15 अगस्‍त को विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति में मोहनभाई हीराबाई हीरालाल

आज हम जिसे स्वराज समझते हैं, वह स्वराज नहीं है। स्वराज के लिए निर्णय प्रक्रिया महत्वपूर्ण है। बहुमत से होने वाला निर्णय का स्वराज से विरोध है। अहिंसा और समता पर आधारित समाज व्यवस्था के लिए सर्वसम्मति से निर्णय लेना जरूरी है। महाराष्ट्र के मेंढालेखा गांव में इस प्रयोग को सिद्ध किया गया है। उसे विनोबा विचार के अनुरूप वर्ष 2013 में ग्रामदान गांव घोषित किया गया। इस गांव का नारा है दिल्ली-मुम्बई में हमारी सरकार, हमारे गांव में हम ही सरकार।

यह बात मेंढालेखा गांव में विगत पैंतीस वर्षों से सेवारत श्री मोहनभाई हीराबाई हीरालाल ने विनोबा जी 125वीं जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में कही। श्री मोहनभाई ने हिंद स्वराज पुस्तक का जिक्र करते हुए कहा कि गांधीजी ने आधुनिक सभ्यता के संकटों को सौ साल पहले ही समझ लिया था। आज कुछ लोगों का राज कुछ पर होता है। यह असली स्वराज नहीं है। स्वराज वहीं हो सकता है जहां रहने वाले स्त्री-पुरुष अपने निर्णय स्वयं लेते हों। उन्होंने कहा कि गांधी के विचार को विनोबा जी ने पुष्ट किया। उनकी विचार प्रक्रिया को धरातल पर उतार लिया जाएगा तो स्वराज खुद चलकर आएगा। संविधान निर्माता डा.आंबेडकर ने कहा है राजनीति के साथ जब तक सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता नहीं होगी, तब तक आजादी का मतलब नहीं है।

 मोहनभाई ने कहा स्‍वराज के लिए दो चीजें महत्व की हैं। एक तो निर्णय बहुमत से नहीं लेंगे और सतत ज्ञान के लिए निरंतर अध्ययन करेंगे। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि अनेक लोग विनोबा विचार को अव्यावहारिक और यूटोपिया की श्रेणी में रखते हैं। विचार को मानते तो हैं लेकिन उसका धरातल पर कहीं माडल नजर नहीं आता। विनोबा जी ने भूदान आंदोलन चलाया, लेकिन उन्हें उससे समाधान नहीं था। इसमें एक जमीन देता है तो दूसरा जमीन प्राप्त करता है। विनोबा जी पूरी व्यवस्था को बदलने की बात कहते हैं। उसमें उनका मालकियत विसर्जन का विचार महत्वपूर्ण है। जिसे उन्होंने उत्तरप्रदेश में मंगरौठ में हासिल किया। वहां से ग्रामदान का विचार पुष्ट हुआ। मेंढालेखा गांव सर्वोदय विचार को आगे ले गया। श्री मोहन भाई ने बताया कि वर्ष 2013 में मेंढालेखा गांव को कानूनी रूप से ग्रामदानी गांव घोषित किया गया। उन्होंने बताया कि मेंढालेखा की ग्रामसभा में प्रत्येक स्त्री-पुरुष गांव के निर्णय में शामिल रहते हैं। यदि किसी मुद्दे पर निर्णय नहीं हो पाता है तब उस पर अध्ययन मंडल में विचार किया जाता है, लेकिन निर्णय लेने का अधिकार अध्ययन मंडल को नहीं है। निर्णय प्रक्रिया के दौरान किसी भी मुद्दे पर दो घंटे से अधिक चर्चा नहीं की जाती है। बहुमत से निर्णय कभी नहीं लिया जाता। मेंढालेखा ने यह तथ्य सिद्ध कर दिया है कि सर्वसम्मति से निर्णय हो सकता है।

श्री मोहन भाई ने कहा कि अन्याय, शोषण, गरीबी, बेरोजगारी के मूल में मालकियत व्यवस्था है। इसी से समाज में हिंसा का भाव पनपता है। मालकियत के विसर्जन से समाज की समस्याएं हल करने में सहायता मिलती है। उन्होंने कहा कि मेंढालेखा जैसी व्यवस्था देश के हर गांव, हर मोहल्ले में बनाई जा सकती है। हिंसा पर आधारित समाज व्यवस्था को बदलने के लिए निर्णय प्रक्रिया में सभी की समान रूप से भागीदारी आवश्यक है।

द्वितीय वक्ता सामाजिक कार्यकर्ता गुजरात के गांव में कार्यरत श्री सुरेश भाई ने कहा कि आज व्यक्तिगत स्वार्थ को परमार्थ की दिशा में मोड़ना है। विनोबा जी ने अपने आंदोलन के माध्यम से लोकशिक्षण का ही काम किया। आज युवाओं को नागरिक धर्म की शिक्षा देकर उनकी शक्ति का उपयोग समाज उत्थान में किया जा सकता है। श्री सुरेश भाई ने उनके द्वारा युवाओं के बीच किए जा रहे कार्यों की जानकारी भी दी। संचालन श्री संजय राय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना। (प्रस्‍तुति : डा. पुष्पेंद्र दुबे) (सप्रेस)  

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें