देहरादून। उत्तराखंड में कुछ तत्वों द्वारा माहौल को जो साम्प्रदायिक रंग देकर सामाजिक समरसता और सद्भाव बिगाड़ी जा रही है उसको लेकर उत्तराखंड के आम नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, पत्रकारों, वकीलों, पूर्व सरकारी अधिकारियों, राजनैतिक दलों के सदस्यों व नागरिक समाज ने सरकार से ऐसे तत्वों पर तुरंत लगाम लगाने की मांग की है।

आम नागरिकों की इस अपील में कहा गया है कि शांतिप्रिय उत्तराखंड को पिछले कुछ समय से लगातार अशांत करने के प्रयास किये जा रहे हैं। कुछ संगठन और कुछ लोग लगातार सच्ची-झूठी कहानियों के सहारे इस राज्य में साम्प्रदायिक सौहार्द्र और भाईचारे को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे लोगों को राजनीतिक संरक्षण की भी बात सामने आ रही है। नागरिक समाज का सदस्य होने के नाते हम सबका कर्तव्य है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने, साम्प्रदायिक एकता व बंधुत्व बढ़ाने तथा भाईचारा बिगाड़ने व नफरत फैलाने वालों को कड़ा संदेश देने के लिए एकजुट हों।

उत्तराखंड के गणमान्य प्रबुद्ध जनों में शेखर पाठक (इतिहासकार), रवि चोपड़ा (पर्यावरणविद्), उमा भट्ट (सामाजिक कार्यकर्ता), राधा बहन (वरिष्ठ गांधीवादी),  विभा पुरी दास (सामाजिक कार्यकर्ता), राजीव नयन बहुगुणा ( पत्रकार), वीरेंद्र पैन्‍यूली( साहित्‍यकार, लेखक), विजय महाजन( भारत जोड़ो अभियान) सहित एक सौ साठ व्‍यक्तियों ने इस अपील को जारी किया है।  

हाल में हुई कुछ घटनाएं

नागरिक समाज के प्रतिनिधियों द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि पुरोला में पिछले वर्ष लव जिहाद के नाम पर मुस्लिम परिवारों को वहां से भागने पर विवश किया गया। जिस तथाकथित घटना की आड़ में ऐसा किया गया, वह कोर्ट में झूठी साबित हो चुकी है। घाट (चमोली) में नाबालिग को इशारा करने को लेकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अभियान चलाया गया। धारचूला (पिथौरागढ़), चौरास (टिहरी) के साथ ही हल्द्वानी और देहरादून में बार-बार इस तरह की घटनाओं को दोहराया गया। रुद्रप्रयाग जिले के कुछ गांवों में खास समुदाय के लोगों का प्रवेश वर्जित संबंधी बोर्ड भी इस नफरती अभियान का हिस्सा थे। नागरिक समाज के प्रतिनिधियों का मानना है कि एक व्यक्ति द्वारा किये गये अपराध के लिए पूरे समुदाय के खिलाफ अभियान चलाना एक सोची-समझी साजिश है।

पुलिस-प्रशासन दबाव में

अपील जारी करने वाले उत्तराखंड के गणमान्य प्रबुद्ध जनों ने कहा कि उत्तराखंड में साम्प्रदायिक वैमन्यस की ज्यादातर घटनाओं में कुछ नाम हर बार सामने आये हैं। पुलिस ऐसे लोगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करती है, लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती। देहरादून में रेलवे स्टेशन पर हुई घटना में दोषी को जबरन थाने से छुड़ा लाना इसका उदाहरण है। इन स्थितियों में जब दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस व प्रशासन विफल है या उन्हें ऐसा करने से रोका जा रहा है तो नागरिक समुदाय को आगे आने की जरूरत है। उन अधिकारियों की आचरण की सराहना करते हैं, जो भीड़ के दबाव में झुके नहीं और भारत के संविधान के प्रति वफादार रहे।

गणमान्य प्रबुद्ध जनों ने कहा है कि उत्तराखंड में अल्पसंख्यक समुदायों को अकारण निशाना बनाये जाने की घटनाओं से हम चिन्तित हैं। हमें अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हाल के दिनों में राष्ट्रीय स्तर पर महिला संगठनों के खुले पत्र और वरिष्ठ व जाने-माने लोगों द्वारा बार-बार आवाज उठाये जाने के बावजूद उत्तराखंड सरकार नफरत फैलाने वाले तत्वों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने से बच रही है। यह बढ़ती नफरत देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है।

उन्‍होंने कहा कि हम सरकार को याद दिलाना चाहते हैं कि नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना उसकी जिम्मेदारी है। अब समय चुप बैठकर तमाशा देखने का नहीं, बल्कि कठोर कार्रवाई करने का है। हम सरकार से मांग करते हैं कि-

1. प्रत्येक नागरिक, चाहे वह किसी भी समुदाय का हो, उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

2. नफरत फैलाने और साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए।

3. राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर बहुपक्षीय शांति समितियों का गठन किया जाए, ताकि स्थाई रूप से शांति स्थापित की जा सके।