12 जून । प्रसिध्‍द पर्यावरणविद एवं गांधी विचारक टी. जी. कुट्टी मेनन का आज सुबह 7.40 मिनट पर इंदौर में निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे। शुक्रवार सुबह उन्हें हार्ट अटैक आया था। जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था।  

जैविक कृषि के जानकार और गांधीवादी विचारक गोविंदन कुट्टी मेनन को उनकी सेवाओं के कारण 1991 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से विभूषित किया गया था। इसके पहले उन्हें उन्हें 1986 में भारत का पहला इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र पुरस्‍कार से अलंकृ‍त किया गया था। बाद में कस्तूरबा गांधी के नाम पर स्थापित राष्‍ट्रीय स्‍मारक ट्रस्‍ट के माध्‍यम से 1989 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय योगदान के लिए प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार प्रदान किया गया था। वही 1989 में असाधारण प्रगतिशील कृषक का सम्‍मान के तौर लाल बहादुर शास्‍त्री अर्वाड से भी सम्‍मानित किया गया। केरल के थ्रीशुर जिले के कोडुंगलुर कस्बे में 2 मार्च 1940 में जन्में मेनन 60 के दशक में इंदौर के कस्‍तूरबा गांधी स्‍मारक ट्रस्‍ट से जुडे और फिर इंदौर के होकर रह गए। वे अपने आप को ‘मालवी केरेलियन’ के रूप में मानते थे, क्‍योंकि उनके मन में मालवा रच बस गया था।  

स्‍टेनाग्राफर से जैविक खेती और गोपालन की दुनिया तक का सफर

कस्‍तूरबा ट्रस्‍ट में प्रारंभिक तौर पर स्‍टेनाग्राफर के तौर पर अपना सफर शुरू करने वाले कुटटी मेनन पश्चात में जैविक खेती बागवानी और गोपालन की अनोखी दुनिया में आ गए। 1978 में कृषि प्रसार और पर्यावरणीय खेती विषय पर स्‍वीटजरलैंड और 1993 में न्‍यूजीलैंड से बायोडायनामिक कृषि पध्‍दति में भी डिप्‍लोमा किया। जवाहरलाल नेहरू कृषि विवि तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तीन रिसर्च इंस्‍टीटयूट  और देवी अहिल्‍या विवि, इंदौर की कार्यकारिणी समिति और बोर्ड सदस्‍य होने नाते उन्‍हें शोध, अध्‍ययन और अनुसंधान के अनेक मौके मिेले। 1970 से 1990 तक कस्‍तूरबा ट्रस्‍ट की गोशाला से जुडै और उसे समृद्ध बनाया । 1966 में जापान और ओकिनावा की यात्राएं की। कृषि विशेषज्ञ बनवारीलाल चौधरी के सान्न्ध्यि में उनकी कृषि कार्यों के प्रति अभिरूचि बढी और खेती के नये प्रयोगों से सम्‍बध्‍द हुए। 1986 में चीन में उर्जा प्रबंधन और ग्रामीण उर्जा पर आयोजित अंतर्राष्‍ट्रीय सेमीनार में भारत सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर सम्मिलित हुए। प्रसिध्‍द कृषि वैज्ञानिक एम एस स्‍वामीनाथन के संपर्क में आकर कृषि के क्षेत्र में नवाचारों के प्रति रूचि दिखाई।

खेतों को प्रयोगशाला बनाने के सफल प्रयोग किये

कस्‍तूबाग्राम में बायोमास से इंदौर पध्‍दति, नाडेप पध्‍दति और बंगलौर पध्‍दति से खाद बनाने की प्रक्रिया आरंभ की। 1975 -76 में 118 एकड  की कस्‍तूरबा ग्राम की भूमि तथा भूरी टेकरी को एक अनूठा और बाटनीकल कम जूलाजीकल गार्डन बनाने की दिशा में संकल्‍पबद्ध हुए लिया तथा जल संरक्षण के तहत तालाब का निर्माण किया गया।

