वन, पानी और मिट्टी का प्रबंधन भारतीय ज्ञान तंत्र और विद्या के आलोक में करने की जरूरत

भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के 42वें स्थापना दिवस पर पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह का उदबोधन

6 फरवरी, भोपाल । हमें वन, पानी और मिट्टी का प्रबंधन भारतीय ज्ञान तंत्र और विद्या के आलोक में करना होगा। हम यदि इसका प्रबंधन विद्या के प्रकाश में करेंगे तो हमारा भविष्य अच्छा रहेगा। अन्यथा इस आधुनिक शिक्षा से ही सब बिगड़ हो रहा है। जहां ज्यादा शिक्षित लोग रहते है, वहां की नदियां जायदा खराब है और वन अधिक कट रहे है।

उक्‍त बातें ख्‍यातनाम पर्यावरणविद् जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने मुख्य अतिथि के तौर पर कहीं। वे आज भोपाल में भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम), भोपाल के 42वें स्थापना दिवस के अवसर पर बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के निदेशक रविचंद्रन ने की।

Dr. Rajendra Singh

राजेंद्र सिंह ने आगे बोलते हुए कहा कि यह नई आर्थिकी दुनिया पर अतिक्रमण कर रही है। इसलिए हमें अपने भविष्य को ठीक करने के लिए गौरवशाली भारतीय वन प्रबंधन संस्थान जैसे संस्थानों को अपनी शिक्षा को विद्या उन्मुखी बनाना पड़ेगा।

उन्‍होंने कहा कि जब हम शिक्षा को विद्यामुखी बनाएंगे, तो हम प्रकृति के साथ संयम का व्यवहार करना भी सिखाएंगे। प्रकृति के संयम व्यवहार से ही यह दुनिया अच्छी होगी।

आपने तरुण भारत संघ के चार दशकों के अनुभवों को भी साझा किया । उन्‍होंने कहा कि  विद्या से किए गए कार्यों में प्रकृति का प्यार रहता है। यदि प्रकृति के साथ जीना है तो हमें प्रकृति से अपने लेने – देने के रिश्ते ठीक करने होंगे।

कार्यक्रम में  संस्थान के विद्यार्थी और शिक्षकगण मौजूद थे। आयोजन में राममोहन, आर एन लाल पूर्व निदेशक भी विशेष तौर पर मौजूद रहे।

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