चंबल घाटी की दस्यु समस्या के समाधान के लिए जो काम सरकारें सदियों से नहीं कर पाई वह कार्य सर्वोदय कार्यकर्ता करने में सफल रहे। मैत्री से ही मिटे बैर को बाबा विनोबा तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सर्वोदय के कार्यकर्ताओं ने अपनी लगन , निष्ठा एवं परिश्रम से सत्य साबित कर दिया । यह अहिंसा की ताकत है। इस दृष्टि से 1972 में बागियों के आत्मसमर्पण के स्वर्ण जयंती वर्ष में जौरा, मुरैना, मध्य प्रदेश में 14 से 16 अप्रैल,2022 का आयोजन ऐतिहासिक और सामयिक महत्व है। इस बागी आत्मसमर्पण के इतिहास की अंतिम किश्त।
डाकू आत्म समर्पण का इतिहास :अंतिम किश्त
1960 और 1972 के घटनाक्रम पर अगर दृष्टि डालें तो पाते हैं कि सुप्त पड़े मानवीय तत्वों को जागृत करने का प्रयास दोनों ही अवसरों पर हुआ , लेकिन 1972 का कार्य कहीं अधिक योजनाबद्ध एवं सुविचारित रहा। 1960 में प्रशासन तटस्थ दृष्टा बना रहा, लेकिन1972 में जयप्रकाश नारायण ने सबसे पहले प्रशासन को विश्वास में लिया। जनता, सामाजिक कार्यकर्ताओं और डाकुओं के संबंधी जनों का सहयोग प्राप्त कर कार्य को अंजाम तक पहुंचा।
27 सितंबर, 1970 में जौरा, मुरैना मध्य प्रदेश में महात्मा गांधी सेवा आश्रम की स्थापना की गई थी । डॉ. एस एन सुब्बराव इसके अध्यक्ष थे । 14 से 16 अप्रैल के आत्मसमर्पण में यही आश्रम रंगमंच बना।
श्रीमती इंदिरा गांधी चंबल घाटी की दस्यु समस्या से 1959 से परिचित थी । बांग्लादेश मुक्ति के बाद उनकी लोकप्रियता शिखर पर थी । 1972 के चुनाव में उनके दल को भारी बहुमत मिला । उनका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ था और वे सामूहिक समर्पण के प्रयोग के प्रति उत्सुक थी । मध्यप्रदेश में प्रकाश चंद्र सेठी नए मुख्यमंत्री के रूप में आए। केंद्रीय गृह मंत्रालय की पहल पर दिल्ली में मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश और राजस्थान के पुलिस महानिदेशकों की एक बैठक हुई, जिसमें जयप्रकाश नारायण भी उपस्थित थे। इस बैठक में आत्मसमर्पण के सभी पहलुओं पर विचार करके संभावित दंड प्रक्रिया की एक रूपरेखा तय की गई। 2 अप्रैल 1972 को दिल्ली में तीनों राज्य के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक हुई । इसमें आत्मसमर्पण के समय तक डाकू उन्मूलन अभियान को स्थगित करने तथा आत्मसमर्पण को संभव बनाने के लिए प्रभावित इलाकों को शांति क्षेत्र घोषित करने का निर्णय लिया गया । शांति मिशन को पुलिस ने सफेद रंग की 4 जीप उपलब्ध करवाएं जिससे वे घने जंगलों में जाकर दस्यु दलों से संपर्क कर सके।
10 अप्रैल , 1972 को श्रीमती इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण की भेंट हुई, जिसमें प्रकाश चंद्र सेठी भी उपस्थित थे। उस समय तक लगभग 250 डाकू समर्पण का वचन दे चुके थे । उसी दिन शाम जयप्रकाश नारायण ने अपना पहला प्रेस वक्तव्य जारी किया, जिसमें 6 महीने में चंबल घाटी क्षेत्र में शांति मिशन के कार्य का विवरण था । 11 अप्रैल को जयप्रकाश नारायण अपनी पत्नी प्रभावती देवी के साथ ग्वालियर के लिए निकल पड़े। वे औपचारिक समर्पण से पूर्व डाकू सरदारों से स्वयं भेंट कर आश्वस्त होना चाहते थे । इस कार्य के लिए जौरा से 15 किलोमीटर दूर पगारा स्थान को चुना गया , जहां डाकू दलों को समर्पण के से पूर्व एकत्र होना था।
