राजेंद्र रवि

शहरीकरण के आधुनिक दौर में शहरी परिवहन मुनाफा कमाने और मुनाफाखोरी बढ़ाने का प्रमुख क्षेत्र है। कारों और मेट्रो के लिए बहुत महंगा भूतलीय, भूमिगत और उपरगामी परिवहन के ढांचे का विस्तार किया जा रहा है। यह सब नगरों-महानगरों को उच्च तकनीक आधारित शहर निर्माण की कवायद के तहत हो रहा है और स्मार्ट सिटी उसी श्रृखंला को गति देने का प्रयास। उन्नत तकनीक के नाम पर पर्यावरण-मित्र बहु विविधताओं वाले परिवहन के साधनों को हाशिए पर दर-किनार करते जाना लोकतंत्र के खिलाफ है।

  भारतीय समाज का शहरीकरण किया जा रहा है और सभी सरकारें एक नये किस्म के शहरवाद के पीछे दौड़ी चली जा रही है जिसमें भारतीय समाज की बहुआयामी एवं बहुस्तरीय अवधारणा के समावेश का सर्वथा अभाव साफ-साफ दिखता है। हमारे शहरों के अन्दर में कई शहर समाएं हुए है जिसकी आर्थिक,सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान एक-दूसरे से अलग और भिन्न है। हम सब एक लोकतांत्रिक समाज में रह रहे हैं और इस युग को लोकतांत्रिक युग के तौर पर जाना जाता है। इस काल खण्ड की शख्सियत यह है कि अब हर मर्ज की दवा वैश्विक कंपनियों में पैदा हो रही तकनीक से जाती है। इसके लिए देश का प्रभुत्व वर्ग भी उन्हीं शब्दावलियों का सहारा लेते हैं जिसका इस्तेमाल परिवर्तनकारी समूहों के द्वारा किया जाता रहा है। इस नीति को विस्तार देने में देश का शासक वर्ग इनकी भरपूर मदद कर रहा है। शहरीकरण के आधुनिक दौर में शहरी परिवहन इनके लिए मुनाफा कमाने और मुनाफाखोरी बढ़ाने का प्रमुख क्षेत्र है। यही वजह है कि कारों और मेट्रो के लिए बहुत महंगा भूतलीय,भूमिगत और उपरगामी परिवहन के ढांचे का विस्तार किया जा रहा है। यह सब नगरों-महानगरों को उच्च तकनीक आधारित श हर निर्माण की कवायद के तहत हो रहा है और स्मार्ट सिटी उसी श्रृखंला को गति देने का प्रयास।

दूसरी ओर, सार्वजनिक परिवहन में विशेषतौर पर मददगार बसों को गतिशील बनाने वाली बीआरटी जैसे ढांचा तोड़ा जा रहा है या हतोत्साहित किया जा रहा है। पद-पथिकों, साइकिल चालकों और साइकिल रिक्शा को पिछड़ेपन के प्रतीक के रूप में प्रचारित करके प्रतिबंधित किया जा रहा है। यदा-कदा इनके सुविधा के नाम पर बनाये जा रहे ‘फुट ओवर ब्रिज’ ‘सुरंग पथ’ जैसे ढांचा भी मोटर वाहनों की गति बनाये रखने की चाल और कंपनियों का दीर्घकालिक मुनाफा ही है। यहाँ यह प्रश्न विचारणीय है कि क्या इस हाई-टेक परिवहन-व्यवस्था का लाभ उठाने की कुव्वत शहर में रह रहे समस्त नागरिकों की है ?

स्पष्टतः नहीं। इस तरह हाई-टेक शहर गरीब, किंतु आत्मनिर्भर समाज के पैरों में जंजीरें डाल देता है। गतिशीलता की स्वतंत्रता में बाधा से लोगों के जीविकोपार्जन, शिक्षा, मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ सामाजिक सरोकार तक ‘उनकी पहुंच’ बुरी तरह प्रभावित होने लगता है। इस तरह तकनीक को अति-महत्व देने वाला समाज लोकतंत्र की बजाय अभिजात तंत्र में बदल जाता है।

तब अभिजातों के वर्चस्व वाला यह समाज ‘कानून का शासन’ आड़ लेकर बहुजन की इच्छाओं का दमन करने लगता है। लेकिन प्रजातंत्र में इसके विपरीत होता है। संविधान निर्माता बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है कि “प्रजातंत्र में नियमबद्धता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण सामाजिक उत्तरदायित्व होता है। ”गाँधी ने भी कहा था कि “मानवता के बिना विज्ञान अधूरा है।” चूंकि हमारा शहरी समाज भी बहुस्तरीय है और बहुयायामी गतिशीलता के साधन भी। इसलिए सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह विविधता को सम्मान दिए बिना संभव ही नहीं है। परन्तु उन्नत तकनीक के नाम पर कारों और मेट्रो रेल को बढ़ावा और विस्तार देना तथा पर्यावरण-मित्र बहुविविधताओं वाले परिवहन के साधनों को हाशिए पर दर-किनार करते जाना लोकतंत्र के खिलाफ है। अंध तकनीक-वाद का यशोगान समाज को दूसरे तरीके से भी हानि पहुंचता है। यह शारीरिक श्रम को मानसिक श्रम से हीनतर बताता है इससे मेहनतकश  के सम्मान घटते जाता है। यही वजह है कि वे धीरे-धीरे ‘शारीरिक ऊर्जा’ से संचालित पद-पथिकों, साइकिल चालकों, साइकिल रिक्शों और लोक-परिवहन के साधनों जैसे बसों, ऑटो-रिक्शा और टैक्सी के खिलाफ माहौल तैयार करते हैं ताकि लोग इसे त्याग कर मोटर वाहनों की ओर आकर्षित हो। उन्नत तकनीक वाली परिवहन के साधन ऊर्जा की भारी खपत करती है जिससे प्राकृतिक संसाधनों का भारी दोहन होता है और जलवायु में परिवर्तन।

