कुमार सिद्धार्थ

‘शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट’ यानि ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (‘असर’) 2005 से एक एनजीओ ‘प्रथम’ द्वारा हर दूसरे साल प्रकाशित की जाती है। ‘असर’ एक नागरिक पहल पर होने वाला घरेलू सर्वेक्षण है जो बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति, उनके पढ़ने और अंकगणित कौशल का राष्ट्रीय स्तर पर अनुमान लगाता है। ताजा, 2024 की ‘असर’ रिपोर्ट में बच्चों की शैक्षणिक स्थिति में कुछ सुधार दिखाई दिया है।

सरकारी स्कूलों को लेकर अभिभावकों के मन में यह सवाल बना रहता है कि क्या वे उनके बच्चों को बेहतर भविष्य दे सकते हैं? हाल में जारी ‘सर 2024’ रिपोर्ट Annual Status of Education Report ने कुछ सकारात्मक संकेत दिए हैं जिनसे देश की प्राथमिक शिक्षा के वर्तमान हालात और चुनौतियों को समझने में मदद मिलती है। रिपोर्ट देश में पूर्व-प्राथमिक व प्राथमिक कक्षाओं में बच्‍चों की एक बेहतर तस्‍वीर प्रस्‍तुत करती है। यह बताती है कि कैसे देश के सुदूर इलाकों में शिक्षा की रोशनी पहुँच रही है और पहले की तुलना में अधिक बच्चे स्कूलों और आंगनवाड़ी केन्द्रों से जुड़ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के बाद अब सरकारी स्कूलों में नामांकन दर फिर से अपने पूर्व के स्तर पर लौट आई है।

इस वर्ष ‘असर’ के सर्वेक्षण में देश के 605 ग्रामीण जिलों के लगभग अठारह हजार गाँवों के साढे छ: लाख बच्चों को शामिल किया गया था। रिपोर्ट बताती है कि कक्षा 1 से 3 तक के बच्चों की पढ़ने और गणित की क्षमता में वर्ष 2022 की तुलना में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। 3 से 6 वर्ष के बच्चों को लेकर महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आए हैं। पहला, 2018 से 2024 के बीच पूर्व-प्राथमिक स्‍कूलों के नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। दूसरा, वर्ष 2024 तक 3 वर्ष की आयु के 77.4 फीसदी ग्रामीण बच्चे किसी-न-किसी प्रारंभिक शिक्षा कार्यक्रम में नामांकित हो सके हैं। खास बात यह है कि यह प्रगति ग्रामीण इलाकों में भी देखी गई है।

रिपोर्ट इस बात को भी रेखांकित कर रही है कि कोरोना महामारी से पहले, छह से चौदह वर्ष के बच्चों का सरकारी स्कूलों में नामांकन लगातार बढ़ रहा था। वर्ष 2006 से 2018 के बीच यह आंकड़ा 18.7 फीसदी से बढ़कर 30.8 फीसदी तक पहुंच गया था। फिर कुछ वर्षों तक यह स्थिर रहा, लेकिन कोविड के दौरान, आर्थिक तंगी के चलते कई अभिभावकों ने अपने बच्चों को निजी स्कूलों से निकालकर सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाया। इसका असर यह हुआ कि वर्ष 2018 में 65.6 फीसदी रही सरकारी स्कूलों की नामांकन दर 2022 में बढ़कर 72.9 फीसदी हो गई, परंतु अब यह आंकड़ा फिर घटकर 66.8 फीसदी पर आ गया है।

वहीं, कक्षा 1 में कम उम्र के बच्चों का नामांकन घट रहा है। 2018 में यह आंकड़ा 25.6 फीसदी था, जो 2022 में 22.7 फीसदी और 2024 में घटकर 16.7 फीसदी रह गया है। यह दर्शाता है कि कम उम्र में स्कूल में प्रवेश करने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है। इस प्रवृत्ति का संभावित कारण यह हो सकता है कि अब अधिक बच्चे आंगनवाड़ी केन्द्रों या अन्य पूर्व-प्राथमिक संस्थानों में दाखिला ले रहे हैं, जिससे वे औपचारिक स्कूली शिक्षा में थोड़ी बड़ी उम्र में प्रवेश कर रहे हैं।

गौरतलब है कि इस बार ‘असर’ 2024 ने डिजिटल साक्षरता जैसे महत्वपूर्ण पहलू को भी केन्द्र में रखा है। रिपोर्ट के मुताबिक 15-16 वर्ष के 90 फीसदी ग्रामीण किशोरों के पास स्मार्टफोन हैं, लेकिन क्या वे इसका सही उपयोग कर पा रहे हैं? जब बच्चों को ऑनलाइन जानकारी खोजने या अलार्म सेट करने जैसे छोटे-मोटे कार्य दिए गए, तो पाया गया कि डिजिटल तकनीक के उपयोग में लड़के, लड़कियों की तुलना में थोड़े आगे हैं। हालांकि, कुछ राज्यों में लड़कियाँ भी इस अंतर को तेजी से पाट रही हैं और डिजिटल कौशल में बराबरी पर आ रही हैं।

