इंदौर ।  1 मई 2022 को सर्वोदय प्रेस सर्विस (सप्रेस) ने अपनी स्‍थापना के 62 वां वर्ष पूर्ण कर 63 वें वर्ष में प्रवेश किया है। इन 6 दशक के सफर में सप्रेस ने हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में मूल्‍यगत व वैकल्पिक पत्रकारिता के नये प्रतिमान गढ़ने का प्रयास किया है। इन 62 वर्षों में सप्रेस ने सप्रेस फीचर्स के अलावा पिछले 3 वर्षों से सप्रेस पोर्टल का संचालन भी आरंभ किया है जिसमें विश्‍लेषात्‍मक आलेखों के अलावा समसामयिक विषयों पर समाचार, रिपोतार्ज नियमित रूप से प्रसारित की जा रही है।

Rakesh Dewan, Editor, Sarvodaya Press Service (SPS)

सर्वोदय प्रेस सर्विस के संपादक एवं वरिष्‍ठ पत्रकार राकेश दीवान ने कहा कि पूंजी और बाजार के दायरे से बाहर सक्रिय वैकल्पिक मीडिया के रूप में ‘सर्वोदय प्रेस सर्विस’ (सप्रेस) अपने इन छह दशकीय लंबे सफर और करीब डेढ हजार (ऑन-लाइन और प्रिंट संस्‍करणों के) मौजूदा उपयोगकर्ताओं के साथ अपनी भूमिका लगातार  निभाता रहा है। सप्रेस को  सीमित संसाधनों और सादगी में काम करने का लंबा अनुभव रहा है। अपने प्रयास में हमने कुछ अलग लोगों को जोड़ने की कोशिश की है, जिनमें वरिष्‍ठ पत्रकारों, सामाजिक कार्यकत्‍ताओं, लेखक, चिंतक जमीनी स्‍तर पर जुडे व्‍यक्तियों और संस्‍थाओं सहयोग शामिल है।

‘अंतरराष्‍ट्रीय मजदूर दिवस,’ एक मई 1960 से विधिवत शुरु हुई ‘सर्वोदय प्रेस सर्विस’ की निष्‍ठावान पहल के तहत हर सप्ताह तीन या चार आलेख और कुछ ख़बरों के साथ साप्ताहिक बुलेटिन जारी किया जाता है। ‘सप्रेस’ एक समाचार-विचार सेवा है, जिसके माध्यम से समाज के हाशिए पर बैठे वंचितों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, किसानों आदि के बारे में लेख और समाचार प्रकाशित किए जाते हैं। मोटे-तौर पर जल, जंगल, जमीन, विस्थापन, पर्यावरण, गरीबी, श्रम, सामाजिक परिवर्तन, विकास, स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, कृषि जैसे मुद्दों पर विषय विशेषज्ञों, वरिष्‍ठ लेखकों और मैदानी कार्यकर्ताओं द्वारा तैयार की गई सामग्री देशभर के पत्र-पत्रिकाओं के माध्‍यम से पाठकों तक पहुंचाने का काम ‘सप्रेस’ ने किया है।

‘सप्रेस’  बुलेटिन देश के 17 राज्यों के 1500 से अधिक अखबारों, पत्र – पत्रिकाओं, संस्थाओं, व्यक्तियों, संगठनों को प्रति सप्ताह भेजा जा रहा है। इन बुलेटिनों के माध्यम से वर्ष भर में भेजे जाने वाले लगभग 150 आलेखों को हिंदी अखबारों द्वारा प्रकाशित किया जाता है। हमारा प्रयास है कि देश के विभिन्न अंचलों में अखबारों/पत्रिकाओं में सामाजिक सरोकारों से संबंधित सामग्री नियमित रूप से पहुंचती रहे तथा मास मीडिया के जरिये इन मुद्दों को आम जनता के बीच लाया जाता रहे। अपनी इस नीति के चलते ‘सप्रेस’ बडे, नामधारी अखबारों के अलावा अपनी सामग्री छोटे पत्र-पत्रिकाओं को भी भेजता है। इन स्‍थानीय और आसपास के गांवों, कस्‍बों और शहरों में रुचि से पढे जाने वाले समाचार पत्रों, पत्रिकाओं से ‘सप्रेस’ को आमतौर पर कोई शुल्‍क नहीं मिल पाता, लेकिन उनके जरिए जन सामान्‍य तक विचार का व्‍यापक प्रसार-प्रचार हो जाता है।    

सप्रेस से जुडे प्रबंध संपादक कुमार सिद्धार्थ ने बताया कि ‘सप्रेस’ एक तरफ, अपनी सामग्री के जरिए नीति-निर्माताओं को मैदानी परिस्थितियों से दो-चार करवाना चाहता है तो दूसरी तरफ, समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज को उचित जगह स्‍थापित करना चाहता है। पिछले कुछ सालों में मीडिया की प्राथमिकताओं, सोच और कार्यशैली में बदलाव आया है। ऐसे में आर्थिक संसाधनों का अभाव ‘सप्रेस’ के सामने एक अहम चुनौती रही है। फिलहाल ‘सप्रेस’ (प्रिंट) देशभर में फैले छोटे-मोटे दान-दाताओं, पत्र-पत्रिकाओं से मिलने वाले थोडे-बहुत पारिश्रमिक और निजी आर्थिक सहयोग से संचालित हो रही है।