10 अप्रैल के वक्तव्य में जयप्रकाश नारायण ने कहा था इस मामले में झूठी आशाएं न पैदा हो , इस दृष्टि से मैं जोर देकर कहना चाहता हूं कि इस क्षेत्र की डाकू समस्या जिसका अपना विशिष्ट इतिहास और स्वरूप रहा है उसको कुछ सौ डाकुओं के आत्मसमर्पण से हल होने वाला नहीं है। उनके आत्मसमर्पण से एक प्रक्रिया का श्रीगणेश होगा, समस्या समाप्त नहीं होगी। यह सिर्फ कानून की समस्या नहीं है , बल्कि एक मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक समस्या है । दिल्ली में मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशकों की बैठक में जिन मुद्दों पर सहमति बनी थी, उसकी जानकारी एक सरकारी प्रेस नोट में सार्वजनिक रूप से दे दी गई।
आत्मसमर्पण का सार्वजनिक आयोजन महात्मा गांधी आश्रम जौरा में हुआ। इसमें मुख्यमंत्री एवं पुलिस महानिरीक्षक दोनों उपस्थित थे। 14 अप्रैल को मुख्य समारोह से पूर्व पगाड़ा में ही डाक बंगले के सामने एक तंबू में डाकुओं ने जयप्रकाश नारायण के सामने औपचारिक आत्मसमर्पण किया। सर्वोदय महिलाओं ने उन्हें राखियां बांधी । जयप्रकाश नारायण ने उन्हें देशव्यापी सर्वोदय परिवार के सदस्य बनने की बधाई दी और आश्वस्त किया कि किसी को भी मृत्युदंड नहीं होगा और अगर होगा तो उनकी जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देंगे।
महात्मा गांधी सेवा आश्रम जौरा में 14 अप्रैल , 1972 को समर्पण का समारोह विशाल जनसमूह की उपस्थिति में हुआ । समारोह का आरंभ मोहर सिंह गिरोह के नारायण पंडित के वक्तव्य से हुआ। उन्होंने कहा हम लोगों के जीवन का आज सुनहरा दिन है। भारत की परंपरा, बापू की सीख और विनोबा का असर हमारे जीवन पर पड़ा । आज हम शांति का मार्ग अपनाकर अपना नया जीवन शुरु कर रहे हैं । सबसे पहले मोहर सिंह और खरु सिंह मंच पर आए उन्होंने जनता का अभिवादन किया और अपना शस्त्र महात्मा गांधी की मूर्ति के चरणों में रख दिए । जयप्रकाश नारायण ने मोहर सिंह को गले लगाया। प्रभावती देवी ने उन्हें तुलसीकृत रामायण और विनोबा का गीता प्रवचन दिया। 82 डाकुओं ने हथियार गांधी जी के चरणों में समर्पित किए।
मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी ने अपने भाषण में जयप्रकाश नारायण के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि आप ने उन लोगों को जिनका निशाना अचूक है, आज नई दिशा दी और उनको हिंसा के जीवन से अहिंसा का जीवन जीने और एक नागरिक जीवन व्यतीत करने का अवसर दिया । उन्होंने कहा प्रशासन का कोई भी अधिकारी ऐसा नहीं समझे कि हम उनको हीरो बनाना चाहते हैं। हम उन्हें मनुष्य बनाना चाहते हैं। अपनी छाती से लगाकर हम उनको अपना भाई बनाना चाहते हैं।
16 अप्रैल को गांधी सेवा आश्रम में दूसरा आयोजन हुआ। उसमें माधो सिंह, मखन सिंह, जगजीत सिंह, रूप सिंह, हरविलास गिरोह के 81 बागियों ने आत्मसमर्पण किया। डाकुओं की ओर से माधो सिंह ने कहा कि बाबा विनोबा और जयप्रकाश नारायण के आशीर्वाद से हम नई जिंदगी शुरु कर रहे हैं। हमसे बहुत गलतियां हुई है, इसके लिए हमें दिल से पश्चाताप हैं। हमारी वजह से जिन्हें भी दुख या तकलीफ हुई है उनसे हम माफी मांगते हैं। भगवान से हमारी विनती है वह हमें सच्ची राह पर चलने की ताकत दें और इस जीवन में समाज के लायक बनाए।
बुंदेलखंड के क्षेत्र के लिए मुख्यमंत्री 15 मई तक प्रतीक्षा करने के लिए तैयार हो गए। बुंदेलखंड के 5 जिले टीकमगढ़, पन्ना, छतरपुर, दमोह और सागर में पुलिस कार्यवाही स्थगित कर दी गई। चतुर्भुज ठाकुर, तहसीलदार सिंह और लोकमान के नेतृत्व में लोकेंद्र भाई और द्वारिका प्रसाद तिवारी सर्वोदय कार्यकर्ताओं की टोलियां इन डाकुओं से संपर्क के लिए निकल पड़ी। 30 अप्रैल तक अन्य बागियों से संपर्क के लिए महावीर सिंह , हेमदेव शर्मा, चरण सिंह, लोकमन और तहसीलदार सिंह की टीम बनाई गई। जेल में बागियों से संपर्क वालों में गुरु शरण, राज कुमार चौबे और श्रीमती चंद्रकला सहाय की टीम बनी। मुकदमे में बागियों से सहायता के लिए ग्वालियर के शीर्षस्थ वकील जेपी गुप्ता, जे एम आनंद, बाबूलाल गुप्ता और स्वामी शरण की टीम बनाई गई । बागी परिवारों के पुनर्वास के लिए एस एन सुब्बराव के नेतृत्व में एक पृथक समिति का गठन किया गया । जय प्रकाश नारायण 10 मई को बुंदेलखंड पहुंचे। छतरपुर से 50 किलोमीटर दूर यहां मौली डाक बंगले में ठहरे और डाकू सरदारों से भेंट की और 31 मई को समर्पण की तिथि तय की गई। 31 मई को जयप्रकाश नारायण और मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी छतरपुर पहुंचे और 65 बागियों ने अपना शास्त्र समर्पित किए।
चंबल घाटी और बुंदेलखंड में बागियों के आत्मसमर्पण का कार्य संपन्न होने पर जयप्रकाश नारायण ने इस क्षेत्र की जनता के नाम एक मर्मस्पर्शी अपील जारी की । उन्होंने क्षेत्र की जनता से अपना हथियार सरकार को सौंपने का अनुरोध किया । उन्होंने आशा व्यक्त की कि बागी भाइयों ने गांधी जी की चरणों में बंदूक डाली अब क्षेत्र की जनता इसी भावना से इस कार्य को आगे बढ़ाएगी ।
1972 से 1976 के बीच कुल 654 डाकुओं ने आत्मसमर्पण किया। आपसी सद्भाव, विश्वास और क्षेत्रीय शांति को बढ़ाएं बनाए रखने के लिए सर्वोदय कार्यकर्ताओं ने क्षेत्र में पदयात्रा तथा संपर्क के कार्यक्रम बनाएं। श्रीमती प्रभावती देवी, सरला बहन , दादाभाई नायक तथा कृष्णानंद आदि की यात्राएं उल्लेखनीय रही। विनोबा के सुझाव पर 2 मई से 15 अगस्त, 1973 तक निर्मला देशपांडे के नेतृत्व में महिला लोकयात्रा का आयोजन किया गया । इस अभियान में महिलाओं की टोली चार जिलों के 104 गांव में गई । कई महिला संगठनों ने इसमें भाग लिया।1972 में चंबल और बुंदेलखंड के लगभग सभी सूचीबद्ध डाकुओं ने आत्मसमर्पण कर दिया। पहली बार चंबल के वासियों ने तनाव मुक्त वातावरण में सांस ली।
आत्मसमर्पण के 2 वर्ष बाद एसएन सुब्बराव ने एक भेंट में चंबल क्षेत्र की शांति पर संतोष व्यक्त किया। साथ ही उन्होंने सचेत किया कि शांति बने रहने की पूरी संभावना है पर बुद्धिमानी से काम नहीं लिया गया तो शांति भंग होने में देर नहीं लगेगी। 1976 में राजस्थान और उत्तर प्रदेश सरकारों ने स्थानीय गिरोह के आत्मसमर्पण के लिए में सर्वोदय कार्यकर्ताओं का सहयोग लिया । तालाब शाही में मुख्यमंत्री हरदेव जोशी के सामने 12 डाकुओं ने आत्मसमर्पण किया। इस दल का सरगना खरगा और महिला डकैत कपूरी थे। उत्तर प्रदेश में सक्रिय डाकू दलों के समर्पण का प्रयास करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सर्वोदय कार्यकर्ताओं को वही सहायता प्रदान की और आश्वासन दिया जो 4 वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश सरकार ने 1972 में दिए थे ।
एस एन सुब्बराव के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने प्रभावित आगरा जिले के दुर्गम बीहड़ों में हृदय परिवर्तन का संदेश लेकर फैल गए। मध्य प्रदेश सरकार ने मुंगावली के नवजीवन शिविर में सजा काट रहे मोहर सिंह, माधोसिंह, कल्याण सिंह, नत्थू सिंह, जगजीत सिंह को पैरोल पर छोड़ दिया, जिससे वे अभियान में सहयोग कर सकें। इस कार्य में तहसीलदार सिंह, लोकमन,डरे लाल ने भी उत्साहपूर्वक साथ दिया। 1972 में मध्यप्रदेश में संगठित डाकू समस्या लगभग समाप्त हो चुकी थी । उत्तर प्रदेश और राजस्थान में स्थानीय गिरोह ही सक्रिय थे, जो संख्या और शक्ति के लिहाज से बहुत बड़े नहीं थे। आत्मसमर्पण के लिए आगरा जिला के बाह तहसील के प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल बटेश्वर को चुना गया । जमुना के किनारे बसे इस स्थान पर कार्तिक पूर्णिमा को प्रसिद्ध पशु मेला लगता है ।
3 जून, 1976 को आत्मसमर्पण संपन्न हुआ। इसमें केंद्रीय पेट्रोलियम और रसायन मंत्री प्रकाश चंद्र सेठी, जो 1972 के आत्मसमर्पण के समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, मुख्य अतिथि थे । इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी एवं एस एन सुब्बराव मंच पर उपस्थित थे । इस समारोह में 62 डाकुओं ने आत्मसमर्पण किया । जो लाल सिंह , जनक सिंह , भोगी पंडित , लाखन सिंह, उत्तर सिंह और नत्थी सिंह आदि गिरोह से संबंधित थे। बटेश्वर के समर्पण के समय जयप्रकाश नारायण और उनके साथियों की खुली आलोचना की गई , जिसका उपस्थित जनसमूह और डाकुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। 1972 के आत्मसमर्पण की विशेषता यह थी कि चंबल घाटी के विकास पर गंभीरतापूर्वक ध्यान दिया गया था।
स्पष्ट है कि चंबल घाटी की दस्यु समस्या के समाधान के लिए पिछले 9 शताब्दी में सरकारों द्वारा की गई कोशिश कभी कामयाब नहीं हुई । महात्मा गांधी ने द्वेष धर्म के सामने प्रेम धर्म तथा तोप बल के सामने आत्मबल को खड़ा किया था। जो काम सरकारें सदियों से नहीं कर पाई वह कार्य सर्वोदय कार्यकर्ता करने में सफल रहे। मैत्री से ही मिटे बैर को बाबा विनोबा तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सर्वोदय के कार्यकर्ताओं ने अपनी लगन, निष्ठा एवं परिश्रम से सत्य साबित कर दिया । यह अहिंसा की ताकत है। आज जब दुनिया युद्ध, हिंसा के ताप में झुलस रही है, तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडरा रहा है, अणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हिंसा को रोकने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं , इस स्थिति में गांधी का सर्वोदय विचार पूरी मानव जाति के लिए तारणहार हो सकता है । इस दृष्टि से 1972 में बागियों के आत्मसमर्पण के स्वर्ण जयंती वर्ष में महात्मा गांधी सेवा आश्रम जौरा , मुरैना , मध्य प्रदेश में 14 से 16 अप्रैल, 2022 का आयोजन ऐतिहासिक और सामयिक महत्व है।
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