13 अगस्त को विनोबा विचार प्रवाह की अंतर्राष्ट्रीय संगीति में डॉ. उल्हास जाजू
विनोबा जी ने स्वराज्य के कंधे पर बैठकर सर्वोदय विचार की आराधना की। उन्होंने गांधी युग की अहिंसा के नकारात्मक भाव को अपने रचनात्मक कार्यों से विधायक बना दिया। भूदान-ग्रामदान का मौलिक विचार देने के बाद भी अनासक्ति भाव से सूक्ष्म में प्रवेश कर विनोबा ने योग-मृत्यु का वरण किया। उन्होंने करुणा के वशीभूत होकर लोकसंग्रह किया। विनोबा का भूदान आंदोलन करुणा का महाकाव्य है।
उक्त विचार सेवाग्राम अस्पताल के मेडिसिन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. उल्हास जाजू ने विनोबा जी की 125वीं जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में व्यक्त किए। डॉ. जाजू ने महात्मा गांधी और विनोबा के साम्य और वैषम्य को प्रस्तुत करते हुए कहा कि महात्मा गांधी ने कर्मप्रधान जीवन से वृत्ति संशोधन किया। उन्होंने काल की मांग मानकर लोकतंत्र को मंजूरी दी और विनोबा ने उसे ग्रामदान विचार में परिणत किया। दोनों की विचार निष्ठा जीवन को समर्पित रही। डॉ. जाजू ने कहा कि विनोबा ने आत्मनिष्ठा को समाज में स्थापित किया। वे वैराग्य निष्ठा को लेकर आए। उन्होंने ब्रह्मचर्य से सीधे संन्यास लिया। अपने बारे में बारे में विनोबा ने कहा है कि वे रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकांनद के बीच की स्थिति के हैं। डॉ. जाजू ने कहा कि आज तक समाज में दो प्रक्रियाएं चली हैं। अंत तक सेवा कार्य करते हुए देह छोड़ना और दूसरा देह में रहते हुए मृत्यु को देख लेना। विनोबा ने दूसरी प्रक्रिया को अपनाया। गांधी-विनोबा ने अपने जीवन में भगवद्गीता से बोध लिया। विनोबा शास्त्र वृत्ति में निष्ठा रखते हैं जबकि गांधी जी में शास्त्र वृत्ति और संत प्रवृत्ति का समन्वय था।
डॉ. जाजू ने अपने वक्तव्य में कहा कि जब विनोबा जी को ग्रामदान फलीभूत होता नजर नहीं आया तब वे सूक्ष्म में प्रवेश कर गए। वे अंत तक कर्ममार्ग में नहीं उलझे। स्थितप्रज्ञ का विशेष गुण होने से उनमें अनासक्त भाव सहज ही मौजूद था। विनोबा ने स्वामित्व विसर्जन का आह्वान कर स्पर्धारहित समाज की दिशा में एक कदम बढ़ाया। भूदान यज्ञ में कई शबरियों ने बेर दिए और अनेक सुदामाओं ने तंडुल अर्पित किए। इसने श्रीमानों को आत्मशुद्धि का अवसर उपलब्ध कराया। वास्तव में भूदान आंदोलन करुणा का महाकाव्य है।
डॉ. जाजू ने कहा कि गांधी ने अपने साथियों की गलतियों को ओढ़ लिया, लेकिन विनोबा मोह का क्षय कर चुके थे। विनोबा ने जीवनभर शुद्ध अहिंसा प्रकट करने का प्रयोग किया। उन्होंने कहा कि रचनात्मक आधार पर किया गया सत्याग्रह ही बदलाव लाता है। सामने वाले को सहयोग करते हुए सम्यक चिंतन करने के लिए प्रेरित करना ही सत्याग्रह है।
द्वितीय वक्ता अहमदाबाद स्थित सफाई विद्यालय के संचालक श्री देवेंद्र भाई ने कहा कि स्वच्छता का काम गहरा होने के साथ व्यापक भी है। विनोबा जी ने सफाई लिए सूत्र ही बनाया प्रभाते मलदर्शनम। महात्मा गांधी ने सफाई को स्वतंत्रता आंदोलन के साथ जोड़ दिया। उन्होंने बताया कि सफाई विद्यालय ने पूरे देश में अब तक 5 लाख से अधिक शौचालय बनाए हैं। कुंभ मेले में टॉयलेट केफेटेरिया बनाकर आमजन को स्वच्छता की जानकारी दी गई। श्री देवेंद्र भाई ने कहा कि शौचालय हमारी प्राथमिक आवश्यकता है। बाहर की गंदगी को सहन न करने वाला भीतर की गंदगी को भी सहन नहीं करेगा। स्वच्छता में अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय है। सत्र का संचालन श्री संजय राय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना। (प्रस्तुति : डॉ. पुष्पेंद्र दुबे) (सप्रेस)