एक सौ पंद्रह वर्ष पुरानी गुजराती साहित्य परिषद गुजराती साहित्यकारों की संस्था है, जिसका अपना वैचारिक वजूद है। हाल ही में जाने-माने साहित्यकार और पत्रकार प्रकाश शाह को गुजराती साहित्य परिषद का अध्यक्ष चुना गया है। श्री शाह ने वर्षों तक तक एक्सप्रेस ग्रुप के गुजराती अखबार जनसत्ता में संवाददाता से लेकर संपादक पद तक कार्य किया है। वे टाइम्स ऑफ इंडिया की गुजराती आवृत्ति, गुजरात मित्र,गुजरात टुडे से भी जुड़े रहे हैं। वे1992 से ‘निरीक्षक’ नामक पाक्षिक चला रहे हैं। दरअसल, गुजराती साहित्य परिषद के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हर तीन साल बाद होता है। महात्मा गांधी भी इस साहित्य परिषद के अध्यक्ष रहे चुके हैं।
वैसे प्रकाश शाह को गुजराती आलोचक के तौर पर जाना जाता है। सम्पूर्ण क्रांति व सर्वोदय कार्यकर्ता जयंत दिवाण (मुंबई सर्वोदया मंडल, अध्यक्ष) ने कहा कि हिंदुत्वादियों की प्रयोगभूमि कहलाने वाले गुजरात में गुजराती साहित्य परिषद के अध्यक्ष पद पर सेक्युलर, गांधीवादी कहलाने वाले प्रकाश न. शाह का चुनकर आना अपने आप में लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता मानने वाले हम सभी लोगों को आश्वस्त करता है। इस घटना का राष्ट्रीय स्तर पर दखल लेना जरूरी है। वे सामाजिक प्रतिबद्धता मानने वाले व्यक्ति हैं। आपातकाल के दौरान वे लंबे समय जेल में रहे। खादीधारी प्रकाशभाई जयप्रकाश नारायण के निकट साथी रहे हैं। वे गुजरात का विवेक हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रकाश भाई आपातकाल के दौरान गुजरात में सरकार के विरोध में बड़े नाम के तौर पर उभरे थे। उन्होंने पिछले साल गुजराती भाषा में छपे 160 पेज के लंबे इंटरव्यू में कहा था कि मोदी कुछ छोटा-मोटा काम ही किया करते थे, जो उन्हें कहा जाता था। उनकी भूमिका बस उतनी ही थी। मैं यदि उस समय के अपनी उम्र से 10 साल छोटा रहा होता तो शायद मैं भी वही करता। पर यह तय है कि मोदी की भूमिका वह तो नहीं ही थी जिसका दावा उन्होंने बाद में वेबसाइट पर किया था। उन्होंने इसे बहुत ही ज़्यादा बढ़ा चढ़ा कर पेश करने की कोशिश की थी।
प्रकाश शाह का यह लंबा इंटरव्यू उर्वशी कोठारी ने लिया था, जिसे सार्थक प्रकाशन ने छापा है। प्रकाश शाह के इस साक्षात्कार को अंग्रेजी पत्रिका ‘काउंटरव्यू’ ने भी प्रकाशित किया था।
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