कुट्टी जी ने कस्‍तूरबा ट्रस्‍ट के खेतों को एक ऐसी प्रयोगशाला बनाने के सफल प्रयोग किये, जिन्‍हें देशभर के श्रेष्‍ठतम फल, फूल, सब्‍जी और वनास्‍पतिक दृष्टि से विविधता लिए पेड़-पौधेों को प्रयासपूर्वक बुलवाया गया। उनमें लखनउ के आम , आंवला तथा अमरूद, बडवानी के नींबू, जोधपुर से अनार, उत्‍तरप्रदेश से कटहल, केरल से नारियल, सुपारी काजू, काफी आदि अनेक तरह के फलदार और विभिन्‍न प्रकार के उच्‍च दर्जे के मसाले के पौधे लगाए गए।  

कस्‍तूरबा ट्रस्‍ट छोडने के बाद वे जैविक खेती के संवर्द्धन के लिए सतत रूप से जुटे रहे । 1997 में संवाद नगर में पर्यावरण अनुकूल घर का निर्माण किया, जो इंदौर के लिए सौगात है। हर कमरे में सूर्य का प्रकाश और शुद्ध हवा बारह माह रहती है। घर बनाने में लोहे, लकड़ी और सीमेंट का कम से कम प्रयोग कर उसकी जगह बांस, पत्थर और चूने का प्रयोग किया। इससे घर की मजबूती पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पडा़, बल्कि सुंदरता बढ़ गई और लागत घाट गई। घर का ज्यादातर फर्नीचर उन्होंने लकड़ी की जगह पत्थर से बनवाया है। ईको फ्रेंडली आर्किटेक्चर और घर में लगे जंगल का ही कमाल है कि बाहर जब तापमान 45 तक पहुंच जाता है तब भी उनके घर में एसी चलाने की ज़रूरत नहीं होती।

घर के बाग बगीचे में 278 प्रकार के डेढ़ हजार पेड पौधे लगे है। इनमें तरह-तरह के फल, फूल और सब्जियों के अलावा गरम मसाले के पौधे भी शामिल हैं। शायद ही कोई सब्जी ऐसी होगी जो उनके यहां नहीं उगती। इसके अलावा इस जंगल में लीची का पेड़ भी है और कॉफी का भी। उन्होंने एक आल स्पाइसेस नाम का पौधा लगाया है, इसकी खासियत ये है कि इसकी पत्तियों में सभी तरह के खड़े मसाले की खुशबु आती है। पेड़ पौधों की पत्तियों से वे घर में ही केंचुआ खाद बनाते हैं। उन्होंने मच्छरों से निपटने के लिए कुछ खास तरह के पौधे भी लगा रखे हैं। अपने घर से कचरे का एक तिनका भी बाहर नहीं फेंकते। किचन और पेड़ पौधे के कचरे से वो खाद बनाते हैं और घर में आए डिस्पोजेबल कप, ग्लास और डिब्बों का इस्तेमाल पौधे लगाने में कर लेते हैं। चाय के कप में मिट्टी डालकर वे उसमें बीज लगा देते हैं और अंकुर निकलने पर पौधा लगाने के लिए किसी मित्र, परिचित, पडोसी या रिश्तेदार को दे देते हैं।

नौलखा से संवाद नगर होते हुए आजाद नगर तक सड़क चौड़ीकरण के लिए 36 पेड़ों को काटने से रोकने में भी कुटटी जी की अहम भूमिका रही। विकास के लिए हरे-भरे पेड़ों को काटना तकनीफदेय है। इससे सुविधाएं तो बढ़ रही है, लेकिन ऑक्सीजन का स्रोत कम हो रहा है और कार्बन बढ़ रहा है। संतुलन बनाए रखने के लिए पेड़ जरूरी हैं।

उनका मानना था कि कृषि और गो पालन का प्रसार प्रसार सबेस बडी समाज सेवा है। जिस दिन हमारे देश के किसान सुखी और सम्‍पन्‍न और संतुष्‍ट हो जाएंगे तथा गो आधारित अर्थ व्‍यवस्था हो जाएगी उस दिन हमारा देश विश्‍व का सबसे समृद्ध देश होगा।

कुट्टी के निधन पर देशभर की गांधीवादी और रचनात्‍मक संस्‍थाओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की है।  

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