हिमालयन इंस्टिट्यूट हॉस्पिटल ट्रस्ट (एचआईएचटी) के संस्थापक डॉ. स्वामी राम के 28 वां महासमाधि दिवस (13 नवम्बर 2023) के अवसर पर स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) जॉलीग्रांट ने राजस्थान की ख्यातनाम संस्था तरुण भारत संघ को स्वामी राम मानवता पुरस्कार-2023 से सम्मानित किया। इस पुरुस्कार में तरुण भारत संघ गोल्ड मेडल, प्रशस्ति पत्र व 10 लाख रुपए का नगद पुरस्कार शामिल है।
यह सम्मान तरुण भारत संघ द्वारा किए गए जल संरक्षण व सामाजिक कार्यों सहित ग्राम स्वराज्य के क्षेत्र में किए गए अतुलनीय योगदान के लिए दिया गया है। पानी की किल्लत से जूझ रहे करीब 1000 गांवों में तरुण भारत संघ पानी पहुंचाने में कामयाब रहा। तरुण भारत संघ की स्थापना 30 मई 1975 को हुई थी। यह राजस्थान के अर्ध शुष्क इलाके में काम कर रहा गैर सरकारी संगठन है, जिसने धीरे-धीरे देशभर में प्राकृतिक संसाधनों विशेषकर जल से जुड़ी हुई प्राकृतिक संरचनाओं के लिए निरंतर काम किया है। तरुण भारत संघ के संघर्ष का प्रतिफल है कि राजस्थान के हजारों गांव जो बिना पानी के उजड़ चुके थे, आज वह फिर से बस चुके हैं। इसने अपने प्रयास से कई नदियों को पुनर्जीवित किया है शायद इसीलिए इसका दूसरा नाम नदियों को पुनर्जीवित करने वाला संगठन भी कहा जाता है। यही नहीं देशभर में इसने दस हजार से ज्यादा जोहर-तालाब बनवाए हैं।
समारोह के मुख्य अतिथि पद्मश्री स्वामी भारत भूषण (योगी) ने तरुण भारत संघ के अध्यक्ष एवं मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेन्द्र सिंह को प्रदान किया। इस अवसर पर स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) जॉलीग्रांट के कुलाधिपति डॉ.विजय धस्माना भी उपस्थित रहे।
संस्थापक डॉ. स्वामी राम के बारे में
उल्लेखनीय है कि डॉ. स्वामी राम को एक संत, समाजसेवी, चिकित्सक, दार्शनिक, लेखक के रुप में जाना जाता हैं। इन सबसे इतर दुनिया उन्हें मानव सेवा के संदेश वाहक के रुप में भी जाना जाता है।स्वामी राम ने विदेशों में भारतीय यौगिक क्रियाओं का प्रत्यक्ष प्रदर्शन करके दिखाया। योग के माध्यम से बहुत से ऐसे काम किए जा सकते हैं जिन्हें आधुनिक विज्ञान असंभव मानता है।(
वर्ष 1925 में पौड़ी जनपद के तोली-मल्ला बदलपुर पौड़ी गढ़वाल में स्वामीराम का जन्म हुआ। किशोरावस्था में ही स्वामीराम ने संन्यास की दीक्षा ली। 13 वर्ष की अल्पायु में ही विभिन्न धार्मिक स्थलों और मठों में हिंदू और बौद्ध धर्म की शिक्षा देना शुरू किया। 24 वर्ष की आयु में वह प्रयाग, वाराणसी और लंदन से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद कारवीर पीठ के शंकराचार्य पद को सुशोभित किया। गुरू के आदेश पर पश्चिम सभ्यता को योग और ध्यान का मंत्र देने 1969 में अमेरिका पहुंचे। 1970 में अमेरिका में उन्होंने कुछ ऐसे परीक्षणों में भाग लिया, जिनसे शरीर और मन से संबंधित चिकित्सा विज्ञान के सिद्धांतों को मान्यता मिली। उनके इस शोध को 1973 में इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका ईयर बुक ऑफ साइंस व नेचर साइंस एनुअल और 1974 में वर्ल्ड बुक साइंस एनुअल में प्रकाशित किया गया।
स्वास्थ्य सुविधाओं से महरुम उत्तराखंड में विश्व स्तरीय चिकित्सा संस्थान बनाने का स्वामीराम ने सपना देखा था। उन्होंने अपने सपने को आकार देना शुरू किया वर्ष 1989 में। इसी वर्ष उन्होंने गढ़वाल हिमालय की घाटी में हिमालयन इंस्टिट्यूट हॉस्पिटल ट्रस्ट (एचआईएचटी) की स्थापना की। ग्रामीण क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सुविधाओं के पहुंचाने के मकसद से 1990 में रुरल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट (आरडीआई) व 1994 में जौलीग्रांट में हिमालयन अस्पताल की स्थापना की। प्रदेश में डॉक्टरों की कमी को महसूस करते हुए स्वामी जी ने 1995 में मेडिकल कॉलेज संस्थापित किया। नवंबर 1996 में स्वामी राम ब्रह्मलीन हो गए। इसके बाद स्वामी के सपनों को साकार करने का जिम्मा उठाया ट्रस्ट के अध्यक्षीय समिति के सदस्य व स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) के कुलाधिपति डॉ. विजय धस्माना ने। वर्ष 2007 में कैंसर रोगियों के लिए अत्याधुनिक अस्पताल कैंसर रिसर्च इंस्टिट्यट (सीआरआई) की स्थापना की। 2013 में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए जॉलीग्रांट में स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) स्थापना की गई।