प्रो. आर के जैन “अरिजीत”

मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में 12 फ़रवरी की सुबह जब सूरज अपनी स्वर्णिम किरणें बिखेरता है, तब नर्मदा के पावन तट पर एक ऐतिहासिक आयोजन सजीव हो उठता है—सर्वोदय मेला। यह मेला केवल एक वार्षिक उत्सव नहीं, बल्कि महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी और महादेव देसाई की स्मृति को संजोने और उनके गांधीवादी विचारों को पुनर्जीवित करने का एक सशक्त मंच भी है। सत्य, अहिंसा और सर्वोदय के मूल सिद्धांतों को आत्मसात करते हुए, यह आयोजन बापू के अमर विचारों से पुनः जोड़ता है।

बड़वानी जिला प्रशासन एवं नगर पालिका परिषद द्वारा महात्मा गांधी के श्राद्ध दिवस 12 फरवरी पर 60वें सर्वोदय मेले का भव्य एवं प्रेरणादायी आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस, बड़वानी की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के बैनर तले विशाल जनजागरण रैली निकाली गई, जो राष्ट्रभक्ति और जनचेतना का अद्वितीय उदाहरण बनी। कार्यक्रम अधिकारी डॉ. रणजीत सिंह मेवाड़े एवं डॉ. रंजना चौहान के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने जोशीले नारों और गगनभेदी जयघोषों से नगर में नवचेतना का संचार कर दिया। हर गली, हर चौक गांधीजी के सत्य, अहिंसा और आत्मनिर्भरता के संदेश से गुंजायमान हो उठा। यह केवल एक रैली नहीं थी, बल्कि विचारों की क्रांति थी—एक ऐसी चेतना की ज्वाला, जिसने जन-जन को राष्ट्रसेवा के पावन संकल्प से जोड़ दिया। 

रैली गांधी स्मारक स्थल, कुकरा बसाहट पर पहुँचकर श्रद्धांजलि सभा में परिवर्तित हो गई। जिला प्रशासन के अधिकारी अपर कलेक्टर के.के. मालवीय, तहसीलदार जगदीश कुमार वर्मा, सीएमओ नगरपालिका सोनाली शर्मा एवं नगर के गणमान्य नागरिक एकत्रित हुए और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को नमन कर श्रद्धासुमन अर्पित किए। मौन धारण कर बापू की पुण्य स्मृति को सादर श्रद्धांजलि दी गई और उनके सिद्धांतों को आत्मसात करने का संकल्प लिया गया।

तत्पश्चात  इसके पश्चात, कस्तूरबा आश्रम, निवाली की टीम एवं केंद्रीय विद्यालय के विद्यार्थियों ने भावपूर्ण स्वरों में गांधीजी के प्रिय भजनों— वैष्णव जन तो तेने कहिए, रघुपति राघव राजा राम  आदि की मधुर प्रस्तुतियां दीं। भजनों की दिव्य ध्वनि मानो आत्मशुद्धि और राष्ट्रसेवा के पावन संकल्प को जागृत कर रही थी, जिससे उपस्थित जनसमूह श्रद्धा और प्रेरणा के सागर में डूब गया। इस अवसर पर रवींद्र जैन, ऋतिका जैन, अरिजीत जैन, डॉ. दिनेश पाटीदार, श्री जगदीश गुजराती, प्रो. आर.के. जैन, आशा इंस्टिट्यूट के विद्यार्थी, आशाग्राम स्टाफ तथा गणमान्य नागरिकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम अधिकारी चंद्रशेखर चटर्जी द्वारा किया गया, जबकि रासेयो जिला संगठक डॉ. आर.एस. मुजाल्दा ने उपस्थित जनों के प्रति आभार व्यक्त किया।

गांधीजी के आदर्शों को आत्मसात करें, समाज में स्वतः न्याय, शांति और सद्भाव की स्थापना होगी

सभा में वक्ताओं ने महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों को केवल स्मरण करने का नहीं, बल्कि जीवन में आत्मसात करने का आह्वान किया। यह सभा केवल श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर नहीं थी, बल्कि यह एक वैचारिक पुनर्जागरण का मंच बनी। नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती अश्विनी निक्कू चौहान ने अपने संबोधन में कहा कि स्वच्छता केवल कर्म नहीं, बल्कि कर्तव्य है। यह बाहरी स्वच्छता के साथ-साथ आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक है। उन्होंने नागरिकों का आह्वान करते हुए कहा, स्वच्छ भारत ही गांधीजी के सपनों का भारत है—आइए, इसे हम सब मिलकर साकार करें। जिला न्यायाधीश, श्रीमती सीता कन्नौज ने गांधीजी के चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा, न्याय केवल कानून से नहीं, बल्कि सच्चाई और नैतिकता से स्थापित होता है। यदि हम गांधीजी के आदर्शों को आत्मसात करें, तो समाज में स्वतः न्याय, शांति और सद्भाव की स्थापना हो जाएगी। 

