हर साल होगा मालवा महिला कबीर यात्रा का आयोजन

इंदौर, 5 मार्च। आज शाम को इंदौर का हिंदी साहित्‍य समिति का सभागार कबीर की वाणियों से गूंज उठा, जब मालवा महिला कबीर यात्रा के समापन के मौके पर यात्रा में शामिल महिला गायकों ने कबीर भजन, कबीर विचार की प्रस्‍तुतियां दी। एकलव्य संस्था के 40 साल और होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम (होविशिका) के 50 साल पूरे होने के मौक़े पर संस्था द्वारा साल भर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की शृंखला में 2 मार्च से शुरू मालवा महिला कबीर यात्रा − धरती की बानी−हेलियों की ज़ुबानी − का समापन आज इंदौर के मध्‍य भारत हिंदी साहित्य समिति के सभागार में हुआ। यात्रा लुनियाखेड़ी में शुरु होकर टोंक खुर्द और सोनकच्छ होते हुए इंदौर पहुंची थी। 

कार्यक्रम की शुरुआत में मालवा अंचल में कबीर गायकी की परंपरा पर रोशनी डालते हुए सुरेश पटेल ने कहा कि कबीर की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही बनी हुई है जितनी पहले थी। उन्‍होंने महिला गायकों के योगदान के महत्व को सामने रखा। मालवा इलाक़े में कबीर गायन की परम्परा रही है और गायक अपनी गायकी की विरासत को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रहे हैं।

इस यात्रा में स्थानीय कलाकारों के अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों से गायक, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता, फ़िल्मकार, लेखक, नाटक कर्मी, कवि आदि शामिल हुए। यात्रा के दौरान गायन कार्यक्रम में कबीर के अलावा अन्य सन्त/सूफ़ी कवियों की रचनाओं की सौ से ज़्यादा प्रस्तुतियाँ हुईं।

कार्यक्रम के दौरान एकलव्‍य की टुल विश्‍वास ने घोषणा की कि अब हर साल मालवा महिला कबीर यात्रा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें महिला गायकों को प्रमुखता से सम्मिलित किया जाएगा।

ग़ौरतलब है कि समाज-देश-काल और उसकी विसंगतियों पर गहरी समीक्षाई दृष्टि डालने वाले कबीर का न सिर्फ़ साहित्य में बल्कि लोक में एक अलग मक़ाम है। उनके दोहों में भक्ति के अलावा जाति-धर्म के बनावटी विभाजनों पर तीखा व्यंग्य भी है। मध्य प्रदेश के मालवा इलाक़े में कबीर गायकों की मण्डलियाँ गाँव-कस्बों में घूम-घूम कर कबीर की बानी को लोगों तक पहुँचाती हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही इस परिपाटी में आमतौर पर पुरुष गायक ही मुख्य भूमिका में रहे हैं। महिला कलाकारों को जगह मुश्किल से मिलती है और वह भी हाशिए पर।

रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से लेकर गायन सभाओं तक में ये महिला कलाकार तमाम संघर्षों से जूझते हुए अपनी कला की जगह बनाने की जद्दोजहद कर रही हैं। ऐसे में इस बात की ज़रूरत बार-बार महसूस की जाती रही है कि महिला गायकों को अपनी कला की प्रस्तुति का एक मुकम्मल मंच मिले। इसी को ध्यान में रखकर एकलव्य ने इस यात्रा का विचार रखा। 

यात्रा में पूजा सरोलिया, अर्चना मालवीय, सिमरन निमड़िया, प्रिया निमड़िया, नीतू झारिया, स्नेहा गेहलोद, संजीवनी कांत, शीतल साठे, अनुभूति, विभोर बैंड, गौरी, ज्योति, शारदा, तनु पराग, अर्पिता बामनिया, प्रीति सिंगार, अस्फ़िया, बादाम बाई, अंजलि राठौर, रागिनी, मधु, सुरेखा कांबले, अनाहिता बत्रा, बड़ी लीला बाई, राजकुमारी सोलंकी, चेतना विश्वकर्मा, सलोनी परमार, झलक व उनका बैंड, अंजलि बामनिया, लता, शशि, सीमा बजाज, गीता, लीला, तनु पराग, अनुभूति, शिवानी सोनगरा, शिवानी मंगोलिया, स्वाति और तनिष्का और आह्वान प्रोजेक्ट ने अपनी गायकी का जादू बिखेरा।

इसके अलावा भक्ति काल के कवियों के सामाजिक सरोकार, विभिन्न सामाजिक असमानताओं पर उनका नज़रिया और आज के समय में उसकी प्रासंगिकता व हमारी ज़िम्मेदारियाँ, संवैधानिक मूल्य, जेंडर व जाति के सवालों और तमाम दूसरे सामाजिक-सांस्कृतिक मसलों पर सत्संगों का आयोजन भी किया गया जिसमें सभी प्रतिभागियों व कलाकारों ने अपने विचार रखे। भक्ति काव्य में मौजूद जेंडर आधारित चित्रण पर भी समृद्ध चर्चाएँ हुईं। यह बात भी हुई कई रचनाएँ, जो पुरुष नज़रिए से लिखी गई हैं उनका गायन महिला गायक ही कर रही हैं लेकिन साथ ही इनपर सवाल भी उठाती हैं और इनको अपने जीवन और गायन से चुनौती भी देती हैं।

गौरतलब है कि मालवा इलाक़े में कबीर गायकों के साथ एकलव्य का जुड़ाव 1990 के दशक से ही रहा है। ‘कबीर भजन एवं विचार मंच’ (1991-1998), ‘कबीर इन स्कूल्स’ (2008-2009) और इसके बाद 2011 ‘मालवा में कबीर की वाचिक परम्पराओं के सुदृढ़ीकरण’ जैसे प्रयासों के ज़रिए एकलव्य ने कबीर गायन की लोक परम्परा में विस्तार और नवाचार की कोशिशें लगातार की हैं। इसके बाद सृष्टि स्कूल ऑफ डिज़ाइन की कबीर परियोजना से जुड़कर एकलव्य ने कबीर गायन में महिला कलाकारों की भागीदारी को बढ़ाने के प्रयास किए। इसमें स्कूलों में कबीर के साहित्य के माध्यम से जाति व जेंडर पर आलोचनात्मक नज़रिए की बुनियाद रखने की कोशिशें भी शामिल रहीं। इसी क्रम में एक ज़रूरी नवाचार करते हुए पहली बार महिला कबीर गायकों की यात्रा का आयोजन किया

कार्यक्रम में अनिल त्रिवेदी, अरूण डिके, जयश्री सिक्‍का, किशोर पंवार, भोलश्‍वर दुबे, कुमार सिद्धार्थ, राजेश खिंदरी, मनोज निगम, छोटू भारती, दिनेश कोठारी, राजेंद्र बंधु, विजय टिपानिया के अलावा एकलव्‍य से जुडे साथी और यात्रा में शामिल सैकडों युवक/यवुतियां और कबीर प्रिय शामिल थे। कार्यकम के अंत में एकलव्‍य की टुलटुल विश्‍वास ने आभार माना।      

[block rendering halted]

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें