गांधी, विनोबा व जयप्रकाश के समर्थकों, प्रबुद्धजनों, छात्रों का राजघाट स्थित परिसर में जमावड़ा शुरू
वाराणसी, 29 जून । वाराणसी स्थित सर्वोदय आंदोलन की शीर्षस्थ संस्था सर्व सेवा संघ के भवनों के जमींदोज करने की कार्रवाई पर संघ के अध्यक्ष चंदन पाल द्वारा शांतिपूर्ण विरोध करने के आव्हान के बाद देश भर से गांधी, विनोबा व जयप्रकाश के समर्थक, वरिष्ठ प्रबुद्धजन राजघाट स्थित परिसर में जुटना शुरू हो गये है।
वरिष्ठ गांधीजनों एवं छात्रों की बड़ी संख्या में आने की उम्मीद
सर्व सेवा संघ से जुड़े प्रेम प्रकाश ने सप्रेस प्रतिनिधि को जानकारी देते हुए बताया कि जाने-माने समाजशास्त्री प्रो.आनंद कुमार, काशी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर महेश विक्रम, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, रघु ठाकुर, समाजवादी चिंतक डा. सुनीलम, डा. सुगन बरंठ, केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के सचिव संजय सिंह, जल पुरुष राजेंद्र सिंह, महादेव विद्रोही, विनोद रंजन, कांग्रेस से विधायक अजय राय, समाजवादी पार्टी से विधायक सुरेंद्र पटेल अपने समर्थकों समेत बड़ी संख्या में पहुंच रहे है। संघ के भवन पर रेलवे के खिलाफ आंदोलन में BHU और JNU के छात्रों के बड़ी संख्या में आने की उम्मीद है।
उल्लेखनीय है कि सर्व सेवा संघ ने 63 वर्ष पहले उत्तर रेल्वे से राजघाट में लगभग 13 एकड़ जमीन खरीदी थी। इसको लेकर पिछले कुछ वर्षों से रेल्वे और सर्व सेवा संघ के बीच हाई कोर्ट में मुकदमा चल रहा है तथा हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है। इसी के बीच बनारस के कलेक्टर एम.राजलिंगम ने 27 जून 2023 को उत्तर रेलवे के पक्ष में आदेश पारित किया तो महकमे के अफसरों ने आनन-फानन में सर्व सेवा संघ परिसर में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की नोटिसें चस्पा करा दी तथा संघ के भवनों पर 30 जून (शुक्रवार) को बुल्डोजर चलाने का अल्टीमेटम दिया है।
प्रेमप्रकाश ने बताया कि वाराणसी के जिलाधिकारी एम.राजलिंगम के एक तरफा फैसले के खि़लाफ सर्व सेवा संघ की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका पर 28 जून 2023 को सुनवाई हुई। कोर्ट ने उत्तर रेलवे और उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ताओं को निर्देश दिया कि वह सर्व सेवा संघ परिसर में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई स्थगित रखें। 30 जून 2023 को हाईकोर्ट पुनः इस मामले की सुनवाई करेगा और फैसला देगा।
उन्होंने बताया कि ”28 जून 2023 को कमिश्नर व उत्तर रेलवे के एडीआरएम के दफ्तर में पहुंचकर भी ज्ञापन दिया। ज्ञापन में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई को तत्काल प्रभाव से रोकने की मांग की गई है। साथ ही यह भी कहा गया है कि रेलवे का नोटिस अवैधानिक और सुप्रीम कोर्ट के नियमों का उल्लंघन है। कनिश्नर ने मौखिक रूप से कहा है कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई पर रोक लगाई जाएगी। इस संबंध में 30 जून को पुन: मुलाकात करने हेतु वक्त दिया है।
प्रशासन के मनमाने फैसले से गांधीवादियों में आक्रोश
