सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति से दौड़ सकेगी ट्रेनें, एक ट्रेन से 7 मिलियन टन कार्बन की होगी बचत

भारत स्थित क्लाइमेट ट्रेंड्स और यूके स्थित ग्रीन टेक स्टार्ट-अप, राइडिंग सनबीम्स के एक नए अध्ययन में जाहिर हुआ है कि भारतीय रेलवे लाइनों को सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति से, रेलवे के राष्ट्रीय नेटवर्क में चार में से कम से कम एक ट्रेन को चलाने से सालाना लगभग 7 मिलियन टन कार्बन की बचत होगी। भारतीय रेलवे 2019-2020 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार उस अवधि में 8 बिलियन से अधिक का यात्री यातायात था, जिसका मतलब यह होगा कि 2 अरब यात्री सीधे सौर ऊर्जा द्वारा संचालित ट्रेनों में यात्रा कर सकते हैं।

नए विश्लेषण में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस नई सौर क्षमता का लगभग एक चौथाई बिजली नेटवर्क पर खरीदे जाने के बजाय सीधे रेलवे की ओवरहेड लाइनों में फीड किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा के नुकसान कम होंगे और रेल ऑपरेटर के पैसे बचेंगे। शोधकर्ताओं ने पाया कि कोयला-प्रधान ग्रिड से आपूर्ति की गई ऊर्जा के बजाय सौर से निजी-तार की आपूर्ति भी हर साल 6.8 मिलियन टन CO2 तक उत्सर्जन में तेज़ी से कटौती कर सकती है जो देश के एक शहर कानपुर के पूरे वार्षिक उत्सर्जन जितना है।

रिपोर्ट के सह-लेखक, राइडिंग सनबीम्स के संस्थापक और नवाचार के निदेशक लियो मरे ने कहा “अभी भारत दो महत्वपूर्ण जलवायु सीमाओं – रेल विद्युतीकरण और सौर ऊर्जा परिनियोजन – पर दुनिया का नेतृत्व कर रहा है। हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि भारतीय रेलवे में इन दो कीस्टोन लो-कार्बन प्रौद्योगिकियों को एक साथ जोड़ने से भारत को कोविड महामारी से आर्थिक सुधार और जलवायु संकट से निपटने के लिए जीवाश्म ईंधन को बंद करने के प्रयासों दोनों को बढ़ावा मिल सकता है।”

रिपोर्ट की सह-लेखक और क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा, “भारतीय रेलवे प्रत्येक भारतीय के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह न केवल परिवहन का सबसे अमली साधन है, बल्कि यह देश में सबसे प्रसिद्ध और सबसे बड़ा नियोक्ता भी है। सरकार रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए बड़ी मात्रा में धन खर्च करती है, जो बदले में, राष्ट्र की नेट-ज़ीरो दृष्टि में एक बड़ी भूमिका निभाएगा।”

शोधकर्ताओं ने यह चेतावनी भी दी कि 2023 तक सभी मार्गों के पूर्ण विद्युतीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के साथ-साथ अल्पावधि में CO2 उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है क्योंकि वर्तमान में बिजली उत्पादन के लिए भारत कोयले पर निर्भर है। टीम ने भारत के प्रत्येक रेलवे ज़ोन पर ट्रैक्शन एनर्जी डिमांड (कर्षण ऊर्जा की मांग) का विश्लेषण किया और प्रत्येक क्षेत्र में संभावित सौर संसाधन के साथ इसका मिलान करके सौर ऊर्जा की कुल मात्रा का एक आंकड़ा तैयार किया, जिसे रेलगाड़ियों को चलाने के लिए सीधे रेलवे से जोड़ा जा सकता है।

डॉ अजय माथुर, महानिदेशक, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “भारत के ऊर्जा और परिवहन क्षेत्रों ने 2014 में भारत के कुल उत्सर्जन में 65% से अधिक का योगदान दिया, और भारत के महत्वाकांक्षी रिन्यूएबल ऊर्जा लक्ष्यों ने बिजली क्षेत्र को डीकार्बोनाइज़ेशन मार्ग पर डाला दिया है। भारतीय रेलवे का 2030 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य उसके बाद हर साल उत्सर्जन मुक्त 8 बिलियन से अधिक यात्रियों को यात्रा करते हुए देख सकता है।

उल्‍लेखनीय है कि प्रधान मंत्री ने हाल ही में घोषणा की है कि भारत में रेलवे का विद्युतीकरण तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, और भारतीय रेलवे के लिए लक्ष्य 2030 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जक बनना है। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भारतीय रेलवे को कंपनी की नेट ज़ीरो प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में सौर विकास के लिए अनुत्पादक भूमि के विशाल क्षेत्रों को चिह्नित करने का निर्देश जारी किया है।

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