलेंडर की कीमतें मई 2020 में रू. 594 से बढ़कर मार्च 2021 में रू. 819 हो गई हैं, जिससे लाखों भारतीय खाना पकाने के ईंधन का खर्च उठाने से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि गरीब परिवारों के लिए एलपीजी मूल्य समर्थन महत्वपूर्ण है और इसे तत्काल लागू किए जाने की जरूरत है, लेकिन मौजूदा नीतियों को ज़रूरतमंद लोगों का समर्थन करने के लिए नया स्वरूप देने की जरूरत है।
इस संदर्भ में विशेषज्ञों ने कहा है कि अगर सरकार एलपीजी सब्सिडी नीति के डिजाइन में बदलाव नहीं करती है तो गरीब परिवारों को एलपीजी समर्थन से संपन्न उपभोक्ताओं की तुलना में 2 गुना कम लाभ हो सकता है। हाल ही में जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड द इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल एनर्जी पॉलिसी की एक नई रिपोर्ट के अनुसार जब केंद्र सरकार की सभी ऊर्जा सब्सिडी का लगभग 28% एलपीजी सब्सिडी में शामिल था, तब झारखंड के ग्रामीण और शहरी हिस्सों में सबसे गरीब 40% परिवारों को वित्त वर्ष 2019 में सरकार एलपीजी सहायता का 30% से कम लाभ प्राप्त हुआ ।
रिपोर्ट की लेखक श्रुति शर्मा ने कहा, “यह स्पष्ट है कि गरीब परिवारों को एलपीजी सब्सिडी की आवश्यकता है, इसलिए जब सरकार एलपीजी सब्सिडी को फिर से लागू करती है, तो उसे पुरानी गलतियों को को दोहराने से बचना चाहिए। प्रतिगामी सब्सिडी से दूर होने और आर्थिक रूप से कठिन समय के दौरान सरकार के करोड़ों रुपये बचाने के लिए सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना महत्वपूर्ण होगा।”
विशेषज्ञों के मुताबिक, सब्सिडी वितरण में सुधार में मुख्य अड़चन संपन्न घरों में सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडरों की अधिक खपत है। भारत के अधिकांश ग्रामीण परिवारों में सब्सिडी वाले एलपीजी के बजाय स्वतंत्र रूप से उपलब्ध लकड़ी और बायोमास-आधारित ईंधन का अधिक उपयोग जारी है, जबकि अधिक संपन्न घरों में सब्सिडी वाले एलपीजी की अधिक खपत है और उन्हें सब्सिडी का और बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है।
विशेषज्ञों ने कहा कि एलपीजी सब्सिडी की दक्षता पर डाटा की कमी ने सरकार को वितरण में असमानता को पहचानने से रोका है। शर्मा कहती हैं कि, “झारखंड के मामले के अध्ययन से स्पष्ट है कि गरीब परिवारों की सही पहचान करने में नॉलेज गैप (ज्ञान में अंतर) है। अगर हम अप्राप्यता (और महंगाई) की समस्या को ठीक करना चाहते हैं, तो लक्ष्यीकरण महत्वपूर्ण है।”
उनका मानना हैं कि लाभार्थियों के एक संकीर्ण सबसेट पर सब्सिडी लाभ का ध्यान केंद्रित करना न केवल सबसे गरीब उपभोक्ताओं का समर्थन कर सकता है, बल्कि समग्र कार्यक्रम लागत को भी कम कर सकता है।
अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि झारखंड में प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) कनेक्शन के साथ गरीब परिवारों द्वारा सालाना सिर्फ 5.6 सिलेंडर की खपत होती है, जो कि 12 की निर्धारित सब्सिडी वाले सिलेंडर की वर्तमान वार्षिक सीमा (या कोटा) से बहुत कम है। जब तक गरीब परिवार अपनी एलपीजी सिलेंडर खपत नहीं बढ़ाते हैं, सरकार वार्षिक सीमा में 12 से 9 सिलेंडर की कटौती पर विचार कर सकती है। अध्ययन का अनुमान है कि बिना लाभ के औसत वितरण में ज़्यादा बदलाव किए, यह ग्रामीण क्षेत्रों में सब्सिडी के खर्च को 14% और शहरी क्षेत्रों में 19% तक कम कर सकता है।
अध्ययन के सह-लेखक क्रिस्टोफर बीटन ने कहा, गरीबी प्रासंगिक है, और इस रिपोर्ट में झारखंड के लिए हस्तक्षेप का परीक्षण किया गया है, एक उच्च गरीबी वाला राज्य, इसलिए निष्कर्ष निम्न गरीबी के स्तर वाले राज्यों के लिए शायद समान नहीं हों। “
बीटन ने कहा कि, “कोविड-19 संकट ने गरीब घरों की आय को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, और आगे एलपीजी सब्सिडी के लिए अपना समर्थन बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। एलपीजी सब्सिडी पर स्पष्टता की कमी गरीब घरों को, जो बायोमास का उपयोग करने के बजाय असुरक्षित एलपीजी का खर्च नहीं उठा सकते हैं, पीछे ढकेल सकती है, जिससे महिलाओं और छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा । हमने पाया कि पहले से ही सबसे गरीब परिवारों को, बेहतर घरों में केवल 3% की तुलना में, अपने मासिक खर्च का 9% -11% समर्पित करना होता है। सरकार को सबसे ज़्यादा गरीबों के लिए सामर्थ्य बढ़ाने के लिए एलपीजी सब्सिडी के बेहतर लक्ष्यीकरण पर विचार करना चाहिए। ”
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