सुदर्शन सोलंकी

यह सोचना बेहद डरावना है कि आज का पर्यावरण विनाश, जलवायु परिवर्तन हमारी अगली पीढ़ी को बर्बाद कर सकता है। ऐसे में क्या हमें अपने युवाओं, बच्चों को भी इसकी समझ बनाने और उसे समय रहते सही करने की जरूरत नहीं बतानी चाहिए?

भारत सहित दुनियाभर के एक अरब से ज्यादा बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा मंडराने लगा है। ‘यूनिसेफ’ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत दक्षिण एशियाई देशों के ऐसे चार देशों में शामिल है जहां बच्चों को उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक खतरा है। ‘यूनिसेफ’ की 2014 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि जलवायु परिवर्तन का गंभीर प्रभाव बच्चों पर हो रहा है, किन्तु इसके बावजूद हम इसके प्रति लापरवाह ही बने रहे। परिणाम स्वरूप आज यह कुछ बच्चों को असमय काल के गाल में ले जा रहा है।

वर्ष 1972 में  मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में हुए संयुक्त राष्ट्र के पहले वैश्विक सम्मेलन में विभिन्न राष्ट्रों ने प्रकृति पर त्वरित आर्थिक विकास के नकारात्मक प्रभावों को स्वीकार कर पर्यावरण संरक्षण का वादा किया था, किन्तु अब वर्तमान में मानव जनसंख्या व इससे जुड़ा कार्बन उत्सर्जन दो-गुना हो चुका है। वन्यजीवों की आबादी करीब 70  फीसदी तक कम हो गई है और 1960 में जन्मे बच्चों की तुलना में 2022 में जन्म लेने वाले बच्चों को लगभग सात गुना अधिक ग्रीष्म-लहर (हीटवेव) और तीन गुना अधिक बाढ़ का खतरा है।

विश्व में भारत दूसरा ऐसा देश है जिसकी 36 फीसदी आबादी 18 वर्ष से कम की है, इसलिए जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इस आयु में देखने को मिलता है। ग्लोबल-वार्मिंग के दुष्प्रभाव से समुद्री तूफान, बाढ़ और हीटवेव इत्यादि बढ़ने लगे है। यदि जलवायु परिवर्तन को समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो लाखों लोग भुखमरी, जलसंकट, बाढ़ व भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं में अपनी जान गंवाएंगे। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के एक शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी बढ़ेगी और कुपोषण में वृद्धि होगी। एक अनुमान है कि इस वजह से वर्ष 2030 से 2050 के मध्य प्रति वर्ष 2.5 लाख मौतें होंगी।

वर्तमान समय में पारिस्थितिक तंत्र की बहाली विश्व की सबसे बड़ी चुनौती है। पारिस्थितिक तंत्र जो नष्ट हो चुके हैं या नष्ट होने की कगार पर हैं उनका पुनर्विकास व संरक्षण करना एक बेहतर विकल्प है। यदि हम इस दिशा में कुछ हासिल करना चाहते हैं तो इसके लिए जलवायु संबंधी गतिविधियों व प्रकृति संरक्षण में बच्चों व युवाओं को सम्मिलित करना होगा। इसके लिए उनके पाठ्यक्रमों में प्रकृति से जुड़े नवीनतम वैज्ञानिक निष्कर्ष एवं जलवायु संकट के समाधान को शामिल करने की आवश्यकता है।

आज के बच्चे किताबी ज्ञान और अच्छे मार्क्स लाने की प्रतिस्पर्धा से बाहर नहीं आ पा रहे हैं।  ज्यादातर बच्चे व युवा अपने फुरसत के समय को मोबाइल, टीवी, वीडियो गेम्स व कंप्यूटर इत्यादि चलाने में व्यतीत कर रहे हैं। वे शारीरिक व सामाजिक क्रियाकलापों से दूर होते जा रहे हैं। यही वजह है कि वे प्रकृति को भी करीब से महसूस नहीं कर पा रहे हैं।

ऐसे में उनके माता-पिता को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए कि वे बच्चों को प्रकृति से जोड़ने का कार्य करें। बच्चों से पौधारोपण करवाएं। समय-समय पर पौधों, वृक्षों के करीब ले जाकर उनको प्रकृति के महत्व व उपयोगिता के बारे में बताएं जिससे कि उनमें पौधों, वृक्षों व प्रकृति के प्रति भावनात्मक लगाव बढे। टीवी, मोबाइल व कंप्यूटर पर भी प्रकृति, पर्यावरण से संबंधित कार्यक्रम उनके साथ बैठकर देखें व उनके मन में प्रकृति संरक्षण के लिए रुचि पैदा करने का प्रयास करें।

‘यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ के कार्यों में बच्चों-किशोरों व युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित की गई है, किन्तु फिर भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना शेष है। विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अधिक होगा इसलिए यहां 18 वर्ष तक की आयु वाले समूह को जलवायु परिवर्तन संबंधी नीति निर्माण और निर्णय की प्रक्रिया में सम्मिलित करने की जरूरत है।

भौतिकी में नोबल पुरस्कार विजेता क्लाउस हैसलमैन ने कहा है कि “हम जितनी देर प्रतीक्षा करेंगे, यह जलवायु परिवर्तन उतना ही विपदकारी होता जाएगा। इसके अलावा चरम मौसम की परिस्थिति, महामारियों और वैश्विक जन-प्रवास से होने वाले नुकसान की लागत केवल समय के साथ बढ़ेगी। हम जलवायु परिवर्तन से निपटने के कार्य में और प्रतीक्षा नहीं कर सकते।”

हमारे पूर्वजों को यह अनोखा ग्रह सुव्यवस्थित और संसाधनों से लबरेज मिला था, किन्तु पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ते विकास की वजह से यह अव्यवस्थित व इस पर संसाधनों की कमी होने लगी। आज की पीढ़ी को मिली इस अस्त-व्यस्त धरती को पुनः सुव्यवस्थित व प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण कर जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए नई पीढ़ी अर्थात बच्चों व युवाओं की भूमिका को मुख्यधारा में लाना होगा अन्यथा आने वाली पीढ़ी के लिए विनाश के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं रहेगा। (सप्रेस)