प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से आरोग्य में स्वावलंबन संभव

18 अगस्‍त को विनोबा की 125वीं जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति में भरत भाई शाह

आज तक हम शरीर की बनावट को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। हमारा शरीर अपने आप में खुली हुई फार्मेसी है, जिसकी चाबी हमारे मन के पास है। हमारे स्वस्थ रहने में मन और हृदय का बहुत योगदान है। प्राकृतिक चिकित्सा में इन दोनों का महत्व है। यह अहिंसक चिकित्सा पद्धति है। आरोग्य में स्वावलंबन किसी भी देश की पूंजी है। प्राकृतिक चिकित्सा की सामान्य शिक्षा से हम इसे हासिल कर सकते हैं।

यह बात अहमदाबाद के प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. भरत भाई शाह ने विनोबा जी की 125वीं जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में कही। श्री भरत भाई ने कहा कि महात्मा गांधी और विनोबा जी ने स्वास्थ्य की समस्याओं का दर्शन सौ साल पहले ही कर लिया था। आमजन में प्राकृतिक चिकित्सा को लेकर अनेक भ्रांतियां है। आमतौर पर मोटापा दूर करने, मालिश करने आदि तक इसे सीमित मान लिया गया है। यह चिकित्सा पद्धति पूरी जीवन शैली से संबंधित है।

उन्होंने कहा कि हमारे शरीर में हर प्रकार के रोग को दूर करने की शक्ति मौजूद है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में रोग को शरीर और मन की शुद्धि के रूप में देखा जाता है। कुदरत द्वारा बनाया गया शरीर अद्भुत यंत्र है। इसमें सारी प्रक्रियाएं स्वयं संचालित होती हैं। इसकी प्रक्रिया में बाधा पहुंचने पर रोग पैदा होते हैं। श्री भरत भाई ने बताया कि निश्चित समय पर संतुलित आहार-विहार और निद्रा से रोग दूर रहते हैं। मन की शांति और हृदय की शुद्धता भी महत्वपूर्ण है। इसके नियमित अभ्यास से जीवनभर स्वस्थ्य रहा जा सकता है। प्रकृति के पंचमहाभूत से ही हमार शरीर बना है। उनके असंतुलन से हम बीमार होते हैं। स्रष्टि और शरीर में सामंजस्य स्थापित करने से रोग दूर हो जाता है। इसलिए हमारे शरीर को हमेशा अनुकूल वातावरण देने की कोशिश करनी चाहिए।

श्री भरत भाई ने विभिन् चिकित्सा पद्धतियों के क्रम की जानकारी देते हुए कहा कि प्रथम स्थान पर प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति, फिर आयुर्वेद, होम्योपैथ और अंत में ऐलोपैथी की ओर जाना चाहिए। आज की हिंसात्मक चिकित्सा पद्धति के बारे में उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष पांच करोड़ से अधिक प्राणियों का बलिदान लिया जाता है। भारत में महंगी चिकित्सा पद्धति के कारण साढ़े पांच करोड़ लोग गरीब हो जाते हैं। यदि प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का समुचित प्रशिक्षण दिया जाए तो हम आरोग्य के मामले में स्वावलंबी हो सकते हैं। संयम के बिना यह चिकित्सा संभव नहीं है। विनोबा जी ने प्राकृतिक चिकित्सा को सत्व चिकित्सा कहा है। श्री भरत भाई ने कहा कि प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति और मन के अनुसार चलना संभव नहीं हो सकता। मन को नियंत्रित करके ही इसका लाभ उठाया जा सकता है। ऐलोपैथी में मन के अनुसार जीने की स्वतंत्रता है और दवाईयां भी चलती रहती हैं। मृत्यु  कोई भी चिकित्सा पद्धति सर्वांगीण नहीं होती, परंतु मनुष्य के पास प्रकृति के अनुसार स्वस्थ्य रहने का विवेक है। आरोग्य की कुंजी हमारे हाथ में ही है, उसका प्रयोग करते आना चाहिए।

द्वितीय वक्ता अमेरिका से मीडिया में उच्च शिक्षा प्राप्त कर भारत वापस आए श्री मधुसूदन भाई ने कहा कि आज मैत्री का युग है। इसमें व्यक्ति बिना किसी लाभ-हानि के पूरा समर्पित होता है। मैत्री भाव में काम करना सहज होता है। मित्र दर्पण की तरह होता है, जिसमें हमारा प्रतिबिंब दिखायी देता है। उन्होंने बताया कि अमेरिका में उन्हें अनाम व्यक्ति ने तीन हजार डॉलर का कैमरा गिफ्ट किया था। जिसे लेकर वे बिहार में विनोबा जी के समन्वय आश्रम आए। वहां पर उस कैमरे से शाॅर्ट फिल्में बनायीं। इसके बाद पूरो भारत का भ्रमण किया। विनोबा जी के ब्रह्मविद्या मंदिर से उन्हें जीवन का नया संदेश मिला। जीवन का उद्देश्य मैत्री और प्रेम के माध्यम से सत्य की खोज करना है। उन्होंने अपने प्रयोगों की जानकारी भी दी। संगीति का संचालन संजय राय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना। (प्रस्‍तुति : डॉ..पुष्पेंद्र दुबे)

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