हमारी सड़कें, हमारे समाज का प्रतिबिम्ब भी है। इसे गौर से देखने की जरुरत है। समाज का पूरा ताना-बाना दिख जाता है। सड़क पर पैदल जा रहा इंसान समाज का ‘गरीब और पिछड़ा’ हुआ व्यक्ति और सड़क पर साइकिल चलता हुआ व्यक्ति ‘सड़क का अनाधिकृत यात्री’। यही वजह है कि सामाजिक सरोकार रहित तकनीक इसे मदद के बजाए और किनारे सरका देता है। इसलिए यह तकनीकी सवाल नहीं है, किसी भी लोकतांत्रिक समाज में यह एक राजनैतिक मुद्दा है और इसका समाधान राजनैतिक निर्णय के माध्यम से ही हो सकता है। जिन मुल्कों ने इससे निजात पाया है उन्होंने इसके पक्ष में खड़े होकर कड़े फैसले लिए हैं। इसके लिए उदाहरणों की कमी नहीं है। कोलंबिया की राजधानी इसका अनुपम उदहारण है जिन्होंने मेट्रो रेल-आधारित परियोजना को दर-किनार कर बस आधारित बीआरटी परियोजना को लागू किया, जो मेट्रो से कई गुना सस्ती और लोगों के पहुंच के अन्दर था। शहर की सड़कों को लोकोन्मुख डिजायन के माध्यम से पदयात्रियों के लिए सुगम और निरापद पद-पथ और साइकिल चालकों के लिए साइकिल लेन। इसके पीछे यहाँ के मेयर एनरिक पेनॉलोसा का दृढ़ निश्चय था। इस निर्णय ने शहर को एक नया जीवन दिया और सड़कों पर जीवन्तता दिखने लगी।

दूसरा नजीर सियोल शहर में देखा जा सकता है। सियोल शहर में बीसवीं शताब्दी के उतरार्ध में शहर नियोजकों ने आधुनिकरण के नाम पर छान्गेचन और उसकी सहायक नदियों को ढककर चार लेन फ्लाईओवर और सड़कें बना दी थी और आसपास की गरीब आबादी को जबरन हटा दिया था और उनके स्थान पर शॉपिंग सेन्टर और मॉल बना दिए गए। जिसे आधुनिकरण और औद्योगीकरण का प्रतीक के रूप में कहा गया। लेकिन चार दश क बाद वर्ष 2000 आते-आते पूरा इलाका वायु प्रदूषण, शोर, सड़क जाम का प्रतीक बन गया। इलाके में लोग जाने से कतराने लगे और वहां का रौनक गायब हो गया।

वर्ष 2001 में सियोल में मेयर का चुनाव था। ली म्युंग बाक मेयर के उम्मीदवार थे, जिन्होंने यह वायदा किया कि यदि वे चुनाव में जीतते हैं तब वे फ्लाईओवर को तोड़ देगें और नदी की धारा को पुनर्जीवित कर देगा। ली मेयर का चुनाव भारी बहुमत से जीत गया। अब समय आया चुनाव में किये गए वायदे को पूरा करने का। औद्योगिक घराना और समाज का संपन्न तबकों ने इसका विरोध शुरू किया। इस मुहीम को लेकर ली पूरे सियोल में अभियान चलाया। फिर नगर की सरकार ने इस पर जनमत करवाया। 79.1 प्रतिशत नागरिकों ने इसके पक्ष में मतदान किया। इस काम को पूरा करने में ली कुछ भी समय बर्बाद नहीं करना चाहते थे। वे जून 2001 में मेयर बने, फरवरी 2003 में छान्गेचन नदी के पुनर्जीवन का मास्टर प्लान बनकर तैयार हो गया,जून 2003 में फ्लाईओवर गिराने का काम आरम्भ हुआ और सितम्बर में 2003 में पूरा हो गया। नदी पुनर्जीवित करने का काम जुलाई 2003 में चालू हुआ और सितम्बर 2005 में नदी में धारा आ गया।

दूसरी ओर 2003 में ही इसके समानांतर बस रैपिड ट्रांजिट लाइन का काम भी चल रहा था और यह उसी फ्लाईओवर के विकल्प के रूप में बन रहा था जिस पर हर दिन सवा लाख से ज्यादा कारें जाती थी। यह कॉरिडोर भी जून 2003 बन कर तैयार हो गया जो 14.5 किलोमीटर लम्बा था। नगर निकाय से सियोल शहर में अठारह बस लेन बनाने की घोषणा कि जिसमें नौ में डेडीकेटेड बस लेन होगी। जिससे शहर में मोटर वाहनों पर निर्भरता कम हो गई और लोगों का सफर आसान हो गया। इन सब के बन जाने से शहर का गौरव लौट गया।

आज विकसित देश के लोग “कार फ्री शहर” के लिए सड़कों पर आ रहे हैं ताकि वे सुकून भरी जिन्दगी वापस पा सके। वहां के लोग पैदल और साइकिल की ओर अग्रसर होते जा रहे हैं। हमारे पास आज भी भरपूर साइकिलें है और लोग पैदल चलना भूले नहीं हैं। क्या सामाजिक सरोकार में सक्रिय समूह इसके लिए आवाज उठायेगें और सरकार को तकनीक उन्नोमुख धारा से हटने के लिए बाध्य कर जन्नोमुख प्रगति की तरफ चलने के लिए मजबूर करेगें। ताकि जलवायु, जीवन और जीविकापार्जन का क्षरण बंद हो पाये। (सप्रेस)

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