केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में देश के किसान तीन महीनों से आन्दोलनरत हैं। किसानों की मांग है कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द कर कृषि उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी का कानून बनाया जाये। देशव्यापी किसान आंदोलन व उसकी मांगो के समर्थन में हिमाचल के 19 सामाजिक संगठनों, महिला संगठनों और किसान समूहों ने बयान जारी किया है।
केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में देश के किसान तीन महीनों से आन्दोलनरत हैं। किसानों की मांग है कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द कर कृषि उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी का कानून बनाया जाये। देशव्यापी किसान आंदोलन व उसकी मांगो के समर्थन में हिमाचल के 19 सामाजिक संगठनों, महिला संगठनों और किसान समूहों ने बयान जारी किया है। संगठनों द्वारा जारी बयान में केंद्र सरकार द्वारा लाये तीनों कानूनों को अलोकतांत्रिक और अन्यायपूर्ण तरीके से बनाने का आरोप लगाया है। संगठनों ने सरकार के इस कदम पर सवाल उठाते हुए पूछा कि ऐसी कौनसी आपातकालीन स्थिति पैदा हो गयी कि कोरोना महामारी के बीच जब देश में तालाबंदी चल रही थी तब इन क़ानूनों को लाया गया। कानून बनाने की प्रक्रिया में सरकार ने न देश के किसानों व किसान संगठनों को शामिल किया और न ही उनसे किसी प्रकार का परामर्श किया। संगठनों का मानना है कि देशव्यापी आंदोलन का मुख्य कारण सरकार द्वारा इन कानूनों को अलोकतान्त्रिक प्रक्रिया से पारित करना रहा।
संगठनों का कहना है कि तीनों कृषि कानूनों का लाभ किसानों व आम जनता के बजाये देश व अंतर्राष्ट्रीय कॉर्पोरेट घरानों को होगा। बयान के अनुसार, पहला कानून, “कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, 2020” से आने वाले समय में सरकारी कृषि मंडी (APMC) खत्म हो जाएँगी क्योंकि यह कानून निजी कंपनियों को बिना किसी पंजीकरण और जवाबदेही के कृषि उपज को खरीदने व बेचने की खुली छूट देता है। इस कानून की आड़ में सरकार भविष्य में अनाज भंडारण और वितरण की जवाबदेही से भी बचेगी। दूसरा कानून, ”कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून, 2020” के चलते किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) खेती का रास्ता खोला जायेगा जिसमें किसान की जमीन को एक निश्चित राशि पर निजी कंपनी किराये पर लेगी और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगी। ऐसे में निजी कंपनी और किसान के बीच बराबरी ना होकर किसान के बंधुआ बनने का अंदेशा है। तीसरा कानून, ”आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020” यह न सिर्फ किसानों बल्कि आम जनता के लिए भी खतरनाक है। इस कानून के चलते कृषि उपज भण्डारण की कोई सीमा नहीं होगी जो जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा है| साथ ही निजी कंपनी को फसल की कीमत और बाज़ार में उनके दाम नियंत्रण करने का मौका देता है।
संगठनों द्वारा हिमाचल के किसानों व आम जनता पर इन कानूनों के प्रभावों से जुडी टिपण्णी अनुसार तीनों कृषि कानून हिमाचल कि खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा साबित होंगे। इन क़ानूनों के जरीये सरकार यह कोशिश कर रही है कि कृषि उपज की खरीदारी निजी क्षेत्र करें ताकि वह भंडारण और वितरण की जिम्मेदारी से बच सके। जब सरकार के पास अनाज नहीं होगा तो पीडीएस व्यवस्था का क्या होगा? क्या लोगों को सस्ता राशन मुह्हाया करने की जगह सरकार राशन पर सब्सिडी कैश के रूप में देगी जैसे घरेलू गैस की व्यवस्था है? क्या लोग सब्सिडी के बावजूद बाज़ार का महंगा अनाज खरीद पायेंगे? हिमाचल कि 70% जनता भोजन के लिए पीडीएस पर निर्भर है। हिमाचल के अधिकांश हिस्से में लोग आज फल और गैर-मौसमी सब्जियों का उत्पादन करते हैं जिनके लिए MSP का कोई प्रावधान नहीं और ना ही हिमाचल में पर्याप्त सरकारी मंडी हैं जहां किसान अपने उत्पाद को बेच सके, परिणामस्वरूप किसानों का घाटा। ध्यान रहे कि हिमाचल के मैदानी हिस्से के किसान MSP में उत्पाद को बेचने के लिए कठिनाई उठाते हैं और हमेशा से इन इलाकों से सरकारी मंडियों को स्थापित करने कि मांग रही है जिसको इन कृषि क़ानूनों से धक्का लगा है। पहाड़ी इलाकों में जहां मक्की का उत्पादन होता है सरकार द्वारा निर्धारित MSP (1850 रुपए/ क्विंटल) किसानों को नहीं मिलता है जिससे किसान महज 1000-1200 रुपए में बेचने को मजबूर हैं। इससे स्पष्ट है कि अन्य राज्यों के किसानों कि तरह हिमाचल के किसानों व बगावनों को भी इन कानूनों का कोई लाभ नहीं है।
हिमाचल के संगठन महामहिम राष्ट्रपति को किसान आंदोलन के समर्थन और तीनों कृषि क़ानूनों को खारिज व MSP की गारंटी देने वाला कानून बनाने का मांग पत्र भी भेज रहे हैं।
मांग पत्र पर अखिल भारतीय लोकतान्त्रिक महिला संगठन, हिमाचल प्रदेश, भूमिहीन भूमि अधिकार मंच, हिमाचल प्रदेश, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, एकल नारी शक्ति संगठन, हिमाचल प्रदेश, गुमन्तू पशुपालक महासभा, चंबा, हिमालय नीति अभियान, हिमधरा पर्यावरण समूह, हिमाचल किसान सभा, नागरिक अधिकार मंच, कांगड़ा, पर्वतीय महिला अधिकार मंच, आर टी ई फॉरम, हिमाचल प्रदेश, सामाजिक आर्थिक समानता के लिए जन अभियान, सेव लाहौल स्पीति, स्पीति सिविल सोसाइटी, सिरमौर वन अधिकार मंच, संभावना संस्थान, सूत्र, सोलन, टावर लाईन शोषित जागरूकता मंच, हिमाचल प्रदेश, जिला वन अधिकार समिति, किन्नौर आदि ने हस्ताक्षर किये है।
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अन्नदाताओं के लिए बनाए गए कृषि कानून पर पुनः विचार किया जाना चाहिए…. यदि किसान और आम जनता हीं इससे संतुष्ट नहीं है तब यह और भी गंभीरता से विचार करने योग्य है..