मुखरता और बेबाकी के कारण नचिकेता ने मीडिया संस्थानों से कभी समझौता नहीं किया
अहमदाबाद। जाने माने सर्वोदयी चिंतक नारायण देसाई के पुत्र ख्यात पत्रकार नचिकेता देसाई (72 वर्ष) का आज सुबह अहमदाबाद में अपने आवास पर निधन हो गया। वे पिछले तीन साल से कैंसर और दिल की बीमारी से जूझ रहे थे अपनी जिजीविषा के बूते वे कई बार काल को चकमा देने में सफल भी रहे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। नचिकेता ने एक दर्जन से ज्यादा मीडिया संस्थानों में काम किया, लेकिन समझौतावादी नहीं होने के कारण कहीं भी लंबे समय तक टिक नहीं पाए। इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट के रूप में उनकी खबरें बैनर बनती थीं। संसद में उन खबरों पर बहस होती थीं। एक खोजी खबर के बाद उन्हें महीनों सपरिवार भूमिगत रहना पड़ा, क्योंकि उस खबर से अहमदाबाद में पुलिस बगावत पर उतर गई और सेना को बुलाना पड़ा।
नचिकेता मूलत: अंग्रेजी के और खांटी सत्ता विरोधी पत्रकार थे। उनकी जिजीविषा इतनी मजबूत थी कि अपनी बीमारी की अवस्था में भी उन्होंने महात्मा गांधी के निजी सचिव रहे अपने दादाजी यानी महादेव भाई देसाई की जीवन-यात्रा पर लेखन (MAHADEV DESAI: MAHATMA GANDHI’S FRONT LINE REPORTER) का काम पूरा किया था, और जिसका लोकार्पण पिछले महीने एक जनवरी को साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) में हुआ था. हाल ही में पूरा किया था और इस पुस्तक का इस वर्ष के प्रारंभ में विमोचन हुआ था।
नचिकेता देसाई इंदौर में 1985 में दैनिक भास्कर के कार्यकारी संपादक भी रहे। बाद में वेबदुनिया सहित कई मीडिया संस्थानों में अपनी सेवाएं दीं। वे बहुभाषी पत्रकार थे, कई भाषाओं अंग्रेजी, हिंदी, ओड़िया, अवधी, मलयालम आदि के जानकार थे।
उल्लेखनीय है कि नचिकेता के नाना ओडीशा के मुख्यमंत्री रहे। दादा महादेवभाई देसाई गाँधीजी के 25 साल तक निजी सचिव रहे। उनके पिता नारायण देसाई का जन्म साबरमती आश्रम में हुआ था और वे देश-दुनिया में सैकड़ों जगह गांधी कथा सुनाते थे, लेकिन नचिकेता ने पत्रकारिता को चुना और फायरब्रांड पत्रकारिता की।
नचिकेता देसाई के परिवार की गांधीवादी विचारकों और गांधीवाद को मानने वालों के बीच बड़ी प्रतिष्ठा रही। संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी का शांतिपूर्ण ढंग से विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर देश भर में पुलिस द्वारा की गई हिंसा के विरोध में नचिकेता देसाई अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में उपवास पर भी बैठे थे। पहले तो आश्रम के गांधीद्रोही ट्रस्टियों ने अपनी कायरता और सरकार-भक्ति का परिचय देते हुए नचिकेता को आश्रम परिसर से हटाया और जब वे आश्रम के बाहर उपवास पर बैठ गए तो वहां से पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।
नचिकेता जी का सप्रेस परिवार के साथ गहरा नाता रहा है। सप्रेस की विकास यात्रा में उनके योगदाग को कभी भुलाया नहीं जा सकता।