जिला प्रशासन मनमाने फैसले से गांधीवादियों में आक्रोश है। सर्वोदय आंदोलन की शीर्षस्थ संस्था सर्व सेवा संघ का परिसर ओल्ड जीटी रोड और वरुणा नदी के बीच स्थित है। इस भूमि को रेलवे से 1960,1961,1970 में भूदान आंदोलन के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे की पहल पर सर्व सेवा संघ ने राजघाट, वाराणसी में जमीन खरीदी थी। वर्षों तक तत्कालीन दिग्गज गांधीवादी नेताओं जिनमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आचार्य विनोबा भावे, लालबहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवनराम सहित अनेक लोगों ने गांधीवादी दर्शन के प्रसार व गतिविधियों में संलग्न रहे। राजघाट परिसर में वर्तमान में कई प्रकार की गतिविधियां चलती रही है। गांधी विचार प्रसार हेतु राज्य व जिला सर्वोदय मंडलों के माध्यम से गतिविधियां होती हैं। गांधी-विनोबा-जेपी साहित्य और विचार के प्रचार-प्रसार और पुस्तकों के प्रकाशन में सर्व सेवा संघ की अहम भूमिका रही है। आज भी देश के तमाम छोटे-बड़े स्टेशनों पर सर्वोदय बुक स्टॉल मौजूद हैं, जो सर्व सेवा संघ द्वारा संचालित हैं। जिसमें राधाकृष्ण बजाज, सिद्धराज ढड्ढा, दत्तोबा दास्ताने, चुनीभाई वैद्य और कृष्णराज मेहता जैसे लोगों की अहम भूमिका रही थी।
सर्व सेवा संघ से जुडे लोगेां का मानना है कि जब से काशी स्टेशन को मल्टीमॉडल स्टेशन और खिड़कियां घाट को नमो घाट में तब्दील किया गया है तभी से सर्व सेवा संघ के पूरे परिसर पर प्रशासन की नजर है। दिसंबर 2020 में प्रशासन ने परिसर के एक हिस्से पर जबरन अपना कब्जा जमा लिया और काशी कॉरिडोर के वर्कशॉप के लिए ठेकेदार को आवंटित कर दिया। यह कब्जा अभी भी बना हुआ है। पिछले कई महीनों से प्रशासन के विभिन्न महकमे के लोग इस परिसर के इर्द-गिर्द सर्वे करते रहे हैं।
लोकशक्ति की तरफ से सविनय अवज्ञा आंदोलन
जेएनयू के प्रोफेसर आनंद कुमार ने एक खुला पत्र जारी करते हुए जनता का आह्वान किया है, ”30 जून को राजशक्ति की तरफ से बनारस में गांधी-जेपी की विरासत पर बुल्डोजर चलाने का ऐलान किया गया है। इस अन्यायी आदेश के प्रतिरोध में लोकशक्ति की तरफ से सविनय अवज्ञा करनी होगी। 30 जून की सुबह बुल्डोजर फोर्स के पहले राजघाट पहुंच रहा हूं। आप भी आइए…।”
महात्मा गांधी के पौत्र ने पीएम से लगाई गुहार
महात्मा गांधी के पौत्र और प्रमुख शिक्षाविद राजमोहन गांधी ने उनके दादा की विरासत को बचाने की गुहार पीएम नरेंद्र मादी और सीएम योगी आदित्यनाथ से लगाई है। उन्होंने कहा कि इस साधना केन्द्र का उद्घाटन स्व. लालबहादुर शास्त्री ने किया था। गांधीवादी विचारों के इस अध्ययन केंद्र पर नहीं हटाया जाना चाहिए।
राजनीतिक दलों के नेता भी मैदान में कूदे
गांधीवादी संस्था का वजूद बचाने के लिए राजनीतिक दल – कांग्रेस, समाजवादी पार्टी के नेता भी मैदान में कूद गए हैं। कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री प्रियंका गांधी ने फेसबुक पोस्ट में कहा है, ‘’वाराणसी में स्थित सर्व सेवा संघ परिसर को भाजपा सरकार द्वारा खाली करने और ढहाने की कार्यवाही शुरू करना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विरासत पर हमला है।
आचार्य विनोबा भावे, डॉ राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री एवं बाबू जगजीवन राम के प्रयासों से वाराणसी में सर्व सेवा संघ की स्थापना हुई थी। इसका मकसद गांधी जी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था। इन्हीं महापुरुषों के नेतृत्व में यह जमीन भी खरीदी गई थी। यह भवन गांधी स्मारक निधि एवं जयप्रकाश नारायण जी द्वारा किये गये दान-संग्रह से बनवाया गया था।
आज भाजपाई प्रशासन द्वारा इसे अवैध बताकर कार्यवाही शुरू करना महात्मा गांधी जी के विचारों और उनकी विरासत पर एक और हमला करने की कोशिश है। हम इस अत्यंत शर्मनाक कार्यवाही की घोर निंदा करते हैं और संकल्प लेते हैं कि महात्मा गांधी की विरासत पर हो रहे हर हमले के खिलाफ डटकर खड़े रहेंगे। हमारे देश के महानायकों और राष्ट्रीय विरासत पर भाजपाई हमले को देश की जनता कभी बर्दाश्त नहीं करेगी।‘’
कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि गांधी को न सही कम से कम जयप्रकाश नारायण की विरासत को तो बख्श देते।
राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने हेतु ज्ञापन सौंपा
बनारस जिला प्रशासन के एकतरफा फैसले और रेलवे के ध्वस्तीकरण के आदेश के खिलाफ सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय मंत्री डॉ. आनंद किशोर ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन पत्र भी भेजा है। जिसमें कहा गया है कि सर्व सेवा संघ राजघाट वाराणसी तथा गांधी विधा संस्थान वाराणसी देश हीं नही दुनिया में गांधी विचारों के प्रचार-प्रसार तथा शोध का केन्द्र है। यह पावन भूमि देश के प्रथम राष्ट्रपति के साथ सभी महान स्वतंत्रता सेनानियों तथा विद्वान विचारकों की कर्मभूमि रही है। संत विनोबा को यह भूमि पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी तथा पूर्व उपप्रधान मंत्री जगजीवन राम जी की पहल पर 1960, 1961 तथा 1970 में रजिस्ट्री की गई थी। जिस संत विनोबा ने 45 लाख एकड़ भूमि दान में प्राप्त कर भूमिहीनों में वितरित कराया था आज रजिस्ट्री के 63 वर्ष बाद उनकी राजघाट वाराणसी की खरीदी जमीन को रेलवे के कुछ अधिकारियों की साजिश से अवैध तथा साजिश से रजिस्ट्री बताकर 30 जून से ध्वस्त करने की नोटिस चिपकाया गया है। यह देश के महान विरासत का घोर अपमान है। अगर कतिपय अधिकारियों की साजिश पर रोक नहीं लगाया जाता तो पूरी दुनिया में भारत का सर शर्म से झुक जायेगा। पूरी दुनिया कहेगी कि विश्व व्यापक बापू की संस्था का उन्हीं के देश में अपमान हो रहा है।
महामहिम जी आग्रह होगा कि ऐसे अनर्थ से बापू, लोकनायक जयप्रकाश तथा संत विनोबा की पावन भूमि को बचाने हेतु आप अपने स्तर से हस्तक्षेप करें।
क्या है सर्व सेवा संघ की जमीन का मसला ?
महात्मा गांधी के देहांत के बाद आचार्य विनोबा भावे के मार्गदर्शन में अप्रैल 1948 में अखिल भारत सर्व सेवा संघ का गठन किया गया था। वाराणसी में गंगा नदी के तट पर सर्व सेवा संघ राजघाट पर स्थित है, जो 12.09 एकड़ में फैला है। 15 मई, 1960 को यह जमीन उत्तर रेलवे से खरीदी गई थी। जमीन की बिक्री का दस्तावेज संस्था के पास मौजूद है। सर्व सेवा संघ के कार्यक्रम समन्वयक रामधीरज बताते है ”विनोबा भावे और जेपी की पहल पर बनारस में सर्व सेवा संघ की स्थापना की गई थी। विनोबा के दान के पैसे से 15 मई, 1960 को यह जमीन उत्तर रेलवे से खरीदी गई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद की संस्तुति के बाद रेलवे ने पूरी कीमत लेकर जमीन बेची थी। साक्ष्य के तौर पर हमारे पास रजिस्ट्री के तीन दस्तावेज मौजूद हैं। खास बात यह है कि सर्व सेवा संघ के पक्ष में बैनामा बाद में हुआ और जमीनों की कीमत पहले चुकाई गई। सबसे पहले 05 मई 1959 को चालान संख्या 171 के जरिये भारतीय स्टेट बैंक में 27 हजार 730 रुपये जमा किए गए थे। इसके अलावा 750 रुपये स्टांप शुल्क भी अदा किया गया था।”
”इसके बाद 27 अप्रैल 1961 में 3240 रुपये और 18 जनवरी 1968 को 4485 रुपये चालान संख्या क्रमशः03 और 31 के जरिये स्टेट बैंक में जमा किया गया। उस समय यह रकम बहुत बड़ी थी। औपचारिक रूप से 14 अप्रैल, 1952 को उत्तर रेलवे का गठन हो चुका था और उसका दफ्तर दिल्ली में था। सर्व सेवा संघ की स्थापना के समय से ही तत्कालीन उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री लाल बहादुर शास्त्री संस्था से जुड़े थे। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की संस्तुति के बाद तत्कालीन रेल मंत्री जगजीवन राम ने जनहित के आधार पर रेलवे की जमीन सर्व सेवा संघ को बेचने की संस्तुति दी थी।
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