वाराणसी,12 अगस्त। गांधीवादी संस्थाओं पर हमले के सिलसिले को जारी रखते हुए शनिवार 12 अगस्त को वाराणसी के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ परिसर के भवनों को जमींदोज की जाने वाली कार्यवाही पर देश के जाने माने गांधी विचारकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मोदी-योगी डबल इंजन सरकार द्वारा एक और गांधीवादी संस्थान को निशाना बनाने की निंदा की है।
99 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी डॉ. जी. जी. परीख, मेधा पाटकर, प्रो. आनंद कुमार, डॉ. सुनीलम, अरुण श्रीवास्तव, फ़िरोज़ मीठीबोरवाला, महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी, जनता वीकली की प्रबंध संपादक गुड्डी समेत अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों ने इस अवैध कार्रवाई की निंदा की है। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि बड़ा हमला महात्मा गांधी की विचारधारा पर है, यही कारण है कि हर गांधीवादी संस्थान, हर लोकतांत्रिक, संसदीय और संवैधानिक संस्थान लगातार खतरे में है।
संयुक्त रूप से जारी बयान में कहा कि भाजपा-आरएसएस शासन द्वारा महात्मा गांधी, उनकी विचारधारा, उनके जीवन, उन सभी मूल्यों और सिद्धांतों जिनके लिए वे मरते दम तक खड़े थे, उनका हमारे स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय योगदान और जिन्होंने आधुनिक भारतीय गणराज्य की नींव रखी उन पर हमला लगातार किया जा रहा है।
आज देश एक गांधीवादी संस्थान पर बुलडोज़रों के हमले से स्तब्ध है। राजघाट, वाराणसी में सर्व सेवा संघ परिसर, जो गंगा-वरुणा नदियों के तट पर स्थित है, उसको छल और धोखे से कब्ज़ा कर लिया गया है। इस 14 एकड़ परिसर को एक अन्य क्रोनी कैपिटलिस्ट कॉरपोरेट को सौंपा जाना है, जो इस साइट पर 5-स्टार प्रोजेक्ट का निर्माण करेगा। यह परिसर इतिहास से भरा हुआ है और इसकी स्थापना और निर्माण आचार्य विनोबा भावे, लाल बहादुर शास्त्री और जयप्रकाश नारायण जैसे दिग्गजों द्वारा किया गया था। 6 दशकों से अधिक समय से यह परिसर गांधीवादी विचारों को बढ़ावा देने का केंद्र रहा है, लेकिन आज यह ध्वस्त हो चुका है। इसी पैटर्न के तहत, पहले भी गुजरात में गुजरात विद्यापीठ, जिसकी स्थापना स्वयं महात्मा गांधी ने की थी, पर आरएसएस ने कब्जा कर लिया। अहमदाबाद में गांधी जी द्वारा स्थापित साबरमती आश्रम पर भी कब्ज़ा कर लिया गया है।
बयान जारी करने वाले प्रबुद्धजनों ने कहा कि 9-10 अगस्त, 2023 को वाराणसी में देश भर के प्रमुख गांधीवादी, समाजवादी और प्रगतिशील कार्यकर्ताओं की एक प्रमुख राष्ट्रीय सभा इस जन प्रतिरोध का गवाह बना। गंगा के घाट पर 3000 से अधिक महिलाओं और पुरुषों के साथ एक विशाल सार्वजनिक बैठक आयोजित की गई। शासन को जब यह एहसास हुआ कि परिसर को बचाने के लिए आंदोलन को राष्ट्रीय समर्थन मिल रहा है, तो उसने प्रतिरोध की किसी भी उम्मीद को खत्म करने के लिए बुलडोजर चलाने का फैसला किया। सार्वजनिक बैठक के आयोजकों को गिरफ्तार कर लिया गया है और शासन भय की लहर फैलाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन वे यह नहीं जानते कि इससे वाराणसी, उत्तर प्रदेश और भारत के कार्यकर्ताओं और लोगों का संकल्प मजबूत हुआ है।
उन्होंने कहा कि परिसर में फासीवादी हमले की स्पष्ट रूप से निंदा करते हैं। हम सभी सामाजिक आंदोलनों, राजनीतिक दलों और भारत के सभी लोगों से भारत पर सांप्रदायिक फासीवादी हमले का विरोध जारी रखने और हमारे लोकतंत्र और हमारे संविधान की रक्षा करने का आह्वान करते हैं।