भारत की डेमोक्रेसी को कागज से जमीन पर उतारने की जरूरत

इंदौर, 26 नवंबर। वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने कहा है कि भारत की डेमोक्रेसी को कागज से जमीन पर उतारने की जरूरत है । हमारे संविधान में देश को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए सभी सहमत थे। अब संविधान की भावना के खिलाफ बातें कही जा रही है।

श्री उर्मिलेश आज संविधान दिवस के अवसर पर अभ्यास मंडल और इंदौर प्रेस क्लब के द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। इस व्याख्यान का विषय था – संविधान, डॉ अंबेडकर और आज की चुनौतियां। उन्होंने कहा कि आज एक मुश्किल दौर है। यदि हम किसी की बात से असहमत हो जाते हैं तो वह बुरा मान जाता है। भारत का संविधान एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। हमारे देश का संविधान विश्व का सबसे बडा संविधान है। विश्व के कई देशों में बहुत छोटा संविधान है, लेकिन वहां पर लोकतंत्र की जडें बहुत मजबूत है। देश की आजादी से पहले 1928 में बनी कमेटी ने संवैधानिक ढांचा बनाने की कोशिश की थी। इसके बाद 1931 में बनी कमेटी में सरदार पटेल भी शामिल थे ।

उन्होंने कहा कि देश की संविधान सभा में जब ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष किसे बनाया जाए। इस बारे में जब विचार चल रहा था, तब महात्मा गांधी ने बाबा साहब अंबेडकर को यह दायित्व सौपने का सुझाव दिया था। यहां ये तथ्य इसलिए महत्वपूर्ण है कि वैचारिक रूप से महात्मा गांधी और डॉक्टर अंबेडकर के रिश्ते सही नहीं थे। हमारे देश के संविधान में आजादी की लड़ाई में शामिल नेताओं के विचार शामिल है। इस संविधान की उद्देशिका महानतम है। इसका प्रस्ताव जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था। इसमें लोकतंत्र शब्द अंबेडकर के सुझाव पर जोड़ा गया था। इस समय देश में जिस तरह से संविधान के नाम पर राजनीति की जा रही है, वह कल्पना से परे है। आज हमारे देश में राजनीति और पूंजीवाद मिलकर काम कर रहे हैं। प्रेस की आजादी में विश्व के 180 देश में भारत का नंबर 159 नंबर पर है। ह्यूमन डेवलपमेंट के इंडेक्स में भी हम बहुत पीछे हैं। हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका, नेपाल अच्छी स्थिति में है ।

उन्होंने कहा कि हमारे संविधान के निर्माण की प्रक्रिया में सेकुलर शब्द कई बार आया है। इस प्रक्रिया के दौरान अंबेडकर से लेकर सरदार वल्लभभाई पटेल तक ने देश को सेकुलर बनाने का सुझाव दिया था। अंबेडकर के द्वारा जो संविधान का प्रारूप बनाया गया था, उसमें भारत का नाम यूनाइटेड स्टेट ऑफ इंडिया रखा गया था।

उन्होंने कहा कि जिन लोगों की देश को आजादी दिलाने में, संविधान को बनाने में कोई भूमिका नहीं रही, वे आज संविधान की संरचना को चुनौती दे रहे हैं। आज बहुमत के साथ सत्ता में बैठे लोग संविधान की शपथ तो लेते हैं लेकिन संविधान की आत्मा को मारने वाली बात करते हैं। डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि हमारे देश से वर्ण व्यवस्था को समाप्त किया जाना चाहिए ताकि देश का हर नागरिक हिंदुस्तानी बन सके। इस समय देश के संविधान को कागज से हकीकत में उतारने की जरूरत है।

विषय की प्रस्तावना देते हुए इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने कहा कि भारतीय संविधान बनाने वाली संविधान सभा में कुल 299 सदस्य थे। संविधान का मुख्य पृष्ट इंदौर के दीनानाथ जी ने बनाया था। बाबा साहब अंबेडकर का जन्म स्थल इंदौर के पास का ही है। इस संविधान को हमें किसी भी धर्म ग्रंथ से बढ़कर स्थान देना है। अब संविधान को लेकर जो राजनीति होने लगी है वह गंभीर है। अब तो संविधान चुनाव का मुद्दा भी बन गया है।

कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत प्रदीप जोशी और वैशाली खरे ने किया । कार्यक्रम का संचालन शफी शेख ने किया। अतिथि को स्मृति चिन्ह,  मदन राणे ,प्रकाश हिंदुस्तानी ने भेंट किया। अंत में आभार प्रदर्शन अशोक कोठारी ने किया। इस अवसर पर साहित्यकार सुरेश उपाध्याय ने अपनी पुस्तक की प्रति भी उर्मिलेश जी को भेंट की।

जलवायु परिवर्तन के कारण अब गंभीरता के साथ संसाधनों के पुनर्वितरण और संपदा के पुर्नआबंटन की संभावना तो बढ़ती जा रही है, परंतु इस प्रक्रिया के न्यायोचित ढंग से अंतिम परिणाम तक पहुंचने में शंका है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह सब राबिनहुड की प्रसिद्ध दंतकथा के विपरीत होगा यानी कि अब संपदा व धन गरीबों से लूटकर अमीरों को दे दिया जाएगा। इसके बावजूद अमीर भी संभवतः स्वयं को अमीर महसूस नहीं कर पाएंगे। एक स्पष्ट उदाहरण के माध्यम से वैज्ञानिक लगातार इस बात की चेतावनी दे रहे हैं। उनके अनुसार मछलियों एवं अन्य जलीय जलचर अब भूमध्य से ध्रुवों की ओर कूच करने लगे हैं क्योंकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्र ज्यादा तप रहा है और यह विस्तारित भी होता जा रहा है। इसका सीधा सा अर्थ है कि कम से कम एक मूल्यवान संसाधन अब विश्व के सर्वाधिक गरीब देशों से निकलकर उन समुदायों की ओर जा रहा है जो कि तुलनात्मक रूप से अधिक समृद्ध हैं। गौरतलब है कि दुनिया की अधिकांश आर्थिक महाशक्तियां कम तापमान वाले क्षेत्र में ही स्थित हैं।

वरिष्ठ पत्रकार श्री उर्मिलेश ने लगभग चार दशकों में फैली अपनी पत्रकारिता की यात्रा में विचारपरक पत्रकारिता और तथ्यपरक रिपोर्टिंग के कई मानक स्थापित किए हैं। ‘नवभारत टाइम्स’, ‘दैनिक हिंदुस्तान’ जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के माध्यम से उन्होंने राजनीतिक तथा सामाजिक जीवन को प्रभावित करने वाली कई महत्वपूर्ण पहल की। तत्कालीन राजनीति का उनके लेखन पर गहरा प्रभाव भी पड़ा। ‘राज्यसभा टीवी चैनल’ के संस्थापक कार्यकारी संपादक के रूप में टीवी चैनलों की दुनिया को उन्होंने रचनात्मक आयाम दिया। उर्मिलेश की पत्रकारिता अपने वक़्त को न्याय व समता की दिशा में मोड़ने की पत्रकारिता रही है। उन्होंने कई किताबें भी लिखीं, जिनमें ‘बिहार का सच’, झारखंड पर केंद्रित ‘जादुई जमीन का अंधेरा’, कश्मीर पर केंद्रित ‘झेलम किनारे, दहकते चिनार’, ‘विरासत और सियासत’ शामिल हैं। बीते कुछ वर्षों में उनकी ‘क्रिस्टोनिया मेरी जान’, ‘गाजीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल’, और ‘मेम का गांव, गोडसे की गली’ जैसी किताबें पर्याप्त कीर्ति बटोरती रही हैं। राहुल सांकृत्यायन पर उनकी दो पुस्तकों ‘राहुल सांकृत्यायन : सृजन और सर्जक’ तथा ‘योद्धा महापंडित’ से लेकर भारत में उदारीकरण के प्रभावों पर केंद्रित ‘आर्थिक सुधार के दो दशक’ पुस्तक बताती है कि उनके सरोकार और चिंतन का दायरा कितना विस्तृत है।