‘जन आंदोलनों काराष्ट्रीय समन्वय’ ने की श्रमिकों के हित के लिए मांगें
‘जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय’ (एनएपीएम) ने कहा है कि देश के संसाधनों के संरक्षण और उसके साथ एक आत्मनिर्भर तथा विषमता रहित देश, गाँव व समाज की बात हमेशा से करता रहा है और मजदूरों के हकों की रक्षा के लिए संघर्षरत रहा है। प्रधानमंत्री द्वारा विपदा की घड़ी में करोड़ों मजदूरों के हितों को दरकिनार कर चंद कारपोरेट के फायदे लिए शब्दो के छल को पर्दाफाश करते हुए इसे किसान मजदूरों और देश के स्वावलम्बन की दिशा में कार्यरत असल लोगों को राहत की राशि देने की मांग करता है।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय से जुडे विभिन्न संगठनों के प्रमुख सुश्री मेधा पाटकर, अरूणा राय, निखिल डे, राजकुमार सिन्हा, प्रफुल्ल सामतरा,संदीप पांडेय, डॉ. सुनीलम आदि ने श्रमिक साथियों के लिये पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा तथा अन्य सुविधा शुरु करने हेतु विशेष प्रावधान की मांग की है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता के लिये स्वयं निर्णय, विकेंद्रीकरण, विकास प्रक्रिया में लोक सहभागिता सुनिश्चित करना जरुरी है। उन्होंने आग्रह किया कि 20 लाख करोड रूपये का इस्तेमाल, पलायन कैसे रुकेगा, स्थानीय रोजगार कैसे बढे़गा, और रोजगारमूलक विकास के लिये सुनिश्चित होना आवश्यक है। इसकी रूपरेखा सरकार को सभी स्टेकहोल्डर्स की सहभागिता से की जानी चाहिए।
एनएपीएम की जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि कोविड 19 के संदर्भ में अदूरदर्शी फैसले का दंश झेल रहे देश और सबसे अधिक असंगठित क्षेत्र के श्रमिक व पलायन मजदूरों को फिर से प्रधानमंत्री ने छल किया। 20 लाख करोड़ रूपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा के साथ ही उन्होंने बड़े दमदारी से आत्मनिर्भरता की बातें कीl परन्तु वे यह नही बताया कि आत्मनिर्भरता देश के संसाधनों के संरक्षण, संवर्धन के साथ तरक्की की नीतियों के अमल से आएगी। प्रधानमंत्री द्वारा आत्मनिर्भरता के लिए बताए गए चार एल का अर्थ एकमात्र लूट वाला ‘एल’ है ।
पहले ‘एल’ लेबर के सम्बन्ध में देखे तो सदियों से संघर्षो के बाद मिले अधिकारों को सरकार छीन रही है। इन मजदूरों के अधिकारों की बलि देकर कारपोरेट को फायदा पहुंचाना है। जो आत्मनिर्भरता के कन्सेप्ट के विपरीत है। दूसरा ‘एल’ लैंड (land) सबसे अधिक रोजगार देता है। भूमि और उसके अंदर के संसाधनों को भी कार्पोरेट को लुटाया जा रहा है जो स्वावलम्बी अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत है। तीसरा ‘एल’ लॉ (law) है, जो देश व देशवासियों व मजदूरों के हितों का संरक्षण करता है उसे भी चोर दरवाजे से कोविड 19 के दौर में कार्पोरेट व अमीरों के हितों बदलाव किया जा रहा है, यह स्वावलम्बी शब्द के साथ धोखा है। चौथा ‘एल’ लिक्विडिटी (liquidity) जो रिजर्व बैंक ने पहले से ही 8 हजार करोड़ का कर्ज बांटने की राशि रखी है। 68 हजार करोड का बैंक कर्ज रिजर्व बैंक ने माफ कर दिया है। लिक्विडिटी अमीरों कारपोरेट के हित में है। शब्दों के साथ छल के बजाय इस संकट की घड़ी में सरकार को असली आत्मनिर्भरता की बात करनी चाहिए।