विधवा महिलाओं को अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए

विधवा प्रथा विरोध आंदोलन राष्ट्रव्यापी बनाने के लिए राष्ट्रीय संगठन बनाने की घोषणा

नई दिल्ली, 23 जून। विधवा महिलाओं को किसी की मोहताज नहीं होना चाहिए उन्हें अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए। यह बात आज गांधी शांति प्रतिष्ठान में विश्व विधवा दिवस पर आयोजित विधवाओं की विडंबना राष्ट्रीय विमर्श की मुख्य अतिथि और हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया ने कही।

राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन सावित्री बाई सेवा फाउंडेशन, पुणे और महात्मा फुले समाज सेवा मंडल, सोलापुर ने अनेक संगठनों की मदद से किया था। रेनू भाटिया ने अपनी जीवन की अनेक कठिनाइयों की चर्चा करते हुए कहा कि जब तक हम दूसरों के भरोसे रहेंगे तब तक हमारे जीवन में बदलाव संभव नहीं होगा उन्होंने कहा कि अपने पति को खो देने के बाद भी मैंने खुद को ताकतवर बनाने के लिए लगातार कोशिश की उसी का नतीजा है आज मुझ पर  हरियाणा सरकार ने राज्य की करोड़ों महिलाओं को इंसाफ दिलाने वाले आयोग का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी है।

इस मौके पर मुंबई से ऑनलाइन संबोधन करते हुए महाराष्ट्र विधान परिषद की उप सभापति डॉ. नीलम ताई गोरे ने विधवाओं के संरक्षण और सम्मान के लिए राष्ट्र व्यापी अभियान शुरू करने की जरूरत बताई।

प्रसिद्ध समाज शास्त्री प्रो आनंद कुमार ने एक संदेश भेज कर कहा कि विधवाओं के हक के लिए समाज और सरकार दोनों उदासीन है जबकि उनकी यह संयुक्त जिम्मेदारी है। महाराष्ट्र में विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन में पूरी तरह से सक्रिय विधवा महिला सम्मान और संरक्षण कायदा अभियान के प्रमोद झिंझडे और राजू ने महाराष्ट्र में पिछले कई सालों से चल रहे विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन की चर्चा करते हुए विधवाओं के हक में केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों से कारगर कानून बनाने की मांग की।

इस राष्ट्रीय विमर्श में महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों से पचास से अधिक महिला प्रतिनिधियों के साथ दिल्ली, पंजाब, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, झारखंड, बिहार, मध्यप्रदेश दर्जन भर गुजरात, राजस्थान और उत्तराखंड से दर्जन भर प्रतिनिधि आए हुए थे। सावित्री बाई सेवा फाउंडेशन की सचिव हेमलता म्हस्के के मुताबिक राष्ट्रीय  विमर्श में शबाना शेख, नविता, डॉ. मुक्तेश्वर, अतुल प्रभाकर, शाहाना परवीन शान, डॉ. सुनीता, मुरलीधर चंद्रम, इरफान शेख, गजानन काशीनाथ अंबादकर, डॉ. मोरे, चेतना वशिष्ठ, लता प्रा सर, डॉ. सुधीर कुमार, शालिनी श्रीनेत, शीतल राजपूत, श्वेता जाजू भारतीय, चंद्र मोहन पपने,  पंचशील एनजीओ के हरिओम आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।

सूर्य संस्थान नोएडा के सचिव और वरिष्ठ समाज कर्मी देवेंद्र मित्तल की अध्यक्षता में आयोजित  इस आयोजन में इन सभी ने अपने अपने राज्यों में विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन शुरू करने का संकल्प किया। इस कार्यक्रम में विधवा प्रथा विरोध आंदोलन राष्ट्रव्यापी बनाने के मकसद से एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन बनाने की घोषणा की गई। जिसका नाम राष्ट्रीय वैधव्य मुक्त भारत  अभियान रखा गया। इस अभियान की राष्ट्रीय संयोजक झारखंड की पत्रकार और समाज सेविका बरखा लकड़ा को चुना गया।

विधवा प्रथा उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण के लिए बीस से अधिक स्त्री और पुरुषों को सम्मानित भी किया गया। इस मौके पर दो विधवा महिला को मंगल सूत्र पहना कर सम्मानित किया गया। विधवाओं पर केंद्रित भगवान दास मोरवाल के उपन्यास मोक्ष वन का लोकार्पण किया गया।   दो सत्रों में आयोजित राष्ट्रीय विमर्श का संचालन वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने बखूबी किया।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें