हिसार, हरियाणा । दूसरों से बदला लेने लेते हम समाज में, देश में बदलाव लाना ही भूल गये । हम प्रकृति से, समाज से और देश से बदला लेने में ही व्यस्त हो चुके हैं । भूल गये हम प्रकृति की रक्षा व संरक्षण करना । भूल गये हम समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य । हम तो पूरे देश से बदला ले रहे हैं बस । हम तो देश को आग में झोंक रहे हैं जबकि यह आग समाज को बदलने की होनी चाहिए । यह कहना है गांधीवादी चिंतक रमेश शर्मा का । वे सर्वोदय भवन,हिसार, हरियाणा में आयोजित दादा गणेशी लाल पुण्यतिथि पर व्याख्यान में बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता आनंद शरण ने की, वरिष्ठ अधिवक्ता पी के संधीर का सान्निध्य रहा । प्रारम्भ में प्रो महेंद्र विवेक ने दादा गणेशी लाल के जीवन के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी दी । संचालन सत्यपाल शर्मा ने किया। पी के संधीर ने दोनों अतिथियों को सम्मानित किया ।
गांधीवादी चिंतक रमेश शर्मा ने व्याख्यान को बढ़ते प्रदूषण पर गहरी चिंता के साथ शुरु किया कि कैसे आज हमारी पवित्र नदियों गंगा व यमुना का पानी पीने तो क्या आचमन के योग्य भी नहीं रह गया । दिल्ली आज सबसे बड़ा नर्क बन चुकी है बढ़ते प्रदूषण के चलते । फिर वे मतभेद और मतभेद पर आए और दुख व्यक्त किया कि मतभेद बढ़ते जा रहे हैं । इसी से संकट बढ़ते जा रहे हैं समाज में। दूरियां बन रही हैं आपस में । क्या यही समाज महात्मा गांधी या बिनोवा भावे बनाना चाहते थे ? हमारा समाज कैसा बनता जा रहा है ? हमें अपने-आपको समझना होगा । हम एक दूसरे से बदला लेते लेते समाज में बदलाव लाना भूल गये हैं । भूल गये हम प्रकृति की रक्षा व संरक्षण करना । भूल गये हम समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य । हम तो पूरे देश से बदला ले रहे हैं बस । हम तो देश को आग में झोंक रहे हैं जबकि यह आग समाज को बदलने की होनी चाहिए । युवाओं की आग देश के कल्याण के लिए होनी चाहिए जैसे शहीद भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव की ।
उन्होंने कहा युवाओं में नशे के चलन पर भी गहरी चिंता व्यक्त करते नशा मुक्त समाज बनाने का आह्वान किया । ने कहा कि दुख की बात कि समाज का फिक्र करने वालों की संख्या तेजी से घट रही है । और गीत में भी कहा : तू खुद को बदल / तब तो जमाना बदल जायेगा ,,,, शुरूआत अपने-आपको बदलने से करो । शब्द शक्ति पर भी कहा कि पहले शब्द ब्रह्म होते थे , अब सिर्फ भरम रह गये ।
गांधी जी की महिमा का बखान करते कहा कि महात्मा ने समाज और आमजन को निर्भय बनाया । महिलाएं तक उनके आह्वान पर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने घरों से निकल आईं , यह बहुत बड़ा काम किया । बिनोवा भावे ने सिखाया कि अन्याय का विरोध करो । अंत दुष्यंत कुमार की गजल के मधुर गायन से किया : हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए /इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए । विचार गोष्ठी में जगदीप भार्गव, धर्मवीर शर्मा, राजेश जाखड़ एडवोकेट, शैलेंद्र वर्मा, डाॅ इंद्रजीत, प्रो करतार सिंह सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी मौजूद थे ।
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