सेवा सुरभि की ई संगोष्ठी में पर्यावरणविद डॉ. राजेंद्र सिंह एवं माउंटमेन डॉ. अनिल प्रकाश जोशी के विचार
इंदौर, 1 जून। ‘लॉकडाउन के बाद आर्थिक पुनरोत्थान के लिए जरूरी है कि हमारे गांव स्वावलंबी बनें। ये समझना होगा कि हमारा देश गांवों, का देश था, अब ये शहरों का देश बन रहा है। जब जब लोगों का रूझान गांवों से शहरों की ओर होता है, उनका प्रकृति से रिश्ता टूट जाता है। आज शुभ की चाह मिटती जा रही है। लोभ और लालच के लिए लोग शुभ को भूल कर लाभ की और दौड़ रहे हैं। जब जब आर्थिक ढांचे में मानवीय लालच का भाव आ जाता है, तब तब सुरक्षा का ढांचा चरमरा कर गिर जाता है। कोरोना इसी की देन है। भारतीय ग्राम स्वराज के ढांचें को अपना कर ही दुनिया को कोरोना से सुरक्षा मिल सकेगी। निजीकरण को रोकने और सामुदायीकरण को बढ़ावा देने का काम सहकारिता से ही संभव होगा। लॉकडाऊन के कारण गांव की ओर लौट रहे लोगों के कारण गांव में पर्यावरण की रक्षा के संस्कार फिर से जीवित किए जा सकते हैं।‘
ये विचार पानीवाले बाबा के नाम से प्रख्यात जलपुरूष और मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित डॉ. राजेंद्र सिंह ने इंदौर की संस्था सेवा सुरभि द्वारा आयोजित ई- संगोष्ठी में ‘भविष्य में कैसा हो हमारा पर्यावरण से बर्ताव, लॉकडाऊन में क्या कहा प्रकृति ने‘ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए व्यक्त किए। प्रारंभ में संगोष्ठी के संयोजक जल प्रबंधन विशेषज्ञ सुधींद्र्र मोहन शर्मा ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि इस बार प्रकृति ने पर्यावरण सुधारने के लिए जो तैयारियां स्वयं की है, उनसे हम क्या सीख सकते हैं, इस पर हम इस संगोष्ठी में चर्चा कर रहे हैं। पर्यावरण पर काम करने के लिए हमें अग्रिम तैयारियां करनी चाहिए। संस्था सेवा सुरभि के संयोजक ओमप्रकाश नरेड़ा ने पर्यावरण एवं जल संरक्षण की दिशा में संस्था द्वारा किए जा रहे कार्यों एवं प्रयासों की जानकारी दी। संगोष्ठी में इंदौर से अरूण डिके, अतुल सेठ, डॉ. गुणवंत जोशी, डॉ. पीयूष जोशी, अमिय पहारे, पटना से उमेश कुमार, यूपी से संजय मिश्रा, डॉ. अजय चौरे, हरियाणा से दीपक शर्मा और विदिशा से रूपेश लाड ने भी अपने विचार रखें।
माउंटमेन के नाम से प्रसिद्ध हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन( हेस्का) के संस्थापक, पद्मविभूषण से अलंकृत डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि जब पर्यावरण ने लॉकडाऊन के दौरान अपने आपको सुधारा और हम सबकी जरूरतों को पूरा किया, तब हमें समझ जाना चाहिए कि भारत की आंतरिक शक्ति ग्राम समाज और कृषि में ही निहित है।
डॉ. जोशी ने कहा कि कोरोना संकटकाल में भी हम बाजार और अपनी अर्थव्यवस्था को भुला नहीं पाए हैं। हम सबकों जीडीपी की चिंता है पर जीईपी अर्थात ग्रास एन्वायरन्मेंट प्रोडक्ट के बारे में भी सोचना होगा। डॉ. जोशी ने कहा कि किसी देश की आर्थिक स्थिति कितनी ही अच्छी क्यो न हो, जिस देश का पर्यावरण अच्छा होगा, वहीं इस लड़ाई में विजेता बनेगा। पानी, जंगल, प्राणवायु की मात्रा कितनी बढ़ी है, इन सबको मिला कर जीईपी निकालना चाहिए ताकि यह लेखा – जोखा सामने आ सके कि धरती की आबोहवा और हमारी प्राणवायु के मूल स्त्रोत किस हाल में हैं और सरकार उनके लिए क्या कर रही है तथा इनके संरक्षण- संवर्धन के लिए क्या योजना है। आज जल, जंगल, और जमीन तक सब खतरे में हैं लेकिन कोई इनकी बात तक नहीं करना चाहता। सब आर्थिकी की आंकड़ों में उलझे हुए हैं। प्रकृति और पृथ्वी का अस्तित्व मिट रहा है। अब भी नहीं संभले तो आने वाली पीढि़या अपने पूर्वजों का तर्पण तक भी नहीं करना चाहेगी। हकीकत यह है कि पिछले दो दशकों में दुनिया की बढ़ती जीडीपी की सबसे बड़ी मार पर्यावरण पर पड़ी है। इसके कारण नदियों के सूखने, धरती की उर्वरा शक्ति घटने, जलवायु संकट और ग्लोबल वार्मिंग के दृश्य दिखाई दे रहे हैं। व्यापरिक सभ्यता ने इसे मुनाफे का साधन बना लिया है। इससे प्राकृतिक संसाधन और कमजोर होते चले गए। दुर्भाग्यवश सरकार ने प्रकृति के संरक्षण की दिशा में अब तक बड़े कदम नहीं उठाये हैं। ऐसा करना बहुत जरूरी है। सरकार जागेगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
डॉ. जोंशी ने कहा कि कोरोना के माध्यम से पहली बार प्रकृति ने हमें लंबी डांट लगाई है और सबक भी सिखाएं हैं। एक अदृश्य विषाणु ने हम सबको संकेत दिया है कि हम अपने आत्म नियंत्रण के रास्ते को बेहतर करें अन्यथा प्रकृति कोरोना या अन्य कोई विषणु से हम पर नियंत्रण ले आएगी। आर्थिकी किसी देश की रीढ होती है, प्राण नहीं। प्राण तो प्रकृति से जुड़े होते हैं। मात्र 21 दिनों में हमने प्रकृति में सबकुछ बेहतर होते देखा है, इसका मतलब यह है कि प्रकृति के पास स्वयं को रिकवर करने की अद्भुत क्षमता है। क्या हम हफ्ते में दो दिन या पूरे वर्ष में 96 दिन पृथ्वी कों विश्राम नहीं दे सकते।
संगोष्ठी समन्वयक कुमार सिद्वार्थ ने ई संगोष्ठी में शामिल सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी के तकनीकी संचालक रवि गुप्ता ने पूरी दक्षता के साथ इस ई संगोष्ठी का संचालन किया। सभी वक्ताओं ने पर्यावरण की चिंता पर केंद्रित इस आयोजन के लिए सेवा सुरभि को बधाई दी।