12 अगस्त को विनोबा विचार प्रवाह की अंतर्राष्ट्रीय संगीति में विदुषी उषा बहन
श्रीमद्भवद्गीता असांप्रदायिक ग्रंथ है। इस ग्रंथ में कहीं पर भी विचारों का आक्रमण नहीं किया गया है। यह ग्रंथ भारत ही नहीं दुनिया के चिंतकों में लोकप्रिय रहा है। गीता में अर्जुन उवाच है, संजय उवाच है लेकिन कहीं पर भी श्रीकृष्ण उवाच नहीं है, बल्कि भगवान उवाच है। आज सिद्धि को अध्यात्म मान लिया गया है। यदि बिना चित्त शुद्धि किए सिद्धि प्राप्त होगी तो वह संहारक होगी। इसलिए भगवद्गीता चित्त शुद्धि का अप्रतिम ग्रंथ है। वह जीवन ग्रंथ के साथ जीवंत ग्रंथ भी है।
उक्त विचार ब्रह्म विद्या मंदिर, पवनार (वर्धा) की अंतेवासी सुश्री उषा बहन ने विनोबा जी की 125वीं जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में व्यक्त किए।
उषा बहन ने कहा कि विनोबा जी के समग्र विचार की बुनियाद आध्यात्मिक साहित्य है। उसमें भी भगवद्गीता पर उनकी अगाध श्रद्धा रही है। विनोबा कहते हैं कि जब वे गीता पर बात करते हैं तो गीता सागर पर तैरता हूं और एकांत में उस सागर की गहराई में जाकर बैठ जाता हूं। श्रद्धा और प्रयोग के पंखों से गीता के गगन में विहार करता हूं। विनोबा अपने जीवन में हमेशा गीता का आधार लेते हैं। इससे उत्साह, शांति, प्रतिभा, स्फूर्ति और नव विचार आते हैं। विदेशी चिंतक थोरो ने कहा है कि गीता की तुलना करने पर आधुनिक ज्ञान तुच्छ लगता है। उनके हृदय और बुद्धि का पोषण गीता से हुआ है। वॉरेन हेंस्टिंग ने कहा है कि गीता किसी भी प्रजा को उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकती है। गीता ईश्वर का दिव्य संगीत है।
उषा बहन ने कहा कि विनोबा के अंतर-बाह्य जीवन को गीता ने पुष्ट किया। उन्होंने भगवद्गीता के श्लोक की व्याख्या करते हुए कहा कि हम सभी अव्यक्त से आए हैं और अव्यक्त में चले जाएंगे। थोड़े समय के लिए हम दिखायी देते हैं। इसका उपयोग हमें आत्म साक्षात्कार के लिए करना चाहिए। लेकिन इसे कोई बिरला ही पा सकता है। विनोबा जी उन बिरालों में से एक थे। उन्होंने आत्मा का दर्शन भी किया और वर्णन भी किया। उषा बहन ने कहा कि हमारा चित्त जितना शुद्ध होगा उतना हम ईश्वर के नजदीक जाएंगे और अध्यात्म में प्रवेश होगा। गुण संवर्धन करते हुए हमारा सारा प्रयत्न चित्त शुद्धि के लिए होना चाहिए। चित्त शुद्ध होगा तो आत्मज्ञान का प्रकाश आएगा। उषा बहन ने रामकृष्ण परमहंस का वाक्य दोहराते हुए कहा कि गीता का उलटा ‘तागी तागी’ करने से हम ईश्वर के पास पहुंचेंगे। गीता त्याग की अपेक्षा रखती है। विनोबा जी ने जीवन का सूत्र बताते हुए कहा है कि दो भाग त्याग और एक भाग भोग से जीवन बनता है। आत्म की अमरता और देह की नश्वरता को ध्यान में रखकर हम नित्य तत्व को प्राप्त कर सकते हैं। महात्मा गांधी ने निर्णय की परीक्षा के लिए कहा है कि जहां स्वार्थ का त्याग करने की बात आती है वहां निर्णय ठीक होता है। त्याग के आधार से ही शक्ति का निर्माण होता है।
उषा बहन ने कहा कि वेद, उपनिषद और गीता हिंदू धर्म की प्रस्थानत्रयी है। भगवद्गीता में सभी धर्मग्रंथों का समन्वय हो गया है। सामाजिक नेताओं ने गीता को अनेक नाम दिए हैं। विनोबा जी ने उसे साम्ययोग कहा है क्योंकि साम्य आज के जमाने की मांग है। साम्यवाद की पद्धति गलत है। वह कत्ल और मत्सर पर आधारित है, जबकि साम्ययोग करुणामूलक है। उषा बहन ने विनोबा विरचित गीताई के इतिहास के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। विनोबा ने गीताई को अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि माना है।
द्वितीय वक्ता श्री किशन भाई ने बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने के बाद शेष समय में गरीब और निरक्षरों को पढ़ाने के अपने अनुभव बताए। संचालन श्री संजय राय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना। (प्रस्तुति : डा.पुष्पेंद्र दुबे) (सप्रेस)