शिक्षा में आए इस सकारात्मक बदलाव के मूल में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह नीति इस बात पर जोर देती है कि बच्चे के शुरुआती तीन वर्ष, जो आमतौर पर आंगनवाड़ी, नर्सरी या प्री-प्राइमरी स्तर पर होते हैं, उसकी सीखने की नींव को मजबूत करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। इस चरण में अगर सही मार्गदर्शन और संसाधन उपलब्ध कराए जाएं, तो आगे की शिक्षा सुगम हो सकती है।

इसी दृष्टिकोण को साकार करने के लिए केन्द्र सरकार ने ‘निपुण भारत मिशन’ की शुरुआत की थी। यह मिशन शिक्षा के शुरुआती वर्षों में बच्चों को मजबूत नींव देने पर केन्द्रित है, ताकि वे पढ़ने, लिखने और गणितीय समझ विकसित करने में सक्षम बन सकें। इसका लक्ष्य है कि वर्ष 2026-27 तक कक्षा 3 तक के सभी बच्चे बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक दक्षताएं हासिल कर लें। वास्‍तव में ‘निपुण भारत मिशन’ शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव लाने की कोशिश कर रहा है, ताकि हर बच्चा न केवल स्कूल में नामांकित हो,  बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सके और भविष्य में आत्मनिर्भर बन सके।

अब तक के शिक्षा सफर में आंगनवाड़ी केन्द्र बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा, पोषण और संपूर्ण विकास के लिए मूलभूत आधार तैयार करते हैं। ‘असर 2024’ रिपोर्ट बताती है कि बड़ी संख्या में बच्चे आंगनवाड़ी केन्द्रों में नामांकित हो रहे हैं, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में अभी भी सुधार की आवश्यकता बनी हुई है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की भूमिका को केवल पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित न रखते हुए, अब उन्हें बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा में सक्रिय भागीदारी के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह प्रशिक्षण उन्हें बच्चों के संज्ञानात्मक, भाषागत, मानसिक और शारीरिक विकास को अधिक प्रभावी बनाने में मदद कर रहा है।

‘असर’ की ताजा रिपोर्ट के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि देश में प्रारंभिक शिक्षा व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव होते दिख रहे हैं, लेकिन अभी भी कई क्षेत्रों में व्‍यापक सुधार की आवश्यकता है। अगर शिक्षक बेहतर तरीके से पढ़ाएंगे, तो बच्चे भी बेहतर सीख पाएंगे। शिक्षण प्रक्रिया को रोचक बनाने के लिए कविता, कहानियों, गतिविधियों और प्रयोगों को शामिल किया जाए। दूसरा, बड़ा कदम स्कूलों में जरूरी शैक्षिक संसाधन उपलब्ध कराना है जिसमें पर्याप्त पुस्तकें, प्रयोगशाला, डिजिटल साधन और स्मार्ट क्लास जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

एक जरूरी बात है, स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था का लगातार आंकलन और निगरानी। यह देखना चाहिए कि बच्चे जो पढ़ रहे हैं, वह सही तरीके से समझ भी रहे हैं या नहीं। अगर किसी क्षेत्र में सुधार की जरूरत है, तो समय रहते उस पर ध्यान दिया जाए। अभिभावकों और समुदाय की भागीदारी को भी सशक्‍त करने की दिशा में प्रयास हों। अगर अभिभावक स्कूलों से जुड़ेंगे, शिक्षकों से संवाद करेंगे और पढ़ाई में बच्चों को सहयोग देंगे, तो इसका असर स्कूली शिक्षा पर भी पड़ेगा। ‘स्कूल प्रबंधन समितियों’ (एसएमसी) को भी अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी, ताकि माता-पिता को भरोसा हो कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल रही है। एक अहम पहलू है, आंगनवाड़ी और प्राथमिक स्कूलों के बीच बेहतर तालमेल, ताकि छोटे बच्चों को शुरू से ही अच्छा सीखने का माहौल मिले। ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को सुदृढ़ करने के लिए अभी भी बहुआयामी प्रयासों की जरूरत है। शिक्षकों के प्रशिक्षण, शिक्षण सामग्री की प्रभावशीलता, परिवेश में सुधार और समुदाय की सक्रिय भागीदारी जैसे पहलुओं पर निरंतर कार्य किए जाने की आवश्यकता है। साथ ही, बुनियादी ढांचे को मजबूत करना, डिजिटल संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाना और बच्चों की सीखने की जरूरतों के अनुरूप शिक्षण पद्धतियों को विकसित करना भी जरूरी है। जब ये सभी पहलू एक साथ क्रियान्वित होंगे, तभी हर बच्चा समान अवसरों के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकेगा और एक उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ पाएगा। (सप्रेस)