छतरपुर में प्राकृतिक जीवन दर्शन एवं प्राकृतिक चिकित्सा प्रशिक्षण शिविर सम्पन्न
छतरपुर । मानव का शरीर यदि मिट्टी, पानी, हवा व अग्नि से मिलकर बना तो उसका उपचार भी हमें इन्हीं तत्वों में मिलता है । आज भी दूरवर्ती ग्रामीण इलाकों तथा आदिवासियों के बीच उपचार का माध्यम प्रकृति व प्राकृतिक जीवन शैली ही है । हम कोरोना महामारी के इस दौर में देख भी रहे हैं कि जब उपचार के लिए सारी चिकित्सा पद्धतियां फेल हो गई तब बीमारी का इलाज हमें अपनी प्राकृतिक जीवन शैली में ही मिल पा रहा है। फिर क्यों न हमारी जीवन चर्या प्राकृतिक हो, हम प्रकृति के नजदीक रहकर सारी आवश्यकताएं पूरी करें।
उनके बातें गांधी आश्रम छतरपुर में दो दिवसीय प्राकृतिक जीवन दर्शन एवं प्राकृतिक चिकित्सा प्रशिक्षण शिविर में विषय विशेषज्ञों ने कहीं। गांधी आश्रम, छतरपुर व्दारा पिछले लंबे समय से जैविक कृषि वातावरण व प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र पोषण व उपचार के स्वावलंबन के काम किया जा रहे है। पिछले माह नवंबर में प्राकृतिक उपचार हेतु एक बड़े केंद्र के रूप में प्रशिक्षित चिकित्सकों के मार्गदर्शन में बा-बापू निसर्गोपचार केंद्र का शुभारंभ हुआ था। इसी सिलसिले में 29,30 नवंबर 2021 को यहां प्राकृतिक जीवन दर्शन एवं प्राकृतिक चिकित्सा प्रशिक्षण शिविर का आयेाजन किया गया जिसे जाने माने डॉ. एके अरूण, प्रो रामगोपाल विशेष रूप से शिबिर का संचालन किया ।
शुभारंभ सत्र में डॉ. ए के अरुण ने अपनी बात का प्रारंभ ब्रह्मांड की उत्पत्ति से लेकर आज तक के विकास क्रम पर विस्तार से चर्चा के साथ किया। उन्होंने कहा कि मानव की जीवन शैली समय के साथ जैसे – जैसे बदलती गई वैसे – वैसे हम नए-नए रोगों एवं विषाणुओं को पैदा करते गए। जब – जब मानव ने प्रकृति को चुनौती दी तब तब मानव को उसके विकराल रूप का सामना करना पड़ा। कोरोना महामारी यह हमारे लिए सीख है।
उन्होंने कहा कि डार्विन की फिटेस्ट सर्वाइवल थ्योरी के अनुरूप हमें अनुकूलन करना होगा यदि नहीं करेंगे तो डायनासोर की तरह अगले 100 साल बाद मानव अस्तित्व खतरे में होगा। इसलिए इंसान को अपनी फितरत बदलना होगा, क्योंकि वायरस पहले भी था, आज भी है और आगे भी अरबों खरबों की तादाद में रहेगा। यह वायरस दुनिया को व इंसानियत को पंगु बना देता है। हमें वायरस के इतने वैरियंट दिखाई दे रहे हैं जो आगे बहुत ज्यादा दिखेंगे लेकिन इसकी सक्रियता जितनी ज्यादा होगी बीमारियां उतनी अधिक फैलेंगी। हम सभी ने 1919 में स्पेनिश फ्लू की महामारी में दुनिया के लगभग 7 करोड़ लोगों को खोया, आज उससे भी बड़ा खतरा कोरोना वायरस से है। इसलिए यह तय है कि हमें खुद को प्राकृतिक जीवन शैली के अनुरूप बदलना होगा, इसी से हमें अपनी जीवनी शक्ति मिलेगी।
डॉ ए के अरुण ने महात्मा गांधी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत का उदाहरण देते हुए कहा कि यह शरीर आपका नहीं है ईश्वर ने यह आपको कुछ समय के लिए दिया है, इसलिए आप इसके मालिक नहीं ट्रस्टी है। ईश्वर की जब इच्छा होगी तब आपसे वापस ले लेगा। आपने महात्मा गांधी की स्वास्थ्य पर आधारित 3 पुस्तकें राम नाम, आरोग्य की कुंजी व नेचर क्योर प्राकृतिक जीवन शैली जीने वाले व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण बताया।
प्रो. रामगोपाल ने वैज्ञानिक तरीके से योग प्राणायाम पर बात रखी। आपने कहा कि हमें सांस कैसे लेना चाहिए, खाना कैसे खाना चाहिए, बैठना कैसे है और इन सभी दैनिक क्रियाओं को मिलाकर एक प्राकृतिक दिनचर्या कैसे बने इस पर विस्तार से बात की। प्राकृतिक चिकित्सा में सहानुभूति, करुणा का भाव बहुत जरूरी है वह रोगी और चिकित्सक के बीच एक आत्मीय संबंध बनाता है और रोगी को पूर्णता स्वस्थ बनाने में मदद करता। प्रो रामगोपाल ने हाइड्रो थैरपी एवं महात्मा गांधी की पुस्तक नेचर क्योर को स्लाइड शो के माध्यम से समझाया। बुंदेलखंड की सिद्ध परंपराएं और प्राकृतिक जीवन शैली को भी अपने अपने वक्तव्य में उकेरा।
शिबिर के द्वितीय दिन प्रो रामगोपाल ने वैज्ञानिक तरीके से योग प्राणायाम के गुर सिखाए। उसके बाद डॉ ए के अरुण ने आहार, पोषण व प्राकृतिक उपचार पर विस्तार से चर्चा की। शरीर की ऊर्जा का स्रोत क्या है? हम अपने भोजन के तत्वों से ही शरीर को रोगों से कैसे बचा सकते? इसके लिए केवल हमें शुद्ध जैविक भोजन ग्रहण करने की जरूरत है क्योंकि प्राकृतिक उपचार में दिनचर्या व आहार सुधारे बिना उपचार की बात ही नहीं हो सकती।
अन्तिम सत्र में शिविरार्थियों के अनुभव पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने छतरपुर के बा-बापू निसर्गोपचार केंद्र को शोध केंद्र के रूप में विकसित कर बुंदेलखंड के अधिकाधिक लोगों के साथ प्रत्येक 2 महीने में प्राकृतिक जीवन शैली पर शिक्षण प्रशिक्षण किये जाने हेतु आश्वस्त किया।
मध्य प्रदेश स्मारक निधि की मंत्री दमयंती पाणी ने सभी शिविरार्थियों व अतिथियों का आभार व धन्यवाद व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन अंकित मिश्रा ने किया।
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