बागमती नदी नेपाल के तराई क्षेत्र से निकलकर दक्षिण-मध्य नेपाल और उत्तरी बिहार राज्य, पूर्वोत्तर भारत में बहती है। सीतामढ़ी जिले में बागमती नदी पर दो नए बराज बनाए जाएंगे। ये बराज ढेंग और कटौंझा के पास बनाए जाएंगे। इन बराजों के निर्माण के लिए 25.37 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। सरकार का दावा है कि बराज बागमती नदी के जलस्तर को नियंत्रित करेंगे और बाढ़ के प्रकोप को कम करेंगे। सीतामढ़ी में 25 मार्च को बागमती नदी से तबाही और ढेंग में प्रस्तावित बराज पर बसबीट्टा पंचायत भवन में एक किसान कन्वेंशन आयोजित किया गया था, जिसमें इस योजना का विरोध किया गया।
वर्ष 2012 से ही बागमती में तटबंध बनाये जाने का विरोध 109 गांवों के किसा नकर रहे हैं पर सरकार तटबंध बनाने की पुरजोर कोशिश कर रही है।
किसानों का मनाना है कि तटबंध के बन जाने से वे उस उपजाऊ मिट्टी से वंचित रह जायेंगे जो हर साल बागमती अपने साथ लाती है। बागमती पर जहां तटबंध बने हैं, वहां के खेतों की उर्वरकता घटी है। वर्ष 2018 में जब लोगों के विरोध के बावजूद यहां तटबंध निर्माण शुरू हो गया था तो हजारों किसानों ने हाईवे जाम कर दिया। इस विरोध के बाद सरकार ने काम रोक दिया और इसकी समीक्षा के लिए तीन सदस्यीय कमिटी का गठन किया था। उस कमिटी के एक महत्वपूर्ण सदस्य अनिल प्रकाश कहते हैं कि कमेटी को काम भी नहीं करने दिया गया और उसकी रिपोर्ट भी तैयार नहीं हुई।
इस कमिटी में अनिल प्रकाश के अलावा प्रसिद्ध नदी विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र और आईआईटी, कानपुर से जुड़े प्रोफेसर राजीव सिन्हा शामिल हैं। अनिल प्रकाश कहते हैं कि अब तक उस कमिटी की एक ही बैठक हुई है। हां, समय-समय पर उसका समय बढ़ाया जाता रहा है। ताजा सूचना के अनुसार उसका समय 31 दिसंबर, 2020 तक कर दिया गया था। उसके बाद की सूचना उपलब्ध नहीं है। तटबंध बने या न बने, इस पर कमेटी की कोई रिपोर्ट आयी नहीं कि फिर अब बराज निर्माण की तैयारी की जा रही है।
बागमती के सवाल पर सीतामढ़ी में हुए किसान कन्वेशन में बागमती में बराज निर्माण पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गयी और इसका एकजुट होकर विरोध करने का फैसला लिया गया। साथ ही तटबंधों पर जहां गांव नही हो वहां लचका बनाकर या स्लूईश गेट के माध्यम से उपजाऊ पानी खेतों को दिलाने,सुप्पी तथा मेजरगंज के कटाव प्रभावित गांवों की सुरक्षा के साथ विस्थापित परिवारों को मुआबजा भुगतान कराने,पूर्व से विस्थापित परिवारों को भूमि पर कब्जा दिलाने,2024के बाढ,कटाव तथा तटबंध टूटने से प्रभावितों को उचित अनुदान तथा गृह क्षति मुआबजा भुगतान, जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव से नदियों को बचाने,अल्पवर्षा,कटाव रोकने,गाद सुरक्षा हेतू नेपाल से भारत तक सघन वृक्षारोपण के लिए ठोस पहल करने की मांग की गयी। कन्वेशन में पारित दस सूत्री प्रस्ताव को सरकार को भेजा जाएगा।
बागमती नदी पर तटबंध तथा बराज निर्माण के नाम पर1970 के दशक से ही बडा सपना दिखाया जा रहा है।सरकार अब पुन:बराज का सपना दिखा रही है। वहां के लोगों का कहना है कि सरकार सपना दिखाने के वजाए बागमती को बचाने तथा उसका उपजाऊ पानी खेतों को सुलभ कराने पर काम करे।लोगों ने साफ तौर कहा कि तटबंध-बराज नहीं बागमती का पानी चाहिए।