शासकीय महाविद्यालय की प्राचार्य  डॉ. वीणा सत्य ने कहा कि गांधीजी केवल एक नाम नहीं, बल्कि विचारों की क्रांति हैं। यदि हम उनके सिद्धांतों को अपनाएँ, तो पहले स्वयं को और फिर समाज व राष्ट्र की दिशा को सही मार्ग पर ला सकते हैं। विधायक श्री राजन मंडलोई ने गांधीजी के अडिग संकल्प को नमन करते हुए कहा, जेल, लाठियाँ और अपमान भी उनकी इच्छाशक्ति को नहीं तोड़ सके। सत्य और अहिंसा उनके सबसे बड़े अस्त्र बने, जिनकी ताकत से उन्होंने सत्ता की नींव तक हिला दी। उन्होंने कहा, स्वतंत्रता केवल संघर्ष से नहीं, बल्कि अटूट विश्वास और त्याग से प्राप्त होती है। यह संकल्प हमें सिखाता है कि जब इरादे मजबूत हों, तो कोई भी सत्ता झुक सकती है। 

जिला केंद्रीय जेल की अधीक्षिका, सुश्री शैफाली तिवारी ने अपने प्रभावशाली संबोधन में सत्य, अहिंसा और आत्मचिंतन के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने गांधीजी के अमर वचन “अपराध से घृणा करो, अपराधी से नहीं” को उद्धृत करते हुए कहा कि सच्चा परिवर्तन नकल से नहीं, बल्कि आत्मस्फूर्ति से आता है। केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि अंतरात्मा की पुकार पर चलना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने ‘सत्य के प्रयोग’ और ‘स्वराज’ जैसे ग्रंथों के अध्ययन की प्रेरणा देते हुए कहा कि गांधीजी का जीवन केवल विचार नहीं, बल्कि एक जीवंत संदेश है। 

कस्तूरबा वनवासी कल्याण आश्रम की पुष्पा सिन्हा ने कस्तूरबा गांधी के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा,  कस्तूरबा केवल उनकी संगिनी नहीं, बल्कि उनके संघर्ष की आत्मा थीं। यदि गांधीजी विचार थे, तो कस्तूरबा उनकी जीवंत अभिव्यक्ति थीं। उन्होंने महादेवभाई देसाई के बारे में कहा कि वे गांधीजी की छाया नहीं, बल्कि उनके विचारों का विस्तार थे। इस श्रद्धांजलि सभा में वक्ताओं के उद्गार केवल गांधीजी को नमन करने तक सीमित नहीं थे, बल्कि यह एक विचार-क्रांति का आह्वान था—एक संकल्प, जो हर मन में जागा और हर हृदय में गूँज उठा! 

दिल्ली के राजघाट के बाद गांधीजी का दूसरा समाधि स्थल है बड़वानी

उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी का मध्यप्रदेश से गहरा लगाव था। दिल्ली के बाद, उनकी, कस्तूरबा गांधी सहित उनके निजी सचिव एवं स्वतंत्रता सेनानी महादेवभाई देसाई की अस्थियां नर्मदा के पवित्र तट पर लाई गई थीं। दिल्ली के राजघाट के बाद गांधीजी का दूसरा समाधि स्थल यहीं स्थित है। जनवरी 1965 में गांधीवादी काशीनाथ त्रिवेदी ने इनकी अस्थियां यहाँ लाकर नर्मदा किनारे राजघाट की नींव रखी थी, जो 12 फरवरी 1965 को बनकर तैयार हुआ। हालांकि, 27 जुलाई 2017 को सरदार सरोवर बाँध के डूब क्षेत्र में आने के कारण, इन अस्थियों को कुकरा बसाहट में पुनर्स्थापित किया गया। बापू की अस्थियां देश के विभिन्न स्थानों पर संचित हैं, जबकि बड़वानी का राजघाट एकमात्र स्थान है जहाँ महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी और महादेव भाई देसाई की अस्थियां एक साथ संचित हैं। सर्वोदय मेला केवल एक वार्षिक उत्सव नहीं, बल्कि गांधीवादी जीवन-दर्शन का एक जीवंत मंच है। यह सत्य, अहिंसा, सर्वोदय, स्वराज और ग्राम स्वराज के मूल्यों को सशक्त बनाता है।

मेले का शुभारंभ सर्वधर्म प्रार्थना से होता है, जो धार्मिक सद्भाव और विश्व शांति का संदेश देती है। इसमें गांधीवादी विचारकों, समाजसेवियों और विद्वानों के बीच गहन विचार-विमर्श होता है, जहाँ उनके सिद्धांतों पर व्यापक चर्चा की जाती है। यह आयोजन केवल अतीत का स्मरण नहीं, बल्कि भविष्य के निर्माण की प्रेरणा भी है—एक ऐसा मंच, जहाँ गांधीजी के विचारों की ज्योति सतत प्रज्वलित रहती है और समाज को नैतिकता, सेवा और सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प प्रदान करती है।

बड़वानी तहसील में 12 फ़रवरी को आयोजित होने वाला यह मेला न केवल स्थानीय गौरव का प्रतीक है, बल्कि गांधीवादी विचारधारा के राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार का एक प्रमुख मंच भी है। इस दिन को स्थानीय शासकीय अवकाश घोषित किया जाता है, जिससे अधिक से अधिक लोग इस आयोजन में भाग लेकर महात्मा गांधी के सिद्धांतों को आत्मसात कर सकें। यह मेला शोधार्थियों, समाजसेवियों और गांधी अनुयायियों के लिए एक अनूठा अवसर प्रदान करता है, जहाँ वे गांधीजी के विचारों को आधुनिक संदर्भ में समझने और अपनाने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। यह केवल एक वार्षिक आयोजन नहीं, बल्कि सत्य, अहिंसा और आत्मनिर्भरता के मूल्यों को पुनर्जीवित करने का संकल्प है।