जिस तरह एशिया भीषण बदलावों से गुज़र रहा है, साईनाथ ‘चेतना’ के नए स्रोत तलाश रहे हैं और नागरिक सहयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। इसी वजह से, वह प्रतिष्ठित फ़ुकुओका पुरस्कार के असली हक़दार हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया के संस्थापक संपादक पी साईनाथ को इस साल जापान के प्रतिष्ठित ग्रैड फुकुओका पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। पी. साईनाथ एक जुनूनी और प्रतिबद्ध पत्रकार रहे हैं, जिन्होंने ग्लोबलाइज़ेशन के बाद तेज़ी से आए बदलावों के दौरान, हाशिए पर खड़े ग्रामीण भारत की कहानियों को अपनी रिपोर्ट के केंद्र में रखा है। पी साईनाथ के साथ दो अन्य लोगों को भी फुकुओका पुरस्कार दिया गया है। तीन अलग-अलग श्रेणियों में दिए जाने वाले इस पुरस्कार में ग्रैंड अवार्ड साईनाथ को दिया गया, वही अकादमिक पुरस्कार जापान के इतिहासकार किशिमोतो मियो, कला और संस्कृति के लिए थाईलैंड के लेखक और फिल्म निर्माता प्रबदा यूं को सम्मानित किया गया।
जापान में इस पुरस्कार की शुरुआत 1990 में की गई थी। इसका उद्देश्य एशिया की अनोखी और विविधतापूर्ण संस्कृति को संरक्षित रखने और प्रोत्साहित करने के काम करने वाले लोगों और संस्थानों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि साल 2014 में डिजिटल पत्रकारिता के मंच के तौर पर ‘पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया (PARI)’ की स्थापना के बाद से साईनाथ ग्रामीण समाजों की विविध संस्कृतियों की कहानियां इकट्ठा करते रहे हैं और अलग-अलग भाषाओं में इन जानकारियों को पाठकों के बीच प्रसारित करने के ज़रूरी प्रोजेक्ट में लगे हुए हैं।
साईनाथ का जन्म चेन्नई (पूर्व में मद्रास) में हुआ था, लेकिन उनका परिवार मूल रूप से आंध्र प्रदेश का था। उनके दादा भारत के चौथे राष्ट्रपति वी. वी. गिरी थे। श्री साईनाथ ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रख्यात इतिहासकार, प्रोफ़ेसर रोमिला थापर के साथ इतिहास की पढ़ाई की, जिन्हें साल 1997 में फ़ुकुओका प्राइज़ के तहत ही अकादमिक पुरस्कार दिया गया था।
इसके बाद, वह पत्रकारिता की दुनिया में चले आए और यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ़ इंडिया के लिए काम किया और फिर एक राजनीतिक पत्रिका ‘ब्लिट्ज’ के उप-संपादक के तौर पर काम किया। साल 1990 के दशक में जब भारत में अनूठी मिश्रित-अर्थव्यवस्था नीति के तहत रिफ़ॉर्म लाया गया, और तथाकथित भारतीय समाजवाद को छोड़कर एक नव-उदारवादी और बाज़ार-आधारित अर्थव्यवस्था की तरफ़ देश ने रुख़ किया, तो बतौर स्वतंत्र पत्रकार उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए लेखों की एक शृंखला लिखी, ‘द फ़ेस ऑफ़ पूअर इंडिया.’
उनका सबसे ज़रूरी काम ‘एवरीबडी लव्स अ गुड ड्रॉट (1996) माना जाता है, और यह उनके 84 ज़मीनी लेखों का एक संग्रह है। इस किताब की दुनिया भर में बहुत प्रशंसा हुई थी। उन्हें साल 1995 में पत्रकारिता के लिए यूरोपियन कमीशन के लोरेंज़ो नताली पुरस्कार, साल 2000 में ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल ग्लोबल ह्यूमन राइट्स जर्नलिज़्म पुरस्कार’, साल 2001 में ‘द यूनाइटेड नेशन्स फ़ूड एण्ड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइज़ेशन’ के बोएर्मा प्राइज़, और साल 2007 में एशिया की पत्रकारिता की दुनिया में उनके योगदान के लिए रमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
अपने शानदार करियर के बावजूद, श्री साईनाथ की ‘चेतना’ की तलाश हमेशा जारी रही। वह गांवों में घूम-घूमकर और लोगों से बात करके जानकारी जुटाते हैं, तस्वीरों में वास्तविकता को क़ैद करते हैं, और ग़रीबी और प्राकृतिक आपदाओं के पीछे की वास्तविकताओं का ख़ुलासा करते हैं। साल 2004 से 2014 के बीच, उन्होंने ‘द हिंदू’ अख़बार के संपादक के तौर पर, ख़ुद पर ही ग्रामीण मुद्दों का कार्यभार रखा। डॉक्युमेंट्री फ़िल्मों, “ए ट्राइब ऑफ़ हिज़ ओन: द जर्नलिज़्म ऑफ़ पी. साईनाथ” (2002) और “नीरोज़ गेस्ट्स” (2009) ने दिखाया कि उनके काम का तरीक़ा क्या है, और इन फ़िल्मों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबका ध्यान खींचा। उन्होंने ग्रामीण सुधार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण, केंद्र और राज्य सरकारों के सलाहकार के तौर पर भी काम किया।
श्री साईनाथ के पास जापान में काम करने का अनुभव भी हासिल है। साल 2003 में, वह जापान फ़ाउंडेशन और इंटरनेशनल हाउस ऑफ़ जापान द्वारा मिलकर होस्ट किए गए एशिया लीडरशिप फ़ेलो प्रोग्राम के तहत फ़ेलो के तौर पर जापान आए थे। यहां उन्होंने कई लोगों से मुलाक़ात की, क्योटो, ओसाका, और हिरोशिमा सहित कई जगहों का दौरा किया, और अपने प्रमुख फ़ोटोग्राफ़िक कामों की प्रदर्शनियों के लिए काफ़ी प्रशंसा हासिल की। जब वे साल 2019 में दोबारा जापान आए, तो उन्होंने जानकारी इकट्ठा करने के लिए ग्रेट ईस्ट जापान अर्थक्वेक (भूकंप) से प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया, और कई लेक्चर किए, जिनमें उन्होंने हालिया ग्रामीण मुद्दों की एक भावुक तस्वीर पेश की।
वह भारत और बाहरी देशों के विश्वविद्यालयों में पढ़ाते हैं और युवा पीढ़ी को सामाजिक गैर-बराबरी और ग्रामीण समाज की वास्तविकताओं के बारे में जागरूक करते हैं। पिछले साल से, वह उन ग्रामीण क्षेत्रों से रिपोर्टिंग करने में व्यस्त हैं जहां लोग केाविड-19 महामारी और ग़रीबी की दोहरी मार झेल रहे हैं, साथ ही, श्री सांईनाथ लोगों को एक-दूसरे की मदद करने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। इस बीच, एशिया उथल-पुथल और भारी परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है, ऐसे में अपनी चेतना और नागरिक सहयोग की भावना की ख़ातिर, पी साईनाथ फ़ुकुओका ग्रैंड प्राइज़ के असली हक़दार हैं।
[block rendering halted]