नेपाल सीमा से सटे मेजरगंज प्रखंड के बसबीट्टा बाजार पर पंचायत भवन के सभागार में किसान नेता तथा स्थानीय मुखिया राघवेन्द्र कुमार सिंह की अध्यक्षता में “जलवायु परिवर्तन-नदी विमर्श मंच “के तत्वावधान मेंआयोजित किसान-कन्वेंशन में प्रस्ताव पारित कर सरकार से 10सूत्री मांगो पर अमल की मांग की गई। राघवेन्द्र कुमार सिंह ने तटबंध के भीतर के गांवों तथा मेजरगंज तथा सुप्पी में बागमती की समस्या पर प्रकाश डाला।
कन्वेंशन में पर्यावरणविद तथा नदी जल विशेषज्ञ रामशरण अग्रवाल ने कहा प्रथम सिंचाई मंत्री ने तटबंध का विरोध किया था।गाद निकालना समस्या है परन्तु गाद नही आने पर चिंतन नही किया जा रहा है।नेपाल के पहाड से समतल तक वृक्षारोपण से गाद रूकेगी।बिहार सरकार स्वेत पत्र जारी करे तथा बागमती पर कितनी राशि खर्च हुई उसकी मांग उठनी चाहिए। बडी नदियों के जीवन के लिए छोटी नदियों को भी बचाना होगा।योजना बनाते समय विस्तृत जानकारी संबंधित क्षेत्रों को दिया जाना जरूरी है।उन्होने पर्यावरण तथा जलवायु संकट पर विस्तार से प्रकाश डाला।
गांधीवादी तथा नदी जल विशेषज्ञ प्रो आनन्द किशोर ने कहा कि फरक्का बराज से गंगा गाद से भरकर दर्जनो जिलों में तबाही मचा रही है।मुख्यमंत्री तथा जल संसाधन मंत्री फरक्का बराज तोडने की बात कह चुके है वहीं कोशी का बीरपुर बराज फेल है फिर बागमती में ढेंग तथा कटौझा में 45 किमी के बीच दो बराज तथा नेपाल से कटौझा 85कि मी में तीन बराज का कोई औचित्य नही है।
यहां गाद भरने तथा जल जमाव से हजारों एकड खेत बर्बाद होंगे दर्जनो गांवो का विस्थापन होगा।मेजरगंज,सुप्पी तथा बैरगनिया में कभी भी तटबंध टूटेगा तो कोशी के कुसहा जैसी त्रासदी हो सकती है।वैसे नेपाल के करमहिया में पहले हीं बराज बन जाने से खेती के समय ढेंग बराज को पानी नही मिलेगा।
हमें बराज नही तटबंधों पर जहां गांव नही है वहां जगह-जगह लचका तथा स्लूईश गेट बनाकर खेतों को बागमती का उपजाऊ पानी देना चाहिए।
प्रो किशोर ने कहा जहां देश-दुनिया में तटबंध अप्रासंगिक तथा बर्बादी का कारण बना हुआ है यूरोप तथा चीन में तटबंधों को तोडा जा रहा है वहीं बिहार में जन विरोध के बावजूद तटबंध बनाने पर सरकार आमादा है।बागमती कटाव तथा तटबंध टूटने से बर्बाद परिवार मुआबजे के लिए भटक रहे है उन्हे अनुदान के साथ वहां कटाव रोकने में तेजी लानी चाहिए।

संयुक्त किसान संघर्ष मोर्चा के जिलाध्यक्ष जलंधर यदुबंशी ने कहा कि बागमती परियोजना के नाम पर सरकार आमजन की तबाही बढा रही है।नदियों को बंचाने की जगह तटबंधो के कारण नदियां गाद से भरकर मृतप्राय हो रही है।सरकार तटबंध-बराज के नाम पर लूट का खेल खेल रही है।यह गंभीर मसला है इसके लिए आमजन को आगे आना होगा।
पूर्व प्राचार्य शालिग्राम सिंह ने क्षेत्रीय समस्याओं तथा बागमती की तबाही पर प्रकाश डाला। समाजसेवी रामबाबू प्रसाद ने अतिथियों का स्वागत तथा मंच संचालन किया। कन्वेंशन में स्थानीय किसान नागेन्द्र सिंह,बीरेन्द्र कुमार सिंह,जगदीश नारायण सिंह,छोटे लाल पटेल सरपंच,लक्षमी सहनी,सुशील कुमार सिंह,रामबाबू राम,राम एकबाल महतो,पप्पूसिंह,मदन साह,सुशीला देवी,मधुरेन्द्र पासवान,अंजू देवी,अंजना देवी,गीता देवी सहित अन्य ने अपना विचार रखे। किसान इसलिए विरोध कर रहे हैं कि इससे बाढ़ की तीव्रता बढ़ेगी और खेतों में गाद जमा होगी। बराज के कारण नदी के जल प्रवाह में बदलाव आएगा, जिससे खेतों में उपजाऊ मिट्टी जमा नहीं हो पाएगी, जिससे खेती प्रभावित होगी।