विनोबा भावे की 125 जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति में सुश्री राधा बहन

30 अगस्त। विनोबा जी भूदान से अहिंसा को और अधिक आध्यात्मिक बनाया। वे उत्पादक को उत्पादन के साधन उसके हाथों मे देने की शुरुआत थी, जिससे वह अपने हाथें से पैदा करे और प्रतिष्ठापूर्ण जीवन व्यतीत करे। इससे उसमें आत्मविश्वास आया। देश की गरीबी दूर करने के लिए उत्पादक के हाथ में उत्पादन के साधन देने होंगे। विनोबा ने भूदान से देश की करुणा को जाग्रत किया। ग्रामदान होने पर गांव बचेंगे और देश सुरक्षित रहेगा।

उक्त विचार सत्य सत्र की वक्ता गांधी विचारक राधा बहन भट्ट ने विनोबा भावे की 125 जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में व्यक्त किए।

सुश्री राधा बहन ने कहा कि विनोबा जी क्रांतदर्शी संत हैं। महात्मा गांधी ने सन् 1909 में देखा कि देश यदि उपभोगवाद की आंधी में उड़ेगा तो अपने अस्तित्व को खो सकता है। अगर देश में हरेक व्यक्ति को रोटी, कपड़ा, मकान नहीं मिलेगा तो उससे गिरावट होगी। आज हमारे सामने यही दृश्य उपस्थित है। भूदान इसके लिए शानदार तरीका था। उन्होंने इसे यज्ञ नाम दिया।

सुश्री राधा बहन ने कहा कि एक व्यवस्था के कारण जो संपत्ति का ढेर बन गया था, उसे करुणा से लेने का संदेश विनोबा जी ने दिया। सरकार द्वारा दी जाने वाली मदद से गरीब की प्रतिष्ठा नहीं रहती। विनोबा जी ने देने वाले और लेने वाले की प्रतिष्ठा को ऊंचा उठाया। आज भौतिक विकास के पीछे दौड़ रहे हैं। इसलिए उसमें से अनेक समस्याएं पैदा हुई है। आज हम महामारी से जूझ रहे हैं। इसने हमें लज्जित भी किया है। दिहाड़ी पर काम करने वालों को आज की अर्थव्यवस्था पंद्रह दिन भी नहीं टिका पायी, जबकि उनके काम को आगे बढ़ाने का बुनियादी काम तो वे दिहाड़ी मजदूर ही करते थे। इतनी भी मानवीय संवेदना शेष नहीं बची है। उन गरीबों को उन्हीं जैसे लोगों ने मदद की। वे सभी उत्पादक लोग हैं, लेकिन उत्पादन के साधन उनके पास नहीं हैं। उत्पादन के साधन का मालिक तो कोई और ही है। इसीको विनोबा जी ने देखा था और करुणा के लिए पूरे देश में वातावरण बनाया।

सुश्री राधा बहन ने कहा कि उत्तराखंड में जमीन बहुत अधिक नहीं होती। भूदान आंदोलन में वहां पर जिस महिला के पास पांच नाली भूमि थी। उसमें से दो नाली भूमि एक बेजमीन महिला को दे दी। यदि दिल में करुणा होगी तो थोड़े में से भी दिया जा सकता है। भूदान में करुणा जाग्रत करने की शक्ति थी। सुश्री राधा बहन ने स्वीकार किया कि विनोबा जी ने रास्ता बताया लेकिन हम उसे पूर्णता तक नहीं पहुंचा पाए। ग्रामदान विचार आज के युग के अनुकूल है। ग्रामदान से किसानों की प्रतिष्ठा जीवित रहेगी। ग्रामदान होगा तो गांव की जमीन  का कोई स्पर्श नहीं कर सकेगा। गांव की ताकत से देश ताकतवर बनेगा। उन्होंने कहा कि देश में पिछले दिनों जो कुछ घटा उससे विदेशों में हमारी इज्जत कम हुई है।

प्रेम सत्र के वक्ता श्री चंदन पाल ने कहा कि विनोबा जी को प्रथम सत्याग्रही बनाने का यही कारण था कि उनके पास भविष्य की स्पष्ट योजना थी। विनोबा जी का कहना है कि जहां किसी प्रकार का भय नहीं होता वहीं शांति कायम रह सकती है। केवल युद्ध न होने को शांति नहीं कह सकते। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक शोषण से मुक्त समाज में ही लोग शांति से रह सकते हैं।

उन्होंने कहा कि अमीर और गरीब के भेद को साम्ययोग दूर कर सकता है। विनोबा जी का रास्ता भूदान से ग्रामदान, ग्रामस्वराज्य और विश्वशांति की ओर जाता है। युद्ध से शांति और हिंसा से आर्थिक विषमता दूर करना कभी संभव नहीं है। श्री चंदन पाल ने कहा कि भूदान को लेकर विनोबा जी के आलोचकों ने कहा कि इससे जमीन के टुकड़े होंगे। तब विनोबा ने अपने जवाब में कहा कि टुकड़े हुए हृदय को जोड़ना हमारा काम है। भोग और लालसा शांति में बाधा है। शोषण की मनोवृत्ति से हिंसा का जन्म होता है।

करुणा सत्र की वक्ता सीना बहन ने कहा कि विनोबा जी के विचारों से अनेक व्यक्तियों का हृदय परिवर्तन हुआ। उन्होंने विचार समझाने के लिए कभी दबाव-प्रभाव का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने हर कार्य को गरीबों की सेवा से जोड़ा और करुणा तत्व का विस्तार किया। प्रारंभ में सुश्री उर्मिला बहन ने वक्ताओं का परिचय दिया। संचालन श्री संजय राय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना। (प्रस्‍तुति : डा.पुष्पेंद्र दुबे)

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