बसनिया बांध को निरस्त करने हेतु विधायक मर्सकोले ने लिखा मुख्यमंत्री को पत्र
नर्मदा नदी पर बनने वाले छोटे बडे बांधों की श्रृखंला में मंडला के बसनिया बांध को पूर्व में निरस्त कर दिया गया था। लेकिन हाल ही में प्रशासनिक स्तर पर इसकी सुगबुहाट होने से क्षेत्र में हलचल मच गई है। मंडला के क्षेत्रीय विधायक डॉ. अशोक मर्सकोले ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बसनिया बांध की जगह माइक्रो लिफ्ट सिंचाई योजना लागू करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि 100 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन के लिए 2731.17 करोङ़ रूपये खर्च किये जाना, घने जंगलों की जैवविविधता डुबाकर खत्म करना और 31 गांव के 2737 परिवारों को विस्थापित करना न्याय संगत नहीं है। पूर्व में भी बरगी बांध के कारण मंडला जिले के आदिवासी बाहुल्य 95 गांव विस्थापित एवं प्रभावित हो चुके हैं।
उन्होंने पत्र में इस बात भी उल्लेख किया है कि 3 मार्च 2016 को विधायक जितेंद्र गेहलोत द्वारा विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में बताया गया था कि नर्मदा घाटी में 29 प्रस्तावित बांधों में से 10 बांध पूर्ण हो चुके हैं, 6 बांध का कार्य प्रगति पर है और शेष 13 बांधों में से 7 बांधों को नए भू -अर्जन अधिनियम से लागत में वृद्धि, अधिक डूब क्षेत्र होने, डूब क्षेत्र में वनभूमि आने से असाध्य होने के कारण निरस्त की गई है। इस निरस्त बांधों की सूची में बसनिया बांध भी शामिल है, जिसे फिर से शुरू करने की कवायद कहां तक न्यायसंगत है।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश सरकार ने स्वीकृत बांधों में बसानिया बांध को भी पुन: शामिल किया गया है। मंडला जिले की घुघरी तहसील के ओढारी गांव के पास बनाए जाने वाले इस बांध से 18 गांव मंडला और 13 गांव डिंडोरी जिले के प्रभावित होने वाले है। बांध में कुल 6343 हैक्टेयर जमीन डूब में आएगी। जिसमें 2443 हैक्टेयर निजी भूमि,1793 हैक्टेयर शासकीय भूमि और 2017 हैक्टेयर वन भूमि शामिल है। इस बांध का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। इसके पास राघवपुर बहुउददेश्यीय परियोजना भी है, इन दोनों परियोजना में कुल मिलाकर 79 गांव डूब में आने हैं।
मंडला के विधायक डॉ. अशोक मर्सकोले ने कहा कि मध्यप्रदेश में विद्युत उत्पादन की स्थापित क्षमता लगभग 22 हजार मेगावाट है और वार्षिक औसत मांग 11 हजार मेगावाट है। मध्यप्रदेश के रीवा में 750 मेगावाट का सौर ऊर्जा संयत्र से उत्पादन शुरू हो चुका है जबकि आगर, शाजापुर, नीमच, छतरपुर, ओंकारेश्वर और मुरैना में 5 हजार मेगावाट की सौर ऊर्जा परियोजनाए निर्माणाधीन है। ऐसे में इस बांध के विकल्प में माइक्रो लिफ्ट सिंचाई योजना ज्यादा उपयोगी है। जिसमें लागत और समय भी कम लगेगी और सिंचाई रकबा भी बढ़ाया जा सकता है। इसी नर्मदा घाटी की चिंकी-बोरास बांध (नरसिंहपुर) को अत्यधिक डूब क्षेत्र के कारण इसे उद्वहन सिंचाई परियोजना में परिवर्तित कर दिया गया है।
उन्होंने पत्र में उल्लेख किया है कि तत्कालीन नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रजनीश वैश्य ने मीडिया को बताया था कि ” हमें वर्ष 2024 तक नर्मदा जल का उपयोग करना है। अब निर्णय किया गया है कि नर्मदा पर बङ़े बांध नहीं बनेंगे, बल्कि केवल पानी लिफ्ट करेंगे। इसके लिए पूरी कार्ययोजना तैयार है। इस तरीके से तय लक्ष्य से ज्यादा क्षेत्र में हम सिंचाई क्षमता विकसित कर सकेंगे।” विधायक डॉ. अशोक मर्सकोले ने बसनिया बांध को निरस्त कर माइक्रो लिफ्ट सिंचाई योजना लागू करने की योजना बनाई जाए, यह प्रदेश और मंडला के हित में लिया गया सही निर्णय होगा।
बरगी बांध विस्थापित संघ के राजकुमार सिन्हा ने इस बांध की उपयोगिता पर कई सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि जब मध्यप्रदेश में अतिरिक्त बिजली मौजूद है, और पानी की उपयोगिता पुराने बांधों में ही अब तक पूर्ण क्षमता से नहीं की जा सकी है, सालों पहले पूरे हो चुके बांधों में नहरें अब तक भी नहीं बनी हैं, तब एक और बांध बनाकर इतनी बेशकीमती जमीन और जंगल डुबाने का क्या मतलब है। वह कहते हैं कि सरकार असिंचित क्षेत्र में पानी पहुंचाने के लिए उदवहन योजना पर काम कर सकती है, जिसमें कम जंगल और जमीन का नुकसान हो।
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