श्री काशिनाथ त्रिवेदी स्‍मृति व्‍याख्‍यान : सक्षम भारत में बाल शिक्षा का महत्व

इंदौर 16 फरवरी। किसी भी देश की समृद्धि और प्रगति का आधार वहां की शिक्षा प्रणाली होती है और भारत जैसे विशाल युवा जनसंख्या वाले देश के लिए मजबूत बाल शिक्षा न केवल आवश्यक है, बल्कि एक सशक्त राष्ट्र निर्माण का अभिन्न हिस्सा भी है।

यह बात ख्यात परमाणु वैज्ञानिक और भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डा. अनिल काकोड़कर ने अभिनव कला समाज में रविवार की शाम काशिनाथ त्रिवेदी की स्मृति में ‘सक्षम भारत में बाल शिक्षा का महत्व’ विषय पर व्याख्यान के दौरान कही। व्याख्यान का आयोजन स्टेट प्रेस क्लब मप्र और कल्याणी संस्था द्वारा किया गया।

उन्होंने काशिनाथ त्रिवेदी का के बारे में बताते हुए कहा कि आजादी के बाद निमाड़ क्षेत्र के तीन प्रमुख व्यक्तित्व विश्वनाथ खोड़े, काशिनाथ त्रिवेदी और बैजनाथ महोदय ने अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। काशिनाथ त्रिवेदी ने विशेष रूप से बाल साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए।

उन्होंने बाल शिक्षा को लेकर सराहनीय प्रयास किए, जिनके प्रभाव आज भी देखने को मिलते हैं। काकोड़कर ने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि 1700 के दशक में भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में शीर्ष स्थान पर था, लेकिन औपनिवेशिक दौर और मैकाले की शिक्षा पद्धति ने भारतीय मानसिकता को इस हद तक प्रभावित किया कि हम अपनी संस्कृति और ज्ञान पर भरोसा करने के बजाय पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को ही श्रेष्ठ मानने लगे। हालांकि, वर्तमान में भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, लेकिन मानव विकास सूचकांक में हमारा स्थान अभी भी अपेक्षाकृत कम है। इसे सुधारने हमें तकनीक व शिक्षा में आत्मनिर्भरता विकसित करनी होगी।

उन्‍होंने कहा कि मनुष्य के सर्वागीण विकास में बाल शिक्षा और बाल स्वास्थ की महत्वपूर्ण भूमिका है। बाल अवस्था में मस्तिष्क का विकास तेजी से होता है। इस उम्र में बालक अधिक से अधिक ग्रहण करता है। अत: समाज को बाल शिक्षण पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।

सक्षम भारत में बाल शिक्षा विषय पर डॉ. काकोड़कर ने बोलते हुए बाल शिक्षा, बाल मनोविज्ञान, टेक्नोलॉजी को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि बाल शिक्षा एक महत्वपूर्ण घटक है इसलिए अभिभावक बच्चों के मनोभावों को समझें। उनकी जिज्ञासा को शांत करें। उनमें नवाचार की भावना पैदा करें हालांकि यह कार्य आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कर रहे हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं को अधिक शिक्षित प्रशिक्षित करने की जरूरत है। प्राथमिक शिक्षा और घर की शिक्षा में अधिक अंतर होगा तो बालक का विकास सही दिशा में नहीं होगा।

केवल शिक्षा देना पर्याप्त नहीं, सकारात्मक सामाजिक वातावरण और नैतिक मूल्यों का समावेश जरूरी

उन्होंने बताया कि आठ वर्ष की उम्र तक बच्चों का मस्तिष्क सबसे तेजी से विकसित होता है, इसलिए इस दौरान केवल शिक्षा देना पर्याप्त नहीं, बल्कि सकारात्मक सामाजिक वातावरण और नैतिक मूल्यों का भी समावेश आवश्यक है। बालकों को सक्षम बनाने में तकनीक की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसका अनुभव हमें कोरोना काल में मिला। तकनीक का अगर गलत इस्तेमाल किया जाएगा तो बाल विकास अवरुद्ध हो जाएगा। बाल शिक्षा में मानवीय मूल्यों का समावेश होना अत्यावश्यक है। संस्कारों का रोपण यदि नहीं होगा तब तक हम सक्षम बाल शिक्षा से भारत को विकसित नहीं बना सकते हैं।उन्होंने आंगनवाड़ियों और प्रारंभिक शिक्षा संस्थानों में मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण और शिक्षक पात्रता पर शोध की आवश्यकता पर जोर दिया।

युवाओं को तकनीकी दक्षता के साथ नैतिक मूल्यों की भी समझ मिले

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में कई नवाचार किए गए हैं, जिनका प्रभावी क्रियान्वयन जरूरी है। भारत के पास विशाल युवा जनसंख्या है, लेकिन यदि इस ऊर्जा को सही दिशा न मिले, तो यह देश के विकास में बाधक भी बन सकती है। शिक्षा प्रणाली को ऐसा बनाया जाए कि युवाओं को तकनीकी दक्षता के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की भी समझ मिले।

डॉ. काकोड़कर ने कहा कि बच्चों को गांवों से जोड़ें, वहां के परिवेश से परिचित कराएं। जब हम वर्कफ्रॉम होम कर सकते है तो वर्कफ्रॉम विलेज क्यों नहीं कर सकते। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में स्टार्टअप और छोटा मैन्युफेक्चरिंग यूनिट का विकास होना चाहिए। वर्तमान में अर्थव्यवस्था ज्ञान आधारित है और तकनीक ने इसे आसान बना दिया है।

प्रारंभ में स्टेट प्रेस क्लब, मप्र के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल ने डॉ. काकोड़कर का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन कीर्ति त्रिवेदी ने किया। आभार पंकज क्षीरसागर ने दिया। इस अवसर पर डॉ. करुणाकर त्रिवेदी ने डॉ. काकोड़कर को स्मृति चिन्ह भेंट किए। कार्यक्रम में सैकडों गणमान्‍य नागरिकों ने सहभागिता की।