सप्रेस के शुरूआत की कहानी वर्ष 1960 में इंदौर आए आचार्य विनोबा भावे की चुनौती और एक रूपए के सांकेतिक अनुदान से सर्वोदय आंदोलन से संबंद्ध महेन्‍द्रकुमार द्वारा शुरु की गई ‘सप्रेस’ असल में मीडिया और गांधीवादी सामाजिक उपक्रमों का मिला-जुला रूप है। विनोबा तत्‍कालीन मध्‍यभारत के एक महत्‍वपूर्ण शहर और वर्तमान मध्‍यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर को ‘सर्वोदय नगर’ में तब्‍दील करने की सद्इच्‍छा से महीनेभर के इंदौर प्रवास पर थे। एक दिन उन्‍होंने सर्वोदय विचार को प्रसारित करने की जरूरत पर बल देते हुए चुनौती रखी कि ‘सर्वोदय का मंच तो बना है लेकिन कोई प्रेस नहीं है। इसे कौन करेगा?’ जयप्रकाश नारायण (जेपी) के आव्‍हान पर अपनी स्‍नातकोत्‍तर कक्षा की पढ़ाई बीच में छोड़कर भूदान-ग्रामदान के काम में लग गए युवा महेन्द्रकुमार को यह चुनौती उत्साहित कर गई। उन्होंने तत्‍काल विनोबा से गांधी विचार पर आधारित एक सशक्त प्रेस खड़ी करने का वादा कर दिया। विनोबा से तत्‍काल, वहीं मिले एक रुपए के सांकेतिक सहयोग तथा लिखने-पढने और संवाद की अपनी बेहतरीन क्षमताओं के बल पर महेन्‍द्रभाई ने जीवन भर यह वादा निभाया।

अपने प्रिंट मीडिया के अनुभवों के बाद सप्रेस ने www.spsmedia.in स्वतंत्र हिंदी विचार-विश्‍लेषण पोर्टल के तौर पर वर्ष 2020 से एक डिजिटल पहल की शुरूआत की है। सप्रेस ने बेहतर पत्रकारिता के संकल्प और एक संस्थान के रूप में फीचर सर्विस और हिंदी विचार-विश्‍लेषण पोर्टल जनहित और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार चलने के लिए प्रतिबद्ध है।

सप्रेस के स्‍थापना दिवस पर एक जागरूक पाठक एवं सप्रेस परिवार से संबंद्ध  संजय मेहता ने अपने संदेश में लिखा कि विकास की अंधाधुंध दौड़ में टिकाउ  विकास  के प्रति सजगता/चिंतन की बात हो, मूल्य आधारिक पत्रकारिता की बात हो,समाज के वंचित तबके की आवाज़ उठाने की बात हो,स्थानीय से लेकर वैश्विक संकट की भविष्‍य में भी बात हो या जल,जंगल,जमीन के उचित प्रबंधन का मुद्दा हो, सप्रेस जैसे पत्रकारिता संस्‍थान की आवश्यकता आज पहले ज्यादा महसूस होती है। अपने वैश्विक लेखक एवं पाठक परिवार के साथ आज भी सप्रेस उन्हीं उद्देश्यों और आदर्शों से सतत काम कर पा रहा है यह उसके  वर्तमान कर्णधारों की प्रतिबद्धता का ही परिणाम है।

सप्रेस बोर्ड से जुडे वरिष्‍ठ पत्रकार एवं जनसंपर्क विभाग से सेवानिवृत्‍त श्री रघुराज सिंह,सेवानिवृत्‍त प्रोफेसर एवं पर्यावरण मामलों के जानकार डॉ. ओ. पी. जोशी, वरिष्‍ठ पत्रकार एवं पर्यावरण डाइजेस्‍ट के संपादक डॉ. खुशालसिंह पुरोहित ने अपनी शुभकामनाएं व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि सप्रेस अपनी प्रतिबद्ध के अनुरूप आगे भी मुखरता और प्रखरता के साथ मुद्दों और पहलुओं को सामने लाने की प्रयास किया जाएगा। इस महत्‍वपू्र्ण और ऐतिहासिक कार्य की अपनी महत्‍ता और गरिमा है। इसकी सातत्‍यता को बनाये रखा जाएगा।  

मौजूदा दौर में सप्रेस को अपनी भूमिका को कुशलता और कर्मठता से निभाने और भविष्‍य की बेहतरी के लिए योजना बनाने में कामयाबी मिल सके इसके लिए साथ और सहयोग अपेक्षित है। आपका छोटा सा छोटा सहयोग सप्रसे की बडी ताकत है। सप्रेस के स्‍थापना दिवस के मौके पर आप अपनी क्षमता-भर  ‘सप्रेस’ को आर्थिक और अन्‍य सहयोग प्रदान कर अपना आशीर्वाद दे सकेंगे।  

[block rendering halted]

1 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें