5 जून (विश्व पर्यावरण दिवस) से 2 अक्टूबर 2020 (अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस )
देश को गांधीजी की ओर लौटना चाहिए, देश बन्दी की इस अवधि ने सभी संवेदनशील और सोचने – समझने वाले भारतीय नागरिकों को, देश में उत्पन्न कठोर सच्चाइयों को समझने का अवसर प्रदान किया है। उन्होंने साफ तौर महसूस किया है कि भारतीय शासक किसके हित के लिए काम कर रहे हैं; मसलन किसके हित को साध रहे हैं। अतिथि या प्रवासी मजदूर, जो आज हमारी सड़कों से अपने घर की ओर भागे जा रहे हैं, भारतीय समाज के सबसे कमजोर वर्गों के प्रतीक हैं।
ये सभी अपने गाँवों में व्याप्त गरीबी और भुखमरी के कारण शहरों या शहरी क्षेत्रों में नौकरी खोजने आते थे। वे सड़कों पर या तो कुछ उत्पादों को बेचकर या स्वच्छता सम्बन्धी काम, इमारतों के निर्माण अथवा इसी तरह के अन्य कार्यों में संलग्न होकर अपनी रोटी कमा रहे थे। समाज के इन कमजोर वर्गों के बारे में कोई विचार किए बिना लॉकडाउन की अचानक घोषणा, शहरों से सामूहिक पलायन, हमें भारत विभाजन के दिनों के समान दृश्यों की याद दिलाती है। एक देश के रूप में भारत के पास पर्याप्त संसाधन और परिवहन सुविधाएं हैं जो इन लोगों को चार या पांच दिनों के भीतर अपने-अपने मूल स्थानों पर वापस भेज सकते हैं। किसी को भी इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि भारत इन्हीं लोगों के खून और पसीने से इस स्तर पर पहुंचा है। मजदूरों को उनके घर भेजने के बाद ही तालाबंदी की घोषणा की जानी चाहिए थी। यदि ऐसा किया जाता, तो उनमें से कई सड़कों के बीच, रेलवे पटरियों और ट्रेनों में नहीं मारे जाते। इन लोगों का एक हिस्सा बीमारी का वाहक बनकर भी अपने – अपने गांव लौट रहा है। यदि इन लोगों को मार्च के मध्य तक घर वापस भेज दिया जाता, तो इस त्रासदी को आसानी से टाला जा सकता था।
2 अप्रैल, 2020 को गांधीजनों ने अपने – अपने घर में रहकर राष्ट्रव्यापी उपवास किया था। गांधीवादियों के इस उपवास के जरिए इस उपेक्षा को लोगों के ध्यान में लाया गया था। इसके बाद यह मुद्दा विपक्षी राजनीतिक दलों और सामाजिक आंदोलनों द्वारा भी उठाया गया। हालाँकि, शासकों ने संकट के समय में भी इन लोगों के प्रति करुणा से इनकार कर दिया। समाज के सबसे कमजोर वर्गों के लिए यह क्रूर उपेक्षा यहाँ समाप्त नहीं होती है। कोविड -19 के संदर्भ में घोषित आर्थिक पैकेज का उद्देश्य पीड़ित जनता को राहत प्रदान करना नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से विदेशी पूंजी के लिए पलक पावडे बिछाना है, सभी क्षेत्रों में कॉर्पोरेट वर्चस्व का विस्तार करते हुए शेष सभी सार्वजनिक उपक्रमों की भूमिका की अनदेखी करना है। केवल केंद्र सरकार और सत्ताधारी दल की राज्य सरकारें ही ऐसा नहीं कर रही ,बल्कि विभिन्न विपक्षी दलों की राज्य सरकारें भी इसी दिशा में काम कर रही हैं। कुछ राज्य सरकारों ने ऐसी नीतियों की घोषणा की है जो श्रमिकों के मूल अधिकारों को समाप्त कर देगी। इन नीतियों ने सरकार को यह सुविधा प्रदान की है कि खनन सहित विभिन्न उद्योगों के लिए आसानी से अनुमोदन दे सकें। लॉकडाउन ने शासकों को तानाशाह के तरीके से कार्य करने का अवसर प्रदान किया है। यह चौंकने की बात है कि हम ऐसे ऐतिहासिक मोड़ पर पहुंच गए हैं, जहां हमारे शासक, सचमुच तानाशाहों की तरह बर्ताव कर रहे हैं। वे राज्य शक्ति का उपयोग देश के सबसे पीड़ित लोगों, मसलन मजदूरों और किसानों के हित में करने की बजाय उनकी अनदेखी में कर रहे हैं। गांधीजी द्वारा दिया गया ताबीज भारत के लोकतांत्रिक शासकों को हमेशा अनुसरण योग्य मार्ग दिखाता है। लेकिन, मौजूदा दौर में शासक इसका मजाक उड़ा रहे हैं। गांधी के विचारों को आज के भारत में फिर से तभी जीवित किया जा सकता है जब लोग देश के शासकों के खिलाफ खड़े होने की इच्छाशक्ति दिखाएंगे। जो गांधी के मार्ग में यकीन करते हैं, उन्हें खुद से यह पूछने का सही समय है कि क्या वे गांधीजी के बताए सत्याग्रह या अहिंसा के हथियार को उसी आत्मबल के साथ उपयोग करने के लिए तैयार हैं? इस सत्याग्रह का आयोजन सरकार के समक्ष मांगों की सूची के साथ किया जाना है। यह एक नई राजनीति के पक्ष में जनमत और विवेक को बढ़ाने वाला यज्ञ है जो पीड़ित जनता के हित के लिए है। सत्तारूढ़ और विपक्षी राजनीतिक दलों पर जनता के दबाव द्वारा उन्हें जन-विरोधी और पर्यावरण-विरोधी नीतियों और राजनीति से दूर करना भी इसका मकसद है।
5 जून से शुरु सत्याग्रह आगामी २ अक्टूबर २०२० गांधी जयंती तक जारी रहेगा। इस सत्याग्रह में, कोई भी व्यक्ति अपने घर में रहते हुए 24 घंटे या इससे अधिक उपवास कर, भाग ले सकता है और एक तख्ती के साथ सोशल मीडिया में अपने उपवास की तस्वीर पोस्ट कर सकता है। यह सत्याग्रह राष्ट्र की अंतरात्मा से अपील के लिए होगा। सत्याग्रहियों के नाम पहले से दर्ज करके और तिथियों को तय करके इस यज्ञ की निरंतरता सुनिश्चित की जा सकती है। धीरे-धीरे यह पूरे देश में फैल जाएगा। इसका और विस्तार होगा। गांधीयन कलेक्टिव श्रृंखला के तहत इस क्रम में प्रयागराज से 23 सत्याग्रही सहित सामाजिक कार्यकर्त्ता अंकित तिवारी ने भी उपवास रखा और चिंतन – मनन किया।