पर्यावरण मंत्रालय ने उल्लंघन परियोजना घोषित कर रोका काम, परियोजना की पर्यावरण अर्जी का प्रकरण किया बंद
खंडवा । केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा खंडवा जिले में बन रही आंवलिया मध्यम सिंचाई परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी की अर्जी का प्रकरण बंद कर इसे उल्लंघन परियोजना घोषित कर दिया है। इसके साथ ही बांध के निर्माण कार्य पर भी रोक लगा दी है। बांध का कार्य बगैर पर्यावरणीय स्वीकृति के 90 प्रतिशत हो चुका है। राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग द्वारा बिना पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी के परियोजना का निर्माण कार्य गैर कानूनी रूप से किया गया था, जिसके खिलाफ विस्थापितों द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में दायर याचिका में नोटिस जारी होने पर उपयुक्त जांच के बाद पर्यावरण मंत्रालय द्वारा यह करवाई की गयी है.
जल संसाधन विभाग द्वारा पर्यावरण स्वीकृति के लिए लगाई अर्जी पर सुनवाई बंद कर उसे फाइल कर दिया है। इसे पर्यावरण मंत्रालय ने बड़ी चूक बताया है। आदिवासी विकासखंड खालवा में निर्माणाधीन आंवलिया बांध परियोजना में मनमाने भूअर्जन और मुआवजा वितरण के आरोपों के बाद अब पर्यावरण की अनदेखी उजागर हुई है। परियोजना की विसंगतियों के खिलाफ विस्थापितों द्वारा उच्च न्यायालय में दायर याचिका में नोटिस जारी होने पर उपयुक्त जांच के बाद पर्यावरण मंत्रालय द्वारा यह करवाई की गई है।
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने बताया कि आंवलिया मध्यम सिंचाई परियोजना खंडवा जिले के खालवा ब्लाक में निर्माणाधीन है. इस परियोजना से 600 से अधिक आदिवासी परिवार प्रभावित हो रहे हैं. यह आंवलिया बांध प्रभावितों की एक बड़ी जीत है.
क्या है मामला?
पर्यावरण सुरक्षा कानून, 1985 के तहत जारी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के नोटिफिकेशन, 2006 के अनुसार पर्यावरण मंत्रालय की “पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी” के पहले किसी भी परियोजना का निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग द्वारा आंवलिया परियोजना की “पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी” के लिये सन 2017 में अर्जी दायर की गयी थी लेकिन इस मंजूरी के मिले बिना ही गैरकानूनी रूप से परियोजना का काम तेजी से चलाया गया।
पुनर्वास लाभ दिए बिना डूबा दी 48 किसानों की जमीन
परियोजना से विस्थापित होने वाले आदिवासी प्रभावित परिवारों को भू-अर्जन कानून 2013 के अनुसार कोई भी पुनर्वास के लाभ नहीं दिये गये और 48 प्रभावितों की जमीन बांध के क्रेस्ट लेवल तक पानी भर कर डुबा दी गयी. सरकार द्वारा कोई सुनवाई न करने की स्थिति में बांध प्रभावितों द्वारा उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर बताया गया कि परियोजना बिना पर्यावरण मंजूरी के गैरकानूनी रूप से आगे बढ़ाई गई है और विस्थापितों को पुनर्वास के कोई लाभ नहीं दिए गए हैं. उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार एवं पर्यावरण मंत्रालय को दिए गए नोटिस के बाद पर्यावरण मंत्रालय ने जांच के उपरांत कानून का उल्लंघन पाते हुए परियोजना को उल्लंघन वाली परियोजना (violation project) घोषित करते हुए जल संसाधन विभाग की अर्जी की फाइल बिना मंजूरी दिये बंद कर दी.
क्या है पर्यावरण मंत्रालय का आदेश ?
पर्यावरण सुरक्षा कानून 1985 के तहत जारी नोटिफिकेशन, 2006 के अनुसार किसी भी परियोजना का निर्माण कार्य तब तक प्रारंभ नहीं हो सकता, जब तक कि उसको पर्यावरण मंत्रालय से “पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी” नहीं मिल जाती है. यह मंजूरी तमाम अध्ययनों व जाँच के बाद दी जाती है.
प्रभावितों की याचिका पर उच्च न्यायालय के नोटिस के बाद केंद्रीय पर्यावरण व् वन मंत्रालय की राज्य इकाई “राज्य स्तरीय पर्यावरण समाघात निर्धारण प्राधिकरण” (State Environment Impact Assessment Authority) द्वारा जांच में यह पाया गया कि बिना पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी के ही जल संसाधन विभाग द्वारा आंवलिया परियोजना का निर्माण कार्य कर दिया गया है जो कि 2006 के नोटिफिकेशन का स्पष्ट उल्लंघन है. इस कारण प्राधिकरण द्वारा बैठक दिनांक 14 फरवरी 2022 में जल संसाधन विभाग द्वारा आंवलिया सिंचाई परियोजना के लिए मांगी गई “पूर्व पर्यावरण मंजूरी” की फाइल को बंद करते हुए इस परियोजना को “उल्लंघन वाली परियोजना” घोषित कर दिया.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के मीडिया सेल द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा की गई कार्रवाई मध्य प्रदेश के जल संसाधन विभाग द्वारा किये जा रहे गैर क़ानूनी निर्माण कार्यों का स्पष्ट खुलासा है. आंवलिया बांध प्रभावित इस निर्णय का स्वागत करते हैं और मांग करते हैं कि गैरकानूनी रूप से हुए इस निर्माण कार्य के लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए. साथ ही बांध के स्लूइस गेट को तोड़कर 48 लोगों के खेत में जो पानी भरा है उसको खाली किया जाए.
पर्यावरण मंत्रालय तय करेगा परियोजना का भविष्य
श्री अलोक अग्रवाल ने बताया कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा घोषित दिशानिर्देश दिनांक 07 जुलाई 2021 के अनुसार उल्लंघन वाली परियोजना के संबंध में सर्वप्रथम परियोजना का कार्य रोका जाता है, दूसरा उल्लंघनकर्ता के खिलाफ पर्यावरण सुरक्षा कानून 1985 की धारा 15 व 19 के तहत कार्रवाई की जाती है और यदि परियोजनाकर्ता चाहे तो एक नई अर्जी लगा सकता है जिस पर नए सिरे से विचार करके पर्यावरण मंत्रालय तय करेगा कि परियोजना को दंड के साथ मंजूरी देनी है या परियोजना को बंद करना है या उसे तोड़ देना है. परियोजना का कार्य रोक दिया गया है.