भारत डोगरा

लोकतंत्र में विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका की बार-बार उजागर होती नाकामियों की एक वजह उनका मौके पर मौजूद ना रहना भी है जिसकी एक वजह प्रशासनिक इकाइयों का विशाल आाकार है। तो क्या अपेक्षाकृत छोटे राज्य ज्यादा कारगर हो सकते हैं? अब तक के अनुभव तो यही बताते हैं।

भारतीय लोकतंत्र की प्रगति में समय-समय पर अनेक नए राज्यों के सृजन ने उपयोगी भूमिका निभाई है। किसी नए राज्य का सृजन कोई आसान कार्य नहीं है और बहुत सोच-समझ व व्यापक विमर्श के बाद ही इस तरह का निर्णय लिया जा सकता है। वास्तविक अनुभवों से पता चलता है कि जब ऐसी राह को अपनाया गया तो नए राज्यों के सृजन ने अनेक तरह के विवादों को सुलझाने के साथ कुछ अन्य लाभ भी पहुंचाए हैं।

आजादी के बाद पंजाब राज्य संबंधी कुछ विवाद थे तो पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के रूप में जो राज्य हमारे सामने आए उन्होंने प्रायः विवादों को सुलझाने में तथा सभी क्षेत्रों के लोगों को संतुष्ट करने में महत्त्वपूर्ण निभाई। यदि ऐसे तत्वों को छोड़ दिया जाए जिन्हें अपने स्वार्थों के कारण विवाद ही उठाने हैं, तो पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश का तीन अलग राज्यों के रूप में उभरना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक संतोषजनक समाधान रहा है। इन तीनों राज्यों के विकास के मॉडल में चाहे कुछ कमियां तथा विसंगतियां रही हैं, पर राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो इन तीनों अपेक्षाकृत छोटे राज्यों की गिनती सदा देश के अधिक समृद्ध और विकास के बेहतर संकेतक दिखाने वाले राज्यों के रूप में होती रही है। क्षेत्रीय संस्कृति के स्तर पर भी पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश का गठन संतोषजनक रहा है।

अब यदि बाद में बने नए राज्यों का जिक्र करें तो छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, तेलंगाना व झारखंड के उदाहरण हमारे सामने हैं। इन क्षेत्रों में अलग राज्य की मांग काफी समय से उठ रही थी। नए राज्यों से लोगों को बहुत उम्मीदें भी थीं। इन व्यापक उम्मीदों की तुलना में भले ही लोगों को समुचित लाभ न मिले हों, फिर भी कुल मिलाकर इन नए राज्यों से क्षेत्रीय स्तर पर कुछ संतुष्टि की स्थिति नजर आती है। कुल मिलाकर इन चारों राज्यों का गठन भी भारतीय लोकतंत्र के लिए मजबूती का स्रोत ही बना। क्षेत्रीय संस्कृतियों को अधिक उभरने का अवसर मिला व क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक प्रतिनिधित्व के भी बेहतर अवसर प्राप्त हुए।

एक बड़ा सवाल यह है कि क्या भविष्य में भी कुछ नए राज्यों का सृजन सुलझी हुई, व्यापक विमर्श की स्थिति से आगे बढ़ेगा, ताकि वह कोई नयी समस्या उत्पन्न न करे, अपितु भारतीय लोकतंत्र के लिए मजबूती का स्रोत ही बने? इस संदर्भ में किसी भी विमर्श का अधिक ध्यान उत्तरप्रदेश की ओर जाता है क्योंकि इस समय उत्तरप्रदेश ही सबसे बड़ा राज्य है जहां नए, अपेक्षाकृत छोटे राज्यों की संभावना अधिक है। यदि सभी राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों की औसत जनसंख्या देखी जाए, तो उत्तरप्रदेश की जनसंख्या इससे लगभग पांच गुणा अधिक है। भारत के तीन पड़ौसी देशों को देखें (नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार) तो इनकी सम्मिलित जनसंख्या से भी दो गुनी अधिक जनसंख्या केवल उत्तरप्रदेश राज्य की है।

इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं है कि इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए केवल एक इतना बड़ा राज्य है। जहां इसकी कोई सार्थक वजह नजर नहीं आती, वहीं इससे सुशासन में कठिनाई अवश्य उत्पन्न होती है। इससे विभिन्न क्षेत्रीय राजनीतिक आकांक्षाएं बाधित होती हैं। विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियां चाहे बाधित न होती हों, पर उन्हें खिलने का उतना भरपूर अवसर भी नहीं मिलता जितना कि छोटे राज्यों में मिलता है। इतना ही नहीं, यदि एक राज्य औसत राज्य की जनसंख्या से बहुत अधिक जनसंख्या वाला हो तो इससे लोकतंत्र में राजनीतिक असंतुलन उत्पन्न होता है जो एक स्वस्थ्य संकेत नहीं है।

पश्चिमी-उत्तरप्रदेश को कई बार हरित-प्रदेश कहा जाता है। इसमें नोएडा, गाजियाबाद, सहारनपुर, मेरठ, मुज्फ्फरनगर, आगरा, मथुरा जैसे बड़े शहर हैं। ये दिल्ली से नजदीक हैं। राजनीतिक प्रतिनिधित्व मजबूत है। यहां एक अलग राज्य की संभावनाएं हैं। इसी तरह पूर्वी-उत्तरप्रदेश में भी ऐसी संभावनाएं हैं। यहां वाराणसी व गोरखपुर जैसे बड़े व विख्यात नगर हैं। इस क्षेत्र को कई बार पूर्वांचल भी कहा जाता है। राजनीतिक दृष्टि से यह क्षेत्र भी अति सक्रिय है। मध्य-उत्तरप्रदेश में लखनऊ व कानपुर जैसे विख्यात नगर हैं। यहां भी अलग राज्य का गठन हो सकता है जिसके लिए राजधानी लखनऊ पहले से मौजूद है।

अलग बुंदेलखंड राज्य की मांग तो बहुत समय से उठती रही है। उत्तरप्रदेश के सात जिले बुंदेलखंड़ी पहचान से जुड़े हैं। लगभग इतने ही जिले मध्यप्रदेश में बुंदेलखंडी पहचान के हैं। यदि इन्हें मिला दिया जाए तो बुंदेलखंड राज्य की बहुत समय से टल रही मांग भी साथ-साथ ही पूरी हो सकती है। इसमें झांसी (उत्तरप्रदेश) व सागर (मध्यप्रदेश) जैसे बड़े शहर होंगे। इस तरह चार नए राज्यों की स्थापना हो सकती है जिनकी अपनी सांस्कृतिक व राजनीतिक इकाई के रूप में पहचान रही है।

इनमें से तीन राज्यों की जनसंख्या भारत के औसत राज्यों की जनसंख्या से अधिक ही होने की संभावना है। ये सभी राज्य अपने में एक समग्र पहचान वाली इकाई बन सकते हैं। उत्तर भारत में अधिकांश राज्य अपेक्षाकृत कम जनसंख्या के राज्य हैं व इनकी तुलना में ये नए राज्य कुछ बड़े ही राज्य की तरह नजर आएंगे। भारतीय लोकतंत्र का राजनीतिक संतुलन बेहतर करने में भी इन चार राज्यों के गठन से सहायता मिलेगी। (सप्रेस)

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भारत डोगरा
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और अनेक सामाजिक आंदोलनों व अभियानों से जुड़े रहे हैं. इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साईंस, नई दिल्ली के फेलो तथा एन.एफ.एस.-इंडिया(अंग्रेजोऔर हिंदी) के सम्पादक हैं | जन-सरोकारकी पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान को अनेक पुरस्कारों से नवाजा भी गया है| उन्हें स्टेट्समैन अवार्ड ऑफ़ रूरल रिपोर्टिंग (तीन बार), द सचिन चौधरी अवार्डफॉर फाइनेंसियल रिपोर्टिंग, द पी.यू. सी.एल. अवार्ड फॉर ह्यूमन राइट्स जर्नलिज्म,द संस्कृति अवार्ड, फ़ूड इश्यूज पर लिखने के लिए एफ.ए.ओ.-आई.ए.ए.एस. अवार्ड, राजेंद्रमाथुर अवार्ड फॉर हिंदी जर्नलिज्म, शहीद नियोगी अवार्ड फॉर लेबर रिपोर्टिंग,सरोजनी नायडू अवार्ड, हिंदी पत्रकारिता के लिए दिया जाने वाला केंद्रीय हिंदी संस्थान का गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार समेत अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया है | भारत डोगरा जन हित